चार वर्षों से शांत रोहतास कैमूर का दक्षिणी हिस्सा कैमूराचंल एक बार फिर नक्सली गतिविधियों से आंदोलित होने लगा है. पूर्व में समानान्तर सता कायम कर चुके भाकपा माले के हथियार बंद दस्तों की जगह इस बार प्रतिबंधित नक्सली संगठन टीपीसी के दस्ते ने आतंक राज कायम करने की कमान संभाल ली है.
इसकी शुरुआत नक्सलियों ने बड्डी थाना क्षेत्र में महुआ पोखर के समीप दुर्गावती जलाशय परियोजना की नहर खुदाई कार्य में लगी कंपनी की दो मशीनरियों को जलाकर की है. 2012-13 में तत्कालीन पुलिस अधीक्षक मनु महाराज द्वारा चलाए गए अभियान में सौ से ज्यादा नक्सली गिरफ्तार हुए थे.
सोलह नक्सलियों ने पुलिस के सामने आत्मसमर्पण किया था. तब इस क्षेत्र में प्रतिबंधित नक्सली संगठन भाकपा माले की समानान्तर सत्ता चलती थी. सोन गंगा विंध्याचल जोन के इस केंद्रीय भूमि पर कामेश्वर बैठा से लेकर समर साहू, निराला यादव आदि नक्सली कमांडरों द्वारा कायम की गई सत्ता को पुलिस ने दो वर्षों की मेहनत में समाप्त कर दिया था. इससे चार वर्ष कैमूरांचल की धरती शांत रही.
इस दौरान विकास बर्मन, चंदन कुशवाहा और शिवदीप लांडे जैसे पुलिस कप्तानों के कार्यकाल बीते. चार वर्षों के बाद एक बार फिर शुरू हुई नक्सली गतिविधियां पुलिस के लिए चुनौती खड़ी कर रही हैं. अजय राजभर के दाहिने हाथ कहे जाने वाले अनिल कुशवाहा के हाथों में टीपीसी दस्ते की कमान है. इसे लेकर रोहतास पुलिस के तत्कालीन नक्सल एएसपी मोहम्मद सुहैल का बयान आया था कि पुलिस के साथ मुठभेड़ में अनिल कुशवाहा मारा गया.
परंतु बाद में मारे जाने वाले युवक की पहचान हुई और पुलिस का दावा समाप्त हो गया. अनिल कुशवाहा बीस कमांडरों के साथ कैमूर के अधौरा से लेकर रोहतास के डुमरखार तक अपनी गतिविधियों को संचालित करता रहा है. अनिल कुशवाहा कैमूर जिला के भगवान थाना क्षेत्र के कसेर गांव का रहने वाला है. उसने चेनारी के केनार कला गांव में चार वर्ष पूर्व एक बड़ी घटना को अंजाम दिया था.
बड्डी के मुहुआ पोखर में टीपीसी के इस दस्ते ने निर्माण कंपनी के एक पोखलेन और एक जेसीबी मशीन को जलाकर पुलिस को चुनौती दी है. घटना के एक महीने पूर्व गीता घाट में इसी दस्ते ने लेवी के लिए उक्त निर्माण कंपनी को धमकी भरा पत्र दिया था. इसकी सूचना स्थानीय पुलिस को भी दी गई थी. पुुलिस की सतर्कता के बावजूद टीपीसी दस्ते ने यह कार्रवाई की है.
इधर इंद्रपुरी से लेकर अधौरा के बीच पचास ईंट भट्ठे मालिकों से मांगी जा रही लेवी भी पुलिस के लिए कम चुनौती नहीं है. टीपीसी के दस्ते में हथियारबंद सदस्यों की बढ़ती संख्या और नक्सली घटनाओं में इजाफा से कैमूरांचल के निवासी दहशत में हैं. नक्सलियों ने कैमूरांचल के रोहतास कैमूर में बसे 160 गांवों के विकास कार्यों को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया है. इन गांवों में सड़क, विद्यालय, अस्पताल आदि निर्माण कार्य शुरू हुए हैं.
