कश्मीरी लोकगितकार गुलज़ार अहमद साहब, (जिन्होंने नरसि मेहता द्वारा लिखित, महात्मा गाँधी जी के प्रिय भजन वैष्णव जन तो का, काश्मिरी भाषा में अनुवाद कर के गाते हैं ! ) तथा अन्य शायर और श्रीनगर के गणमान्य व्यक्ति इस कार्यक्रम में मौजूद थे !


आजादी के अमृतमहोत्सव के दौरान ! हमारे देश की अखंडता और एकता को खत्म करने की साजिश, कुछ सांप्रदायिक शक्तियों के द्वारा लगातार जारी रहते हुए ! हमारे देश के नक्शे पर अंकित विविध प्रतिक जिस कलाकार ने बनाऐ है ! उनकी प्रतिभा को मै दाद दिऐ बगैर रह नही सकता ! लेकिन इस नक्शे पर अंकित प्रतिको को बचाने के लिये, हम सभी को एकजुट होकर प्रयास करना चाहिए ! अन्यथा हमारे देश का, और विभाजन हो सकता है ! इसलिये सिर्फ अमृतमहोत्सव मनाने के कर्मकांड करने के बजाय, देश के असली समस्याओं का समाधान करने की आवश्यकता है ! और कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक के लोगों को लगना चाहिए कि हां हम इस देश के नागरिक हैं !


क्योंकि अझादीके बाद का पचहत्तर साल के सफर को देखते हुए ! और मुख्यतः पिछले तिस – पैतिस सालों से जिस तरह की शक्तियां देश की वर्तमान राजनीति, समाजनिति और सांस्कृतिक क्षेत्र में विलक्षण ध्रुवीकरण की कोशिश कर रहे हैं ! इस कारण से हमारे देश के सभी अल्पसंख्यक समुदाय, दलित, आदिवासी, पिछडी जातियों से लेकर महिलाओं तक असुरक्षित मानसिकता का माहौल बनते जा रहा है ! और यही आलम जारी रहा तो देश का सामाजिक स्वास्थ्य गंभीर स्थिति में चला जा रहा है ! जो कि देश की एकता और अखंडता के लिए चिंता का विषय है !


सबसे महत्वपूर्ण बात, कश्मीर की आबादी आजादी के पहले से ही 92% मुस्लिम रहते हुए ! और भौगोलिकता तथा जनसंख्या, यह दो पैमाने भारत पाकिस्तान के बटवारे के रहते हुए ! कश्मीर बहुसंख्य मुसलमानो की मर्जी से, भारत में शामिल हुआ है ! यह एतिहासिक तत्थ होने के बावजूद ! और सबसे अहम बात बटवारे के समय ! भारत के कई हिस्सों में सांप्रदायिक हिंसा जारी थी ! और कश्मीर शांत था ! जब यह बात महात्मा गाँधी जी को पता चली ! तो वह बंगाल में सांप्रदायिक हिंसा को रोकने का प्रयास ! बिचमे ही छोड़ कर ! महात्मा गाँधी जी कश्मीर 1 अगस्त 1947 से 9 अगस्त 1947 तक कश्मीर में विशेष तौर पर, कश्मीर की सामाजिक एकता को देखने के लिए अपने व्यस्त कार्यक्रम को छोड़कर आऐ थे जिसको भी इस साल पचहत्तर साल हो रहे हैं ! और उन्होंने कश्मीर में हिंदु – मुस्लिम और सिखों का आपसी विश्वास और सौहार्द को देखते हुए ! कहा ” कि मेरे सपनों का भारत यही है !” आजादी के बाद अगर कश्मीर की फीजा ऐसी थी ! तो हमारे तरफसे ऐसी कौन सी गलती हुई है ? जिस कारण आज कश्मीर की यह हालत बनी है ?


