भोजपुरी को संविधान की 8वीं अनुसूची में शामिल करने को लेकर किए गए नेताओं के वायदे महज जुमले बनकर रह गए हैं. साल 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान नरेंद्र मोदी सहित कई भाजपा के कई नेताओं ने वादा किया था कि यदि केंद्र में भाजपा की सरकार बनी तो भोजपुरी को संंविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया जाएगा. केंद्र में एनडीए सरकार का गठन हुए तकरीबन दो साल का वक्त पूरा होने वाला है लेकिन सरकार ने अब तक भोजपुरी को लेकर अपनी स्थिति स्पष्ट नहीं की है. उनका यह चुनावी वादा भी जुमला बनता दिखाई पड़ रहा है. भोजपुरी को संवैधानिक दर्जा दिए जाने में हो रही देरी की वजह से यह आंदोलन बड़ा होता जा रहा है. गांधी की कर्मभूमि चंपारण से दिल्ली के जंतर-मंतर तक इसके लिए धरना-प्रदर्शन व बैठकों का दौर तेज हो चला है.
अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के उपलक्ष्य में 21 फरवरी, 2016 को भोजपुरी जन-जागरण अभियान के तत्वावधान में भोजपुरी को संवैधानिक भाषा का दर्जा दिलाने के लिए दिल्ली के जंतर मंतर में धरना-प्रदर्शन किया गया. धरने में देश भर के भोजपुरी भाषी लोगों ने हिस्सा लिया.
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धरना-प्रदर्शन में बेतिया के भोजपुरी एवं हिंदी के राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कवि गोरख मस्ताना अस्वस्थ होने के बावजूद उपस्थित थे. भोजपुरी फिल्मों की बदौलत नाम और पैसा कमाने वाले अभिनेताओं की चुप्पी पर भी धरने में आक्रोश व्यक्त किया गया. जंतर-मंतर से अपील की गई कि भोजपुरी फिल्मों से जुड़े कलाकार भी इस आंदोलन में सहयोग करें. इसके साथ भोजपुरी को बदनाम करने वाले भद्दे गानों और द्वइर्थी संवादों का विरोध करने का भी निर्णय यहां लिया गया. पिछले दिनों बिहार के मोतिहारी में ऐसी फिल्मों के पोस्टरों को हटाने की मुहिम भी चलाई गई थी.
गौरतलब हो कि पूरे विश्व में भोजपुरी बोलने वालों की संख्या 25 करोड़ से भी ज्यादा है. यह भाषा सिर्फ बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड, छत्तीसगढ़ आदि राज्यो में ही नहीं अपितु भारत के बाहर भी तकरीबन बारह देशों में बोली जाती है. इतनी समृद्धशाली भाषा को देश के बाहर कई देशों में मान्यता मिली हुई है. लेकिन यह दुख की बात है कि भोजपुरी अपने ही देश में अपनों के बीच हक़ नहीं मिल पा रहा है.
भोजपुरी भाषा मान्यता आंदोलन के तत्वाधान में संचालित भोजपुरी जन-जागरण अभियान देश भर में चल रहा है. इसके अंतर्गत भोजपुरी साहित्य-संस्कृति को सहेजने का काम भी हो रहा है. पिछले साल दिसंबर में जब इसी विषय पर धरना किया था. तब भाजपा के कई सांसदों ने कहा था कि भोजपुरी भाषी अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के दिन भोजपुरी को संवैधानिक दर्जा मिलने की खुशी मनाएंगे. लेकिन अब तक यह वादा पूरा नहीं हो सका है. धरने में निर्णय लिया गया कि सरकार बजट सत्र के दौरान सरकार भोजपुरी को संवैधानिक दर्जा देने की पहल नहीं करती है तो भोजपुरी भाषी क्षेत्रों के सांसदों का घेराव किया जाएगा.