बिहार के नवादा जिले में स्थित काकोलत जलप्रपात को आज तक पूर्ण पर्यटन स्थल का दर्जा नहीं दिया जा सका है. गर्मी के दिनों में भी दूर से ही ठंड का एहसास कराने वाली काकोलत जलप्रपात को बिहार का कश्मीर कहा जाता है. गर्मी के दिनों में आस-पास के जिले ही नहीं बल्कि झारखण्ड से भी बड़ी संख्या में लोग काकोलत जलप्रपात का आनन्द लेने पहुंचते हैं. प्रति वर्ष 14 अप्रैल को लगने वाले बिसूआ मेले को भी बिहार सरकार बहुत अधिक महत्व नहीं दे पाती है. जिसके कारण अद्भुत और कौतुहल का विषय माना जाने वाला काकोलत जलप्रपात राज्य में भी अपनी खास जगह नहीं बना पा रहा है. कुछ स्थानीय लोगों के प्रयास से इस जलप्रपात की महत्ता को प्रचारित-प्रसारित करने का काम किया जा रहा है.
लेकिन यह प्रयास सरकार का अपेक्षित सहयोग नहीं मिलने के कारण बहुत सार्थक नहीं हो पा रहा है. नवादा जिले से 35 किलोमीटर दूर गोविंदपुर प्रखंड में स्थित है, काकोलत जलप्रपात. यह एक ऐसा जलप्रपात है, जो सुन्दरता और प्राकृतिक सौर्न्दय के लिहाज से देश के किसी भी जलप्रपात से कम नहीं है. लेकिन सरकार तथा संबंधित विभाग द्वारा इस जलप्रपात की खूबसूरती में चार-चांद लगाने के बदले इसके अस्तित्व को ही समाप्त करने का प्रयास किया जा रहा है. बिहार में कश्मीर के नाम से प्रसिद्ध काकोलत जलप्रपात को विकास के इस दौर में सबसे ऊपर होना चाहिए था. लेकिन बिहार सरकार और पर्यटन विभाग द्वारा किए जा रहे विकास कार्यों में इसका स्थान कहीं नहीं है. काकोलत जलप्रपात को विकसित कर दिया जाए तो यहां विदेशी सैलानियों की भीड़ लगी रहेगी, जिससे सरकार के साथ-साथ स्थानीय लोगों को भी व्यावसायिक लाभ होगा.
काकोलत विकास परिषद के अध्यक्ष मसीहुद्दीन बताते हैं कि यह जलप्रपात प्राचीनकाल से प्राकृतिक प्रेमियों और पर्यटकों के लिए आकर्षण का केन्द्र रहा है. प्रति वर्ष 14 अप्रैल को यहां लगने वाले पांच दिवसीय सतुआनी मेला पर आस-पास के लोगों का बड़ा जमावड़ा लगता है. लेकिन इसके बाद भी सरकार की ओर से इसके विकास के लिए सार्थक प्रयास नहीं किए जा रहे हैं. लोगों का कहना है कि सरकार चाहे तो काकोलत जलप्रपात के रास्ते यहां के स्थानीय लोगों को रोजगार मुहैया कराके बेरोजगारी दूर कर सकती है. झारखण्ड से अलग होने के बाद शेष बिहार में काकोलत अकेला ऐसा जलप्रपात है, जिसका पौराणिक और पुरातात्विक महत्व है. बिहार सरकार इस ऐतिहासिक जलप्रपात की महत्ता को समझे या नहीं लेकिन भारत सरकार के डाक एवं तार विभाग ने इस जलप्रपात की ऐतिहासिक महत्ता को देखते हुए काकोलत जलप्रपात पर पांच रुपये मूल्य का डाक टिकट भी जारी किया है.
इसका लोकार्पण भी डाक तार विभाग ने 2003 में काकोलत विकास परिषद के अध्यक्ष मसीहुद्दीन से पटना में कराया था. 1995 से पहले काकोलत जलप्रपात के तालाब में स्नान करने के दौरान दर्जनों लोगों की जान चली गई थी. लेकिन गया के तत्कालीन प्रमंडलीय वन पदाधिकारी वाईके सिंह चौहान के अथक प्रयास से काकोलत जलप्रपात को बहुत ही सुन्दर रूप भी दिया गया. उन्होंने विशेषज्ञों की राय लेकर जलप्रपात के पानी को लोहे के बने पाइप के सहारे मोड़ कर तालाब के गढ्ढे को पूरी तरह भरकर एक आकर्षक तालाब का रूप दिया, जो आजतक बरकार है.
