झारखंड सरकार के ओडीएफ के दावे पर केंद्र के विभागीय मंत्री की बात ही सवालिया निशान लगाती है. केन्द्रीय पेयजल एवं स्वच्छता राज्य मंत्री एसएस अहलुवालिया का कहना है कि झारखंड को अक्टूबर 2018 तक ओडीएफ का लक्ष्य प्राप्त करना है और इसके लिए राज्य सरकार को हर दिन 4200 शौचालय बनाने होंगे. झारखंड में अभी तक तीन लाख शौचालय बन चुके हैं और लगभग 14 लाख शौचालय और बनने हैं.
झारखंड में स्वच्छता अभियान की शुरुआत बड़े जोर-शोर से हुई थी. झारखंड को खुले में शौच से मुक्त करने (ओडीएफ) के प्रयासों को लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने मुख्यमंत्री रघुवर दास एवं इस अभियान से जुड़े नेताओं की पीठ भी थपथपा दी. आनन-फानन में पूरे राज्य को खुले में शौच से मुक्त घोषित भी कर दिया गया. लेकिन जब हकीकत सामने आई, तो पता चला कि सरकार ने अधिकांश शौचालय कागजों पर ही बना डाले हैं. विडंबना बस यहीं पर समाप्त नहीं होती, खुले में शौच से मुक्त किए जा चुके गांवों में ही बाहर शौच के लिए जाने वाली लड़कियां हादसों का शिकार हो रही हैं. उन गांवों में मुख्यमंत्री के इलाके वाले गांव से लेकर वो गांव भी शामिल हैं, जहां से झारखंड को शौच से मुक्त करने की शुरुआत हुई थी. खुले में शौच करने जाने वाली युवतियों व महिलाओं के साथ छेड़खानी की घटनाएं तो पहले से ही प्रशासन के लिए सरदर्द बनी हुई हैं, अब तो अपहरण और दुष्कर्म की घटनाएं भी सामने आने लगी हैं.
लम्बी है घटनाओं की फेहरिश्त
कोडरमा जिले के मरकच्चों प्रखंड स्थित भगवतीडीह गांव 23 सितम्बर 2017 को ओडीएफ घोषित हुआ था. इस गांव से ही ओडीएफ की शुरुआत हुई थी और कोडरमा के तत्कालीन उपायुक्त ने स्वयं गड्ढा खोदकर इस योजना की शुरुआत की थी, पर इसी गांव की बारह वर्षीय बच्ची मधु अपने घर में शौचालय नहीं होने के कारण पास के खेत में अहले सुबह शौच करने गई, जहां एक दर्जन अवारा कुत्तों ने उसपर हमला बोल दिया. कुत्ते उस बच्ची के शरीर के कई हिस्सों को नोचकर खा गए. बच्ची की चीख-पुकार सुनकर ग्रामीण दौड़े, लेकिन तब तक मधु की मौत हो चुकी थी.
मृतिका की मां चमेली देवी का कहना है कि घर में शौचालय नहीं होने के कारण उनका पूरा परिवार खेत में ही शौच करने जाता था, लाज शर्म के कारण घर की महिलाएं अंधेरे में ही जाती थीं. उनका कहना है कि उन्होंने शौचालय बनाने के लिए आवेदन दिया था. दर्जनों बार ऑफिस का चक्कर लगाया, पर शौचालय नहीं बन सका. लेकिन इसे लेकर स्थानीय प्रखण्ड विकास पदाधिकारी ज्ञानमणि एक्का का कहना है कि सर्वे की सूची के अनुसार, इस घर में शौचालय बनाया गया था, जल्द ही फिर से सर्वे कराया जाएगा और जहां शौचालय नहीं बना है, वहां शौचालय बनाने की प्रक्रिया जल्द ही शुरू की जाएगी.
