बेगूसराय में भाजपा का घमासान थमने का नाम नहीं ले रहा है. लोकसभा चुनाव के बाद से ही किसी न किसी मुद्दे के कारण यहां भाजपा के मंच पर विरोध के स्वर सुनाई पड़ते रहे हैं. ताजा विवाद पैदा हुआ है, कन्हैया कुुुमार के लिए सांसद डॉ भोला सिंह की दरियादिली को लेकर. कैलाशपति मिश्र की पुण्यतिथि के अवसर पर आयोजित कार्यकर्ता सम्मान समारोह में भाजपा का अंतरद्वन्द्व खुलकर मंच पर दिखाई दिया. भाजपा के वरिष्ठ नेता सांसद डॉ भोला सिंह एवं पार्टी के राष्ट्रीय मंत्री और बिहार विधान परिषद में सचेतक, विधान पार्षद रजनीश कुमार ने एक-दूसरे पर जमकर जुबानी प्रहार किया.
दिनकर भवन में उपस्थित महिला एवं पुरुष कार्यकर्ताओं ने डॉ भोला सिंह के विरोध में जमकर नारेबाजी की. भोला सिंह वापस जाओ के भी नारे लगे. इसके बाद डॉ भोला सिंह को भाषण पूरा किए बिना ही मंच छोड़ना पड़ा. जिले की राजनीति में डॉ भोला सिंह की इतनी बड़ी बेइज्जती कभी नहीं हुई थी. दरअसल, भाजपा नेता भोला सिंह ने कन्हैया कुमार की तुलना शहीद भगत सिंह से की थी और उन्हें देशभक्त बताया था. सांसद भोला सिंह ने कहा था कि भगत सिंह को भी उस समय की अंग्रेज सरकार देशद्रोही माना करती थी जैसे कि आज की सरकार कन्हैया कुमार को मानती है. जिस प्रकार आज भगत सिंह को कोई भी देशद्रोही नहीं मानता, उसी तरह मैं भी कन्हैया को दोषी नहीं मानता हूं. उन्होंने यह भी कहा था कि यदि सरकार को कन्हैया कुमार गुनहगार लगते हैं, तो सरकार उनके खिलाफ सबूत पेश करे.
जिले में एक तरह से भाकपा का राजनीतिक अवसान हो चुका है. पार्टी को पुन: स्थापित करने के लिए भाकपा जेएनयू के छात्र नेता कन्हैया कुमार को लोकसभा चुनाव में उतारना चाहती है. अगर ऐसा होता है तो कन्हैया बेगूसराय में भाजपा के लिए चुनौती बनेंगे. लेकिन भाजपा सांसद भोला सिंह ने ही कन्हैया की तारीफ में कसीदे पढ़ दिए. उन्होंने भगत सिंह से उनकी तुलना कर दी और कहा कि कन्हैया देशद्रोही नहीं है. संयोग से इनके प्रेस कॉन्फ्रेंस की खबर तीन नवम्बर को ही (कैलाशपति मिश्र की पुण्य तिथि के दिन) अखबार में प्रकाशित हुई. भोला सिंह द्वारा कन्हैया को देशभक्त बताए जाने से भाजपाइयों में आक्रोश था. भाजपा जिलाध्यक्ष संजय कुमार ने कैलाशपति मिश्र की पुण्यतिथि के अवसर पर दिनकर भवन में कार्यकर्ता सम्मान समारोह का आयोजन किया था, जिसमें जिले के 150 पुराने भाजपा कार्यकर्त्ताओं को सम्मानित किया जाना था. समारोह में डॉ भोला सिंह एवं रजनीश कुमार सहित सभी स्थानीय नेता आमंत्रित थे. डॉ भोला सिंह एवं रजनीश कुमार दोनों मंच पर विराजमान भी थे.