इससे ऐतिहासिक रोहतास बढ़ किला, शेरगढ़ किला, धार्मिक धरोहर गुप्ता धाम, रोहितेश्वर शिव आदि जगहों पर पहुंचने वाले पर्यटकों और श्रद्धालुओं की संख्या भी प्रभावित होगी. अभी नक्सल अभियान की जिम्मेवारी अपर पुलिस अधीक्षक सुशांत सरोज के हाथों में है. उतरप्रदेश में विधानसभा चुनाव के मद्देेनजर नक्सली गतिविधियों पर काबू पाने के लिए बिहार के रोहतास कैमूर, उत्तरप्रदेश के सोनभद्र चंदौली, झारखंड के पलामू गढ़वा छतीसगढ़ के रामानुजगंज पुलिस की संयुक्त बैठक सोनभद्र में हुई.
इसमें कैमूरांचल में पुन: सक्रिय हो रहे टीपीसी दस्ते की गतिविधियों को रोकने के लिए एक योजना बनाई गई है. एक बात तो तय है कि पुनर्गठन के दौर से गुजर रहे नक्सली संगठन कैमूरांचल में अगर इसी रफ्तार से सक्रिय रहे तो एक वर्ष में वे पुराने स्वरूप में लौट आएंगे. फिलहाल नक्सली अपने सदस्यों की संख्या बढ़ाने में जुटे हैं. सदस्यों के बढ़ने पर हथियारों की जरूरत भी पड़ेगी.
उस हालात में नक्सली संगठन पुलिसकर्मियों पर गुरिल्ला हमला कर हथियार लेने का प्रयास कर सकते हैं. इससे पूर्व रोहतास में लोहराडीह, गायघाट, बादलगढ़, मटियावां आदि ऐसे मुठभेड़ हुए, जिसमें नक्सलियों ने पुलिस को काफी नुकसान पहुंचाया था. 2003 में पीपुल्स वार ग्रुप के दस्ते ने नौहट्टा के डबुला मोड़ पर हमला कर एक दर्जन पुलिसकर्मियों को मारकर उनके हथियार छीन लिए थे. 2007 में मैदानी इलाके के राजपुर और बघैला थाना पर हमलाकर नक्सली दस्ते ने दोनों जगहों से 14 हथियार उड़ाये थे. इस दौरान 13 पुलिसकर्मियों की हत्या भी हुई थी.
फिलहाल बादलगढ़ और बंजारी में सीआरपीएफ की दो कंपनियां नक्सली गतिविधियों पर कमान कसने के लिए तैनात हैं. सीआरपीएफ की एक टुकड़ी यदुनाथपुर में भी लगाई गई है. परंतु इस क्षेत्र में पड़ने वाले थाने चेनारी, बड्डी, दरिगांव, तिलौथू, अमझोर, रोहतास, नौहट्टा चुटिया, कैमूर के करमचट, भगवानपुर, अधौरा आदि के पुलिस कर्मी हमेशा नक्सली दस्तों के निशाने पर रहे हैं.
दस्तों में कमांडरों की बढ़ती संख्या के कारण किसानों से भी हथियार लूटे जाते हैं. अस्सी के दशक में यह क्षेत्र कभी दस्यु गिरोहों, जिसमें रामाशीष बिंद, मोहन बिंद, दादा आदि की गिरफ्त में था. बाद में उसकी भरपाई 90 के दशक में पीपुल्स वार ग्रुप और भाकपा माले के हथियारबंद दस्तों ने किया. 2004 में पीपुल्स वार ग्रुप और भाकपा माले के विलय के बाद आक्रामक नक्सली संगठनों ने छह वर्षों में पूरे कैमूरांचल में साठ से ज्यादा हत्याएं की थीं.