voteहमारा वोट कहां गया साहेब? समय है कि आप पूछें उन मौलानों से जो आपकी तरफ से सोनिया गांधी और सलमान खुर्शीद व के. रहमान खान के घरों में दावतें उड़ाते थे. समय है कि आप पूछें उन मुस्लिम नेताओं से जो मुस्लिम अवाम के सीने पर सवार होकर अपनी शान ब़ढाते थे, पूछिए आज़म खान से, पूछिए मौलाना मुलायम सिंह से, पूछिए जमात इस्लामी से, जमियत उलेमा हिंद के मदनी खानदान से, जमियत अहले हदीस के सल्फियों से, पूछिए बुखारी और खालिद रशीद साहिबान से, पूछिए उलेमा कौंसिल से की हमारा वोट कहां गया? उत्तर प्रदेश के मुसलमानों को हक़ है की वो अपने लीडरों का गिरेबान पकड़ें और पूछें कि बताइए अगर आप से रहनुमाई नहीं की जाती तो आप को कोई हक़ नहीं बनता की हमारे नाम पर आप सौदेबाजी करिए, सिर्फ यही नहीं बल्कि उन बेशर्म साठ मुस्लिम विधायकों से भी पूछिए जो अपने और अपने खानदान के लिए जमीन जायदाद बटोरने में खोए हुए हैं. आज़म खान से लेकर नसीमुद्दीन सिद्दीकी तक. क्यों नहीं इनके घरों के सामने इनके पुतले जलाए जाएं? क्यों नहीं मौलाना मुलायम सिंह और उनके शहजादे अखिलेश सिंह से जवाब-तलब किया जाए कि हमारा वोट कहां गया?
मैं इसलिए नाराज नहीं हूं कि मैं निराश हूं, बल्कि इसलिए नाराज़ हूं कि ये सारे नेता मुस्लिम मतदाताओं के विवेक और उनकी राजनीतिक समझ पर अपना अधिकार समझते हैं. मुस्लिम मतदाताओं की अपनी राजनीतिक समझ और चेतना या बेदारी ज्यादा जरूरी है. बुखारी की चेतना और बेदारी से, बहुत ज़रूरी है की बंद दरवाजों में कैद मुस्लिम संगठन और मुस्लिम नेता मुस्लिम अवाम के सामने अपना हिसाब दें और उनसे पूछें की अब उन्हें क्या करना चाहिए? इतनी बड़ी हार के बाद फिर कुछ नेता अपनी दुकान चमकाने के लिए कोई मोदी विरोधी और कोई मोदी परस्ती का कार्ड खेलेगा. कोई नहीं पूछेगा मुस्लिम मोहल्लों में किसी विधवा का राशन कार्ड बना है या नहीं. किसी गरीब लड़की की शादी नहीं हो रही है? क्यों मोहल्लों के लड़के स्कूल छोड़-छोड़ कर भाग रहे हैं. पिछले पंद्रह सालों से मैं सिर्फ अख़बारों के माध्यम से प़ढता आ रहा हूं कि ऑल इंडिया मुस्लिम कौंसिल, ऑल इंडिया मुस्लिम मजलिस मुशाविरत और फलां-फलां आलिम मौलाना, लीडर ने मुस्लिम मतदाताओं के लिए फरमान जारी कर दिया है. आज मैं ये कहना चाहता हूं कि जो मुस्लिम नेता आपके सामाजिक सरोकारों से, दो वक्त की रोटी से, बच्चों की पढ़ाई और औरतों की इज्जत के हक़ से, कच्चे मकानों और बेरोजगार लड़कों के बारे में बात किए बगैर आपके सामने आए तो उसकी बातों को एकदम अनसुना कर देना चाहिए. जो संगठन आपसे सलाह मशविरा किए बगैर फरमान जारी करे, उसके फरमान पर ध्यान देने से आपका कोई भला नहीं होने वाला. आखिर अब बहुत समय बीत गया जब मुस्लिम अवाम ने इनके कहे पर मतदान किया. ये बोलते थे और हम सर झुका कर सुनते थे. बहुत हो गया की आप हुक्म जारी करते थे और हम उसी का पालन करते थे. अब सबसे पहले हर फैसले में मुस्लिम नौजवानों को शामिल करिए. सभी पुराने संगठनों में युवा चेहरे चाहिए. हर बंद दरवाज़े को खोलना होगा. एक शहर में दस-दस मदरसों की ज़रूरत है या नहीं, ये किसी एक मौलवी के ख्वाब से या किसी पीर के हुक्म से नहीं तय होगा, बल्कि ये इससे तय होगा की उस शहर के मुसलमानों के लिए कितना ज़रूरी है. लाखों खर्च हो रहे हैं जलसों और जुलूसों में और हमारे बच्चे छोटी-छोटी ट्रेनिंग के लिए सरकारी दरवाजों पर भी भीखमांग रहे हैं, ये अब नहीं चलेगा. ये अपील है उन सब नौजवानों के नाम जो इस उसूल से सहमत हैं कि हमारे फैसले ऊपर से थोपे नहीं जाएंगे. हमारे फैसले हम मोहल्ले और शहर के स्तर पर खुली सभाओं के ज़रिए लेंगे, अब बंद दरवाजों से आने वाले फरमान नहीं माने जाएंगे. पहले समाज के टीचरों, डॉक्टरों और सभी प़ढने-लिखने और समझ रखने वाले लोगों को बकौल शायर तू इधर-उधर की न बात कर, ये बता की काफिला क्यों लुटा, मुझे रहजनों से गिला नहीं, तेरी रहबरी का सवाल है.

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