यह मेरे साडू भाई डॉ देवेंद्र तुरसकर जी है ! आज उनके नाम के आगे डॉ लगा है ! लेकिन यह साहब की जीवन की शुरुआत आजसे सत्तर साल के भी पहले एक कंपाउंडर के रूप मे शुरू हुई है ! और उसके बाद जो डाक्टर बनने का संकल्प किया तो आज वह भंडारा शहर के सबसे पहले सर्जन बनकर तुरसकर नर्सिंग होम पचास साल से चला रहे ! लेकिन यह सफर किसी फिल्म से कम नही है !
जिस तरह से उन्होंने यह सफर तय किया है तो उन्होंने हालहिमे अपनी आत्मकथा जिद्दी चे शिल्पकार (दृढ संकल्प के शिल्पकार) में लिखा है कि भंडारा शहर के उत्तरी दिशा के चार किलोमीटर दूर महादूला नाम के गाँव के एक सामान्य किसान-मजदूर परिवार में पैदा हुआ लडका जिसको रोज पढने के लिए चार किलोमीटर दूर भंडारा पैदल चलकर वापस आना पडता था ! और गरीबी के कारण कई-कई बार आधे पेट खाना खाकर सोने की कोशिश करता था लेकिन भूख के कारण निंद नहीं आती थी ! लेकिन अपने गांव में किसी के बिमार होने के बाद एक सूट-बूट पहना हुआ और गले में टेथॅस्कोप लगाए हुए डॉ सावरकर भंडारा से आने वाले को देखकर यह लडका जिसको नहीं ढंग का खाना मिलता था और नाही कपड़े !
बाकायदा टुकडे जोडकर सिली हुई चड्डी और किसी का शादी का हल्दी से पीला रंग की धोती से बनाई शर्ट पहनकर स्कूल जाना पडता था ! और मनमे सपने पाल रहा था डॉक्टर साहब बनने का ! और डॉक्टर बनने के लिए सायंस विषय आवश्यक है कि नहीं यह भी मैट्रिक की परीक्षा के लिए उसे पता नहीं था ! इस कारण वह मैट्रिक की परीक्षा के बाद कंपौडर के कोर्स में दाखिल हुआ ! उसके बाद मनसर की खदानों के अस्पताल में कंपौडर बना ! और ऊस नौकरी में मुख्य डाक्टर साहब ने झूठमूठ का आरोप लगाया तो आहत होकर बचपनसे पाला हुआ सपना जाग उठा तो कंपौडर को डी एम पी नाम का डिप्लोमा पाठ्यक्रम की योजना पता चली तो वह उस कोर्स में दाखिल हुआ और साडे तीन साल की कडी मेहनत से डी एम पी में डिस्टिंगशन से पास होने के बाद भंडारा में आकर अपनी डिस्पेंसरी शुरू कर दिया !
भंडारा शहर के किसी एक सीरियस पेशंट का डायग्नोसिस इस डी एम पी वाले ने किया लेकिन उस शहर के सिविल सर्जन की ट्रीटमेंट उस पेशंट को चल रही थी (1960-61) तो पेशंट के रिश्तेदारों को लगा कि यह छोटा डाक्टर का क्या सुनना? लेकिन वह पेशंट मर गया तो डॉ देवेंद्र तुरसकर को बहुत बुरा लगा और उसने दोबारा ठाना कि अब मैं भी बडा डाक्टर बनने के बाद ही भंडारा शहर वापस आऊंगा ! और उस समय डी एम पी वाले एमबीएस को जा सकते थे ! तो उन्होंने नागपुर मेडिकल कॉलेजमे 1962 में अड्मिशन मीली ! और दस साल की जद्दो-जहद के बाद एम एस इन जनरल सर्जरी जैसी डीग्री हासिल कर के संपूर्ण भंडारा में पहले सर्जन बनकर तुरसकर नर्सिंग होम 1972 मे शुरू किया ! अगले साल उनके सर्जन बनकर प्रैक्टिस करने की अर्धशताब्दि पुरी हो रही है और अब तो उनके दोनों बेटे और बहू के कारण मल्टिस्पेशालिटी हास्पीटल की तैयारी चल रही है जिसके एक ही छत के नीचे सभी तरह की जाँच और इलाज की सुविधा होगी !
आज डॉ देवेंद्र तुरसकर भंडारा शहर के सबसे पहले सर्जन बनकर अठ्याशी साल पार कर रहे हैं ! है ना हिंदी सिनेमा के लिए बढीया स्टोरी ? सचमुच विलक्षण कष्ट करने के बाद एम एस इन जनरल सर्जरी जैसी डीग्री हासिल कर के ! संपूर्ण भंडारा और अब नया जिला गोंदिया तक उनके पेशंट रहे हैं ! अब तो उनके दोनों बेटे और एकमात्र लडकी भी डाक्टर है और अब तीसरी पीढ़ी का नाती भी पाॅदेंचेरी के मेडिकल कॉलेज में पढ रहा हैं !
डॉ देवेंद्र तुरसकर जो आज 88 साल के हो गए हैं और आज भी नियमित रूप से अपनी ड्यूटी निभा रहे हैं ! कर्मयोगी जैसे अपने रुग्ण सेवा के काम को सत्तर साल से निभा रहे हैं ! मैं खुद पचास साल से भी ज्यादा समय हो रहा है सार्वजानिक जीवन में हूँ ! लेकिन इस तरह के कर्मयोगी, जो कभी भी अपने काम की मार्केटिंग नहीं करते हुए !( मुझे मेरे परिचय के एक दर्जन से अधिक डाक्टर मित्रों को अपने पेशे के साथ अपनी इमेज बिल्डींग कर के दुनिया भर के पुरस्कार प्राप्त करने के कारण यह बात लिखनी पड रही है ! क्योंकि डाक्टर तुरसकर जैसे शेकडो डाक्टर है कि वह जो बगैर मार्केटिंग किए मेडिकल एथिस्क की हिप्पोक्रोटस की शपथ का निर्वाह करते हुए इमानदारी के साथ अपना व्यवसाय कर रहे हैं ! और अपने आप को इस तरह के सेवा में खपाकर संपूर्ण जीवन व्यतीत कर देते हैं !
डॉ तुरसकर सलाम आपको और आपके बगल में बैठी आपकी जीवन संगीनी मेडम खैरनार की बडी बहन डाॅ सीमा तुरसकर को जिन्होंने आपकों यहाँ तक आने के लिए हरसंभव सहयोग दिया है ! और यह फोटो उनके भंडारा स्थित आवास का दो साल पहले का है ! जब मै नार्थ ईस्ट से वापस लौट कर आया था तो मेरे पास काफी नागा ,बोडो, कर्बी तथा असमिया भेंट वस्तुओं का संग्रह हो गया है तो उसमें से कुछ डाक्टर साहब और मेडम तुरसकर को देने के लिए विशेष रूप से मै भंडारा गया था ! डाक्टर साहब जुग-जुग जियो ! और आपके दुसरी पीढी द्वारा शुरू किए जा रहे मल्टिस्पेशालिटी हास्पीटल को भी आप अपने अनुभव का फायदा देंगे इसी अपेक्षा के साथ आपके 88 साल पूरे होने पर हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई हो !