यमन में जारी जंग को 12 अप्रैल को पांच दिनों के लिए रोक दिया गया था. अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के दबाव में सउदी अरब युद्ध विराम पर सहमत हुआ. युद्ध विराम की अवधि खत्म हो जाने के बाद सउदी अरब एक बार फिर अपने लक्ष्य को पाने की कोशिश करने लग चुका है. सऊदी अरब का इस जंग में केवल एक लक्ष्य है और वह है राष्ट्रपति मंसूर हादी को सत्ता वापस लाना लेकिन अब तक यह साफ नहीं हो सका है कि वह अपने लक्ष्य को कैसे पूरा करेगा. हालांकि, दुनिया के विभिन्न प्रतिष्ठित लोगों के अलावा बहुत से सऊदी शहज़ादों ने भी यमन पर हमलों का विरोध किया था और इसे एक निरर्थक युद्ध बताया था, लेकिन शाह सलमान पर तो जैसे युद्ध का जुनून सवार था.
ओमान के शासक शाह क़ाबूस ने सऊदी अरब के शाह सलमान को मशविरा दिया था कि वह यमन में जंग न करें क्योंकि इससे वहां अराजकता पैदा होगी. यही मशविरा तत्कालीन शासक शहज़ादा मुक़रिन और विदेश मंत्री सऊद फैसल ने भी दिया था और सुल्तान सलमान को इस जंग में नहीं पड़ने की बात कही थी. ईराक के प्रधानमंत्री हैदर अलइबादी ने भी अपने संदेश में कहा था कि इस जंग से सिवाए संकट और नफरत के और कोई नतीजा नहीं निकलेगा. लेकिन शाह सुल्तान ने इन सभी मशविरों कोे ख़ारिज कर दिया और यमन में जंग छेड़ दी. इस जंग में अब तक तकरीबन एक हज़ार लोगों की मौत हुई है और 2 हज़ार से अधिक लोग घायल हुए हैं, जबकि हज़ारों लोग बेघर हुए हैं.
जंग का आग़ाज़ करने के बाद सऊदी अरब ने यमन के हवाई अड्डे से लेकर बंदरगाहों तक सभी तरह की गतिविधियों पर पाबंदी लगा दी थी, जिस कारण बड़ी संख्या में विदेशी नागरिक वहां फंस गए थे. इसके बाद भारत ने शाह सलमान से बात करके फंसे हुए अपने सभी नागरिकों को विदेश राज्य मंत्री जनरल वीके सिंह के नेतृत्व में ऑपरेशन राहत चलाकर सुरक्षित बाहर निकाल लिया था. सभी वायु और समुद्री रास्ते बंद होने की वजह से राहत का काम रुक गया, इस वजह से वहां खाद्य समाग्री सहित दवाईयों की गंभीर किल्लत हो गई. इस वजह से सऊदी अरब के ऊपर अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ने लगा कि वह युद्ध विराम की घोषणा करे. ताकि पीड़ितों तक राहत और सहायता सामग्री पहुंचाई जा सके. आख़िरकार पांच दिनों के लिए युद्धविराम की घोषणा की गई. यह एक अस्थायी युद्धविराम था. इसके बाद सऊदी अरब दोबारा युद्ध की कार्रवाई में लग गया. लेकिन यहां सबसे जरूरी सवाल यह उठता है कि क्या सऊदी अरब इस जंग में किसी नतीजे तक पहुंच पायेगा?
विश्लेषकों का मानना है कि सऊदी अरब यमन में एक ऐसी बेवजह की जंग लड़ रहा है, जिसका अंजाम 2006 में लेबनान की सीमा पर हिज्बुल्लाह के ख़िलाफ़ लड़ी जाने वाली जंग की तरह होगा, जिसमें इजरायल को कड़ी आलोचना झेलनी पड़ी थी. अगर इस जंग में सऊदी अरब सैन्य दृष्टि से सफल हो भी जाता है कि और हादी मंसूर के राष्ट्रपति भवन तक पहुंच जाते हैं तो भी वहां से हौतियों की बुनियादें ख़त्म नहीं की जा सकती हैं और हौतियों के लड़ाके हादी मंसूर के लिए मुश्किलें पैदा करते रहेंगे, जिससे गृहयुद्ध की स्थिति पैदा हो सकती है. दूसरी बात यह है कि इस जंग ने मुस्लिम दुनिया बल्कि स्वयं सऊदी अरब की जनता में सरकार को लेकर अविश्वसनीयता पैदा कर दी है. इसलिए सऊदी अरब यदि इस जंग को जीत भी जाता है तो भी इसे उसकी नैतिक हार ही समझा जायेगा.
सऊदी अरब यमन पर निरंतर हवाई हमले कर रहा है, लेकिन इस सच्चाई से इंकार नहीं किया जा सकता है कि हवाई हमलों से किसी युद्ध को जीता नहीं जा सकता है. इसके लिए ज़मीनी लड़ाई जरूरी होती है. यही कारण है कि अब तक सैकड़ों हवाई हमले हो चुके हैं, लेकिन सऊदी अरब न तो हौतियों से यमन को खाली करा सका है और न ही हादी को यमन के के राष्ट्रपति भवन तक पहुंचा सका है, और यह उस समय तक संभव नहीं है जब तक कि सऊदी अरब की सेना ज़मीन पर उतरकर हौतियों और अंसार उल्लाह के लड़ाकों का मुक़ाबला न करे, लेकिन ज़मीन पर उतरकर लड़ना सऊदी अरब और उसके सहयोगियों के लिए बहुत मुश्किल है. क्योंकि सऊदी अरब और उसके सहयोगियों को ज़मीनी लड़ाई लड़ने का अनुभव नहीं है. हां अगर पाकिस्तान सऊदी अरब के सहयोगियों में शामिल होता तो उसे ज़मीनी जंग में सफलता मिल सकती थी. क्योंकि पाकिस्तान की सेना को जमीनी लड़ाई के लिए ट्रेंड है, लेकिन उसने सऊदी अरब का साथ देने से साफ इंकार कर दिया है. इसलिए यह कहना सही होगा कि सऊदी अरब एक ऐसी जंग लड़ रहा है जो किसी भी नतीजे तक नहीं पहुंच पायेगी. यह जंग जब भी ख़त्म होगी तो नाकामी सऊदी अरब के ही हिस्से में आयेगी. अब यह जंग जितनी जल्दी ख़त्म या जितनी देर से खत्म होगी उसी हिसाब से नाकामी सऊदी अरब के हाथ लगेगी.
बहरहाल, इस पांच दिन के युद्धविराम पर यूरोपी देशों समेत हौतियों की ओर से भी प्रसन्नता देखने को मिली, लेकिन अब सऊदी अरब की रणनीति क्या होती है और वह जंग के इस दलदल से बाहर कैसे निकलेगा, यह सऊदी अरब के नये शासक को सोचना है. जितने अनुभवी मंत्रियों ने इस युद्ध का विरोध किया था, उन्हें शाह सलमान ने बर्ख़ास्त करके किनारे कर दिया है और अब जिनके हाथों में देश की बागडोर है वे राजनीतिक मैदान में अनुभवहीन हैं. पूर्व शहज़ादे मुक़रिन बिन अब्दुल अज़ीज़ और सऊद फैसल, जिन्होंने ने इस जंग का विरोध किया था, उन्हें इस परिदृश्य से हटा दिया गया है. अहमद बिन अब्दुल अज़ीज़ को भी ख़ारिज कर दिया गया है. अब इस स्थिति से निबटने के लिए कौन सी रणनीति अपनाई जायेगी यह तो आने वाला वक्त ही बतायेगा.