अब काकोलत जलप्रपात के तालाब में डुबने से किसी की मौत नहीं होती है. हालांकि चौहान के इस प्रयास में नवादा के तत्कालीन जिला पदाधिकारी रामवृक्ष महतो और काकोलत विकास परिषद के अध्यक्ष मसीहुद्दीन का सहयोग मिला. जिला पदाधिकारी ने 50 लाख रुपये की राशि उपलब्ध करायी तो डीएफओ ने वन विभाग के तमाम नियमों में शिथिलता बरतते हुए काकोलत जलप्रपात को एक अच्छे पर्यटन स्थल का रूप दे दिया. यहां वन विभाग की ओर से आकर्षक गेस्ट हाउस और दुकानों का निर्माण भी कराया. कुछ वर्षो तक तो यहां सबकुछ अच्छा चला. लेकिन इन पदाधिकारियों का स्थानांतरण होते ही काकोलत जलप्रपात पुन: उपेक्षित हो गया. हालांकि काकोलत विकास परिषद की ओर से 1997 में प्रति वर्ष लगने वाले बिसूआ मेला को काकोलत महोत्सव का नाम देकर एक बड़ा आयोजन कराया. जिसकी शुरुआत गया के प्रसिद्ध माउंटेन मैन दशरथ मांझी के हाथों कराया था.
इस महोत्सव के माध्यम से मगध की सांस्कृतिक विरासत को बचाने तथा यहां की प्रतिभाओं को उभारने का प्रयास किया जाता है. लेकिन अफसोस है कि सुशासन में भी काकोलत जलप्रपात की उपेक्षा की गई. यह जलप्रपात नवादा जिला मुख्यालय से 35 किलोमीटर पूर्व दक्षिण गोविंदपुर प्रखंडम में स्थित है. यहां जाने के लिए नवादा रांची रोड पर स्थित फतेहपुर मोड़ से जर्जर सड़क के सहारे जाना पड़ता है. अभी हाल में फतेहपुर मोड़ से काकोलत जाने वाली सड़क में काम लगा है. सात पर्वत श्रृंखलाओं से प्रवाहित काकोलत जलप्रपात और इसकी प्राकृतिक छटा बहुत सारे कौतुहल को जन्म देती है. धार्मिक मान्यता है कि पाषाणकाल में दुर्गा सप्तशती के रचयिता ऋृषि मारकण्डेय का काकोलत में निवास था. धार्मिक मान्यता यह भी है कि काकोलत जलप्रपात में वैशाखी के अवसर पर स्नान करने मात्र से सांपयोनि में जन्म लेने से प्राणी मुक्त हो जाती है. इस जलप्रपात की खोज अंग्रेजों के शासनकाल में फ्रांसिस बुकानन ने 1811 में की थी.
फ्रांसिस बुकानन ने इस जलप्रपात को देखा और कहा कि जलप्रपात का नीचे का तालाब काफी गहरा है. इसकी गहराई को भरने के उद्देश्य से एक अंग्रेज अधिकारी के आदेश पर यहां स्नान करने वाले लोगों को पहले तालाब में एक पत्थर फेंकने का नियम बनाया था. क्योंकि इस तालाब में सैकड़ों लोगों की जानें जा चुकी है. लेकिन 1995 में इस तालाब को भर दिया गया और आकर्षक बना दिया गया. लेकिन सरकार की सार्थक दृष्टि नहीं पड़ने के कारण यह जलप्रपात आज भी उपेक्षित है. यह जलप्रपात किसी दूसरे राज्य में होता तो पर्यटन का मुख्य केन्द्र होने के साथ-साथ विदेशी मुद्रा के आय का भी बड़ा साधन होता. लेकिन न जाने किस कारणवश इस अद्भुत जलप्रपात की उपेक्षा राज्य सरकार द्वारा की जा रही है. पर्यटन विभाग चाहे तो वन विभाग से मिलकर काकोलत जलप्रपात को सचमुच में कश्मीर बनाया जा सकता है.