श्रद्धांजलि सम्बोधन के लिए जब रजनीश कुमार की बारी आई, तो उन्होंने तीखे स्वर में डॉ भोला सिंह को इंगित करते हुए कहा कि ये कन्हैया कुमार को देशद्रोही नहीं मानते हुए उसे आशीर्वाद देते हैं, जबकि भाजपा उसे देशद्रोही मानती है. उसे देशद्रोही नहीं कहना पार्टी का अपमान है, जिसे किसी भी हालत में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. पार्टी के राष्ट्रीय मंत्री रजनीश कुमार के इतना कहते ही कार्यकर्ता सांसद के खिलाफ नारेबाजी करने लगे. इसके बाद सांसद भोला सिंह मंच से उठकर जाने लगे. तब जिलाध्यक्ष संजय कुमार ने स्थिति को सामान्य बनाया और मान-मनौवल के बाद सांसद ने पुन: स्थान ग्रहण किया. रजनीश कुमार ने यह कहते हुए अपनी बात समाप्त की कि मेरी बातों से यदि किसी को ठेस पहुंची हो, तो मैं हाथ जोड़कर माफी मांगता हूं. अब बारी थी भोला सिंह की. सांसद ने अपने सम्बोधन में फिर से वही
दोहराया कि कन्हैया कुमार देशद्रोही नहीं है, वो भी देशभक्त है. भोला सिंह के इतना कहते ही दिनकर भवन की गैलरी से काफी संख्या में महिला एवं पुरुष कार्यकर्त्ता उबल पड़े और भोला सिंह के खिलाफ नारेबाजी करते हुए डायस के सामने आ गए. लाचार भोला सिंह को अपना सम्बोधन बीच में ही छोड़ना पड़ा. इसके बाद जिलाध्यक्ष ने घोषणा की कि कन्हैया कुमार को देशद्रोही नहीं कहना भोला सिंह की व्यक्तिगत राय है. भाजपा कन्हैया कुमार को देशद्रोही मानती है.
राष्ट्रीय सचिव रजनीश कुमार फिर से उबल पड़े. उन्होंने भोला सिंह द्वारा कन्हैया की तुलना भगत सिंह से किए जाने का विरोध करते हुए कहा कि अगर इस प्रकार की बयानबाजी करनी है, तो बाहर जाकर करिए, क्योंकि इस प्रकार की बातें करना भाजपा की विचारधारा के विरुद्ध है. उन्होंने कहा कि चाहे किसी भी नेता का कद पार्टी में कितना भी बड़ा क्यों न हो, लेकिन इस प्रकार के बयानों को कतई बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. रजनीश कुमार ने यहा तक कह दिया कि इस प्रकार के बयान न सिर्फ जन भावनाओं को ठेस पहुंचाते हैं, बल्कि आपकी मानसिकता को भी दर्शाते हैं. कई नेताओं ने भोला सिंह के इस बयान का कड़ा विरोध किया और वे सभा का बहिष्कार करते हुए वहां से निकल गए. इन सबके बाद पार्टी के वरीय नेताओं ने सांसद भोला सिंह को वहां से सुरक्षित निकाला.
भोला सिंह और रजनीश कुमार का सियासी टकराव
सिमरिया धाम का कुंभ आयोजन और भोला सिंह द्वारा छात्र नेता कन्हैया कुमार की तुलना अमर शहीद भगत सिंह से करना इस वाक्युद्ध का तात्कालिक कारण बना. लेकिन सियासी हलकों में इस बात की चर्चा जोरों पर है कि कुंभ और कन्हैया तो बहाना है, अगामी लोकसभा चुनाव निशाना है. कहा जा रहा है कि भोला सिंह के बयान को लेकर शुरू हुए विवाद के मूल में 2019 का चुनाव है, जिसमें भाजपा की तरफ से प्रत्याशी बनाए जाने को लेकर खिंचातानी हो रही है. ऐसे तो बेगूसराय में भाजपा तीन खेमों में विभाजित है. एक खेमे का नेतृत्व विधान पार्षद रजनीश कुमार कर रहे हैं. वहीं दूसरा खेमा सांसद डॉ भोला सिंह के हाथ में है. दोनों खेमों से अलग तीसरा खेमा कार्यकर्ताओं का है. डॉ भोला सिंह एवं रजनीश कुमार के बीच चल रहे संघर्ष को जानने के लिए थोड़ा पीछे झांकना होगा.