क्या हमें सिर्फ कश्मीर का जल, जंगल जमीन, और बर्फीली पहाड़ीया ही चाहिये ? और एक करोड़ की आबादी ! जो कश्मीर में सदियों से रह रही है ! उसे नाराज रखकर, और सिर्फ सेना और पैरा मिलिटरी के भरोसे, हम कश्मीर की जनता का दिल नहीं जीत सकते ! वैसे भी मै काफिला – ए – मोहब्बत के मंच से बोल रहा हूँ ! तो सही मायने में मोहब्बत से ही हम कश्मीर के नागरिकों का दिल जीत सकते हैं ! वैसे भी काश्मिरी पंडित कल्हण ने अपने राजतरंगिणी नाम के ग्रंथ में शुरू में ही लिखा है कि “कश्मीर को बल द्वारा नही, केवल पुण्य द्वारा विजय प्राप्त की जा सकती है ! यहां के निवासि केवल परलोक से भयभीत होते हैं ! न कि शस्त्रधारींयो से ! ”


शुरू से ही दिल्ली और इस्लामाबाद का सलुख कश्मीर के साथ, ठीक नहीं रहा ! दोनों की सेना ने, फिर वह पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर की बात हो ! या भारत की सेना की उपस्थिति से आपत्ति है ! क्योंकि सेना की तैनाती शत्रुओं के खिलाफ की जाती है ! कश्मीर में तो नागरिकों को सेना की निगरानी में रहना पड रहा है ! यह सेना का भी अपमान है ! जिसे हमारे अपने ही देश के नागरिकों के खिलाफ तैनात किया गया है ! इसलिए सेना के बारे में आम काश्मिरीयो की राय अच्छी नहीं है ! इसलिए जितना समय वहाँ पर सेना और पैरा मिलिटरी की उपस्थिति रहेगी उतना ही आम काश्मिरीयो को भारत के प्रति सच्चा प्यार कभी नहीं हो सकता ! क्योंकि इन पचहत्तर सालों में कश्मीर में लाखों लोगों की मौत हुई है जिसमें सेना के जवान भी है और आम नागरिक भी ! यह एक तरह से गृहयुद्ध ही जारी है ! तो ऐसे माहौल में कैसे वहां के लोगों से आप भारत के अभिन्न हिस्सा हो ऐसी उम्मीद करना बेमानी बात है !


और अब संपूर्ण भारत में कम-से-कम तीस से चालीस करोड़ मुसलमानों की आबादी को ! पिछले कुछ सालों से ! लगातार असुरक्षित मानसिकता में डालने का काम, कुछ सांप्रदायिक तत्वों की, तरफ से कीया जा रहा है ! तो आज भी नब्बे प्रतिशत से अधिक मुस्लिम आबादी के, कश्मीर को हम किस नैतिकता से कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है बोलेंगे ? आए दिन भारत के मुसलमानों को मंदिर – मस्जिद, गोहत्या बंदी, हीजाब और कई स्थानिय मुद्दों को लेकर ध्रुवीकरण की राजनीति सत्ता करने के लिए किए जा रहे हैं ! और उपरसे भागलपुर, गुजरात के जैसे दंगों में उनकी जान, माल और आबरू के साथ खिलवाड़ करते-करते ! हमारा कश्मीर बोलना कितना विरोधाभास है ? आप पहले भारत में रह रहे मुसलमान के साथ, प्रेम मोहब्बत से रहना शुरू करो ! तब हमारा कश्मीर बोलना ! अन्यथा कश्मीर के ताबुत पर और एक – एक किल ठोकी जा रही है !

इस लिए इस देश की आजादी के पचहत्तर साल के उपलक्ष्य में ! और आने वाले 25 वर्ष के बाद, शताब्दी महोत्सव के दौरान ! हमारे देश में रहने वाले हर धर्म, जाति, संप्रदाय, लिंग तथा सभी आर्थिक – सामाजिक स्तर के लोगों को यह मुल्क हमारा भी है ! और इसे अक्षुण्ण बनाएं रखना हमारे सभी का कर्तव्य है ! यह माहौल बनेगा तभी तो भारत की एकता और अखंडता बनेंगी ! अन्यथा हिंदुत्व की उग्र राजनीति से, इस देश में आराजकता का माहौल ही दिन-प्रतिदिन बनते-बनते ! और एक बटवारे नौबत नहीं आएगी इस उम्मीद के साथ !
डॉ सुरेश खैरनार 13 सितंबर 2022, श्रीनगर

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