इस कहावत की याद अनुराग ठाकुर के संसद में राहुल गांधी को खुद को अपनी जाती का पता नही ! और वह जातींगत जनगणना की मांग कर रहे हैं ! ( भले ही उन्होंने नाम नहीं लिया होगा ! ) और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे अपने ट्विटर पर पोस्ट करने की बचकानी हरकत को देखकर, मुझे किसानों के खिलाफ तीन बिलों को राज्यसभा में हरिवंशजी जो राज्यसभा के उपसभापति है ! उन्होंने तथाकथित आवाजी मतदान से पारित होने का ऐलान करने के बाद ( जो हरतरह से गलत था ! ) उस निर्णय के खिलाफ विरोधी दलों के सदस्यों ने संसद परिसर में महात्मा गांधी की प्रतिमा के सामने धरना दिया था ! और उसे लेकर हरिवंशजी ने अपने तथाकथित अंतरात्मा की आवाज का हवाला देते हुए एक चिठ्ठी लिखि थी, जिसमें उन्होंने मेरा निर्णय कितना सही था !
यह तर्क देने की कोशिश की है ! उस चिठ्ठी को भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने ट्विटर पर पोस्ट करने की जल्दबाजी की है ! इन दोनों संसदीय प्रसंगों से यही पता चलता है, कि अनुराग ठाकुर हो या हरिवंश हो इनके वक्तव्य सिर्फ उनके नही रह जाते हैं ! वह 145 करोड़ आबादी के देश के प्रधानमंत्री के ट्विटर पर ले लेने के बाद, उनके औचित्य का सवाल और भी महत्वपूर्ण हो जाता है ! क्योंकि उसी तथाकथित किसानों के खिलाफ राज्यसभा में आवाजी मतदान से पारित तीनों बीलो को प्रधानमंत्री को किसानों के विरोध को देखते हुए रद्द करने की घोषणा करनी पड़ी है ! तब हरिवंशजी के अंतरात्मा की आवाज से निकले हुए पत्र का क्या महत्व रह जाता है ?
वैसे ही एक तरफ हम जाती- पाती के राजनीति के खिलाफ है ! ऐसा बोलते रहना ! और समय – समय पर अपनी या दुसरे की जाती उछालने का टुच्चापन करते रहनेवाले लोग घोर जातीयवादी है ! यह बात किसी से भी छुपी नहीं है ! डॉक्टर बाबासाहब आंबेडकर ने जातीं को समाप्त करने का एकमात्र उपाय आंतरजातीय शादी करना कहा है ! और राहुल गांधी के माता-पिता ने अगर इस तरह की शादी की है ! तो उसे भारत के सबसे बड़े सभागार में, लोकसभा में जाती का पता नहीं ! और जातीनिहाय जनगणना की बात कर रहे हैं ? यह सवाल पुछना घोर जातीयवादी और घोर सांप्रदायिकतावादी लोग ही कर सकते हैं !
क्योंकि अनुराग ठाकुर हो या नरेंद्र मोदी का मातृसंघठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, भारत की जातीव्यवस्था को यथावत बनाएं रखने के लिये सौ वर्ष से लगातार कोशिश कर रहा है ! इसलिए वह समता की जगह समरसता की बात करते हैं ! मतलब जो जिस जाती में है, उसने उसी में रहते हुए समरस होना चाहिए ! समता में बराबरी की बात है ! इसलिए संघ कभी भी समता शब्द का इस्तेमाल नहीं करता है ! उसके एवज में समरसता शब्द का इस्तेमाल करते हैं !
26 नवंबर 1949 को डॉ. बाबासाहब आंबेडकर ने जब संविधान सभा में हमारे संविधान को राष्ट्रार्पण करने की घोषणा की थी ! तो उस के बाद संघ के मुखपत्र ऑर्गनायझर में लिखा गया है, कि यह संविधान पाश्चात्य देशों के विभिन्न संविधानों के टुकड़े लेकर गुदढी जैसे बनाया गया है ! इसमें भारतीयत्व का कुछ भी अंश नहीं है ! जो हमारे ऋषि मनू ने हजारों वर्ष पहले, ‘ मनुस्मृति’ ग्रंथ में लिखा हुआ, होने के बावजूद ! इस संविधान में उसका कुछ भी समावेश नही है ! और यही बात तत्कालीन संघ प्रमुख श्री. माधवराव सदाशिवराव गोळवरकर ने अपनी ‘बंच अॉफ थॉट’ शिर्षक की किताब में भी लिखा है ! जिस मनुस्मृति में जातीव्यवस्था का पुरजोर समर्थन किया है ! और यही पढ़ने के बाद डॉ. बाबासाहब आंबेडकर ने 27 दिसंबर 1927 के दिन महाड में ‘मनुस्मृति’ का सार्वजनिक रूप से दहन किया है ! उन्होंने लिखा हुआ संविधान की जगह मनुस्मृति होनी चाहिए ! यह कहना किस मानसिकता का परिचायक है ?