बेगूसराय जिले के बखरी प्रखंड में एक पार्टी कार्यकर्त्ता की हत्या हो गई थी. डॉ भोला सिंह ने आरोप लगाया कि इसमें रजनीश कुमार की संलिप्तता है. फिर इसके बाद सिमरिया धाम में चल रहा कुंभ मेला मुद्दा बना. रजनीश कुमार कुंभ आयोजन समिति के महासचिव हैं. भोला सिंह ने कुंभ की व्यवस्था को लेकर सवाल खड़े कर दिए. उन्होंने पत्रकार वार्ता आयोजित कर बताया कि देश में चार ही कुंभ स्थल हैं, जिसमें सिमरिया कुंभ का कहीं नाम नहीं है. इस कुंभ को फ्लॉप बताते हुए उन्होंने कहा कि कुंभ आयोजन के नाम पर राजनीति चमकाने का काम किया जा रहा है और मेले में अवैध वसूली हो रही है. ऐसा भी नहीं है कि भोला सिंह और रजनीश कुमार की सियासी टकराहट हाल के दिनों में सामने आई है. इससे पहले भी ये दोनों नेता आमने-सामने आते रहे हैं. गत लोकसभा चुनाव के समय से ही डॉ भोला सिंह और रजनीश कुमार के बीच मनमुटाव जारी है. स्थानीय स्तर पर यह चर्चा है कि लोकसभा चुनाव 2019 में रजनीश कुमार को भाजपा पार्टी प्रत्याशी बना सकती है. रजनीश कुमार अंदरखाने चुनाव लड़ने की तैयारी भी कर रहे हैं. इस तरह से वे भोला सिंह के लिए बड़ी सियासी चुनौती पेश कर रहे हैं. भोला सिंह किसी भी स्थिति में यह बर्दाश्त करने को तैयार नहीं हैं कि उनका सीटिंग एमपी का टिकट काटकर किसी और को दिया जाय. इसके लिए वे पूरी तरह से रजनीश कुमार को बैकफुट पर ढकेलने की कोशिश में लगे हैं. कुंभ आयोजन की कुव्यवस्था उजागर करना इन्हीं कोशिशों की कड़ी है. लेकिन भोला सिंह की इन कोशिशों पर कन्हैया की तारीफ हावी हो गई और वे अब खुद बैकफुट पर नजर आ रहे हैं.
सांगठनिक मर्यादा के नजरिए से देखें, तो कैलाशपति मिश्र की पुण्यतिथि पर भाजपा के नेताओं की सार्वजनिक जुबानी जंग को जायज नहीं कहा जा सकता. कैलाशपति मिश्र बिहार में जनसंघ एवं भाजपा के संस्थापकों में से एक रहे हैं. पार्टी संगठन की मजबूती के लिए उन्होंने आजीवन कार्य किया. ऐसे महान नेता की पुण्यतिथि पर भाजपाइयों को संगठन को और अधिक मजबूत करने का संकल्प लेना चाहिए था. लेकिन हुआ इसके विपरीत. अब तक पर्दे के पीछे चल रही भाजपाइयों की गुटबाजी इस घटना से उजागर हो गई. अब देखने वाली बात ये होगी कि इस गुटबाजी से भाजपा को कितना नफा-नुकसान होता है. भाजपा इस मुगालते में है कि गत लोकसभा चुनाव में उसके प्रत्याशी की जीत हुई थी, तो इसबार भी इस सीट पर उसका ही कब्जा होगा. जबकि हकीकत इससे विपरीत है. पिछली बार राजद-कांगे्रस और जदयू-भाकपा गठबंधन के कारण चुनावी टिकट से वंचितों ने भी भाजपा प्रत्याशी के पक्ष में माहौल बनाकर मतदान किया था. इस बार तो भाजपाइयों की आंतरिक गुटबाजी ही बेगूसराय में पार्टी की जीत को पलिता लगा सकती है.