सीबीआई के स्पेशल जज बीएच लोया की संदिग्ध मौत का मामला भले ही मीडिया की सुर्ख़ियों में ना हो लेकिन इस मामले में आज सुप्रीम कोर्ट अपना फैसला सुना दिया है. बता दें कि जब ये मामला प्रकाश में आया था तब इस मामले की निष्पक्ष जांच करवाने की मांग की गयी थी. जांच कराने की मांग वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के बाद कहा है कि इस मामले में कोई जांच नहीं होगी, केस में कोई आधार नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चार जजों के बयान पर संदेह का कोई कारण नहीं है. उनके बयान पर संदेह करना संस्थान पर संदेह करना जैसा होगा.
यही नहीं सुप्रीम कोर्ट ने यहाँ तक खा है कि इस मामले के ज़रिये न्यायपालिका को बदनाम करने की कोशिश की जा रही है. कांग्रेस नेता तहसीन पूनावाला, पत्रकार बीएस लोने, बांबे लॉयर्स एसोसिएशन सहित अन्य कई पक्षकारों की ओर से दायर विशेष जज बीएच लोया की मौत की निष्पक्ष जांच की मांग वाली याचिकाओं पर चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन जजों की पीठ ने फैसला सुनाया.
बता दें कि जिस तरह से जज लोया की मौत हुई थी वो बेहद ही संदिग्ध थी. हालाकि जिस वक्त लोया की मौत हुई थी तब इसे हार्ट अटैक बताया गया था लेकिन बाद में जज लोया की बहन ने भाई की मौत को लेकर सवाल उठाए थे. इसके बाद यह मामला मीडिया में आ गया था. इस मामले की सुनवाई के दौरान महाराष्ट्र सरकार की ओर से वरिष्ठ वकील और पूर्व अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने दलील दी थी कि याचिकाकर्ता सिर्फ इस मामले को तूल देना चाहते हैं. याचिकाकर्ता यह संदेश फैलाने की कोशिश कर रहे हैं कि जज, पुलिस, डॉक्टर सहित सभी की मिलीभगत रही.
रोहतगी ने कहा कि ये घातक प्रचलन है, लिहाजा इसे रोका जाना चाहिए. जजों को संरक्षण देना भारत के मुख्य न्यायाधीश का कर्तव्य है और उनके द्वारा यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि कानून का शासन चलता रहे.
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रोहतगी ने जज लोया की मौत को लेकर संदेह जताने वाली खबरों को झूठा बताया. उन्होंने कोर्ट से कहा कि याचिकाओं में बेतुकेपन की सीमा लांघ दी गई है. एक याचिकाकर्ता का कहना है कि एक साथी जज के परिवार के शादी समारोह में जज लोया के साथ शामिल होने गए चार अन्य जजों की भूमिका संदिग्ध है.