और इसिलिये अनुराग ठाकुर या नरेंद्र मोदी इस तरह की बातों का समर्थन किया करते हैं ! हालांकि कल ही उच्च सदन राज्यसभा के सभापति महाशय श्री. जगदीप धनकडजी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बारे में टिप्पणी करने वाले, समाजवादी पार्टी के राज्यसभा सदस्य श्री. रामजीलाल सुमन को सभागार में कहा कि संघ की आलोचना करना संविधान के खिलाफ है ! और संविधान को रोंदने के जैसा है ! श्री. जगदीप धनकडजी आज देश के उपराष्ट्रपति है ! और वह खुद ही अपना वकील होने की बात बोलते रहते हैं ! तो उन्हें मालूम होना चाहिए कि जिस संघ के उपर टिप्पणी करना संविधान के खिलाफ है ! और वह संघ संविधान को पहले दिन से ही नकार चुका है ! तो सबसे पहले उपराष्ट्रपति महोदय को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को भारत के संविधान को स्वीकार करने के लिए कहना चाहिए क्योंकि संघ के लोग समय समय पर हम भारत के संविधान को बदल कर ही रहेंगे यह बोलते रहते हैं ! यहां तक कि लोकसभा चुनाव में चारसौ का आंकड़ा पार लगाने के लिए दिया गया नारे के बारे में भी भाजपा के तरफसे चुनाव प्रचार करने वाले लोगों ने यह बात कही है !
इसमें धनकडजी हो या नरेंद्र मोदी दोनो ही अपने जीवन की शुरुआत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा से हुई है ! तो इनके जाती धर्म तथा संघ के बारे में विचार एक जैसे होना स्वाभाविक है ! क्योंकि अंग्रेजी में एक शब्द है रेजिमेंटेंशन इसके वजह से संघ की शाखा से निकलने वाले किसी भी स्वयंसेवक के विचार भी रेजिमेंटेंशन की वजह से बचपन से ही बन जाते हैं ! और वह इस तरह की हरकतें करते हैं ! भले वह देश के सर्वोच्च पद पर क्यों न बैठे हो !
सवाल उन्हें इन पदों पर बैठाने वाले लोगों का है ! जो जर्मनी में भी आज से सौ वर्ष पहले इस तरह का चुनाव के प्रचार में प्रथम विश्वयुद्ध में जर्मनी की शर्मनाक हार की वजह से उसी युद्ध में एक सिपाही रहा हुआ अडॉल्फ हिटलर नाम के सिपाही ने उस युद्ध के बाद जर्मनी में इस हार के लिए, यहुदी कम्युनिस्ट तथा समाजवादी पार्टी जिम्मेदार हैं ! बोलते हुए और यहुदी समुदाय, समाजवादी तथा कम्युनिस्ट पार्टियों के खिलाफ झुठे प्रचार करने के लिए ! तत्कालीन मिडिया जो उसने अपने तरफसे कर लिया था ! और वह जल्द ही जर्मनी के सर्वोच्च पद पर जिसे चांसलर बोला जाता है ! हिटलर चांसलर बनने में कामयाब रहा था ! आज भारत में हूबहू उसीकी नकल कर रहे, राष्ट्रिय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों को भारत में भी महत्वपूर्ण पदों पर आने के लिए 1925 में स्थापित किया गया संघ, के देश भर में फैले हुए स्वयंसेवकों की वजह से आज यह कामयाबी हासिल हुई है ! इसलिए इन्होंने चुनाव जितने के बाद सरकारी कर्मचारियों को संघ की गतिविधियों में शामिल होने की बंदी हटा दी है ! और इसिलिये इन सभी मुद्दों पर, यह लोग इस तरह की बातें करते हैं !