स्टार कास्ट: पंकज त्रिपाठी, संदीपा धर, मोनल गज्जर, अमर उपाध्याय, टीना आहूजा
निर्देशक: सतीश कौशिक
सतीश कौशिक की फ़िल्म कागज़ में एक बैंडमास्टर भरत लाल (पंकज त्रिपाठी) को सलाह दी जाती है कि वह अपने व्यवसाय का विस्तार करने के लिए ऋण ले, तो बाद वाला उसे यह कहकर ब्रश कर देता है, “ये करज़ा जो है ना वो कुतते पलने जैसा है,।” कहने के लिए सुरक्ष कर्ता है, पार रोज़ भो भो करके रोटी मांगेगा। जो इक दिन रोटी ना दो तो काट देगा”। दर्शकों के लिए, हंसी और विचार के लिए बहुत कुछ है। कागज़ की शुरुआत सलमान खान की आवाज़ से होती है, जो एक कविता सुनाते है, जिसमें कहा गया है कि कैसे काग़ज़ हमारे जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
सतीश कौशिक की डायरेक्टोरियल फ़िल्म कागज़, यूपी के किसान लाल बिहारी की वास्तविक जीवन की कहानी से प्रेरित है, जिसने यह साबित करने के लिए 19 वर्षों तक संघर्ष किया कि वह सरकारी रिकॉर्ड में मृत घोषित होने के बाद जीवित है। पंकज त्रिपाठी को कौशिक के मज़ाकिया लेखन के साथ फ्लर्ट करते देखना मज़ेदार है। फ़्लिप्सीड तब आता है जब कहानी एक मोड़ लेती है, और आप कहानी को एक सुस्त गति से आगे बढ़ते हुए पाते हैं। इसके अलावा, क्लाइमैक्स थोड़ा विचित्र और अचानक आता है। लेकिन आखरी मे फ़िल्म एक अच्छे नॉट पर ख़तम होती है।