प्रखण्ड विकास जिस सर्वे सूची का हवाला दे रहे हैं, वो देखने पर पता चलता है कि मृत बच्ची के परिजनों का नाम उस सूची में था ही नहीं. 60 घरों वाले इस गांव में केवल 40 घरों में ही शौचालय बन सका है. इस तरह की यह कोई पहली घटना नहीं है. झारखंड के ओडीएफ होने के दावों के बाद भी इस तरह की सैकड़ों घटनाएं राज्य में हो चुकी हैं. हाल ही में पाकुड़ के लिट्टीपाड़ा में, घर में शौचालय नहीं होने के कारण खेत में शौच करने गई एक 15 वर्षीय लड़की का अपहरण कर सामूहिक दुष्कर्म के बाद उसका सिर पत्थर से कुचलकर हत्या कर दी गई थी. किशोरी के पिता ने कुछ अज्ञात लोगों के खिलाफ थाने में प्राथमिकी दर्ज कराई और पुलिस ने कार्रवाई का भरोसा दिया. गौरतलब है कि इस अनुमंडल के पूरे 307 गांवों को भी ओडीएफ घोषित किया जा चुका है.
ऐसी भी कई घटनाएं सामने आ रही हैं, जहां लोगों की तमाम कोशिशों के बावजूद प्रशासन की तरफ से उन्हें शौचालय बनाने में कोई मदद नहीं की गई. दुमका में एक ऐसी घटना सामने आई, जहां घर में शौचालय नहीं होने के कारण एक युवती ने आत्महत्या कर ली. दुमका जिले के बुधानी पंचायत की खुशबू ने शौचालय के लिए मुखिया के पास आवेदन भी दिया था, लेकिन कई बार के भाग-दौड़ के बाद भी उसके आवेदन पर कोई कार्रवाई नहीं हुई. मृतका के पिता श्रीपति यादव सिद्धो-कान्हू विश्वविद्यालय के कुलपति की गाड़ी चलाते हैंं. खुशबू अपने परिवार से हमेशा यह कहा करती थी कि परिवार के सभी लोगों को खुले में शौच के लिए जाना होता है, इससे बेहद शर्मिंदगी उठानी पड़ती है.
इस गांव के लोगों को शौच के लिए एक-एक किलोमीटर दूर जाना पड़ता है. सरकारी फाइलों में देखें, तो पता चलता है कि इस पूरे इलाके में पेयजल एवं स्वच्छता विभाग द्वारा लाखों की संख्या में शौचालय का निर्माण कराया गया. लेकिन जमीन पर उनका कहीं अता-पता नहीं है. 70 परिवारों वाले इस गांव में अब तक आधे घरों में ही शौचालय बन सका है. खुशबू की आत्महत्या ने केन्द्र एवं राज्य सरकार के स्वच्छता अभियान की पोल खोलकर रख दी है. इस घटना के बाद जिला प्रशासन की नींद खुली और जिले के उपायुक्त राहुल कुमार सिन्हा ने शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों में शौचालय विहीन घरों का सर्वे कर रिेपोर्ट देने को कहा है. उपायुक्त का कहना है कि जिन घरों में शौचालय नहीं बने हैं, वहां जल्द ही शौचालय निर्माण का कार्य शुरू कराया जाएगा.
मुख्यमंत्री का वार्ड भी शौचालय विहीन
जहां पूरी सरकार बैठती हैं, उस शहर को भी ओडीएफ घोषित किया जा चुका है, लेकिन सबसे आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि जिस वार्ड में मुख्यमंत्री का सरकारी आवास है, वहां भी अधिकांश घर अभी शौचालय विहीन हैं और लोग खुले में शौच करने को मजबूर हैं. यहां भी प्रशासन के दावे जमीनी हकीकत से कोसो दूर हैं. रांची नगर निगम के अधिकारियों का कहना है कि रांची के सभी घरों में शौचालय का निर्माण हो चुका है, लेकिन स्थानीय घरों में पड़ताल करने पर पता चलता है कि प्रशासन के दावे हवा हवाई हैं.
इस कमी पर निगम के अधिकारी यह कहकर पर्दा डालते हैं कि अधिकांश क्षेत्रों में सुलभ इंटरनेशनल द्वारा सार्वजनिक शौचालय बनाया गया है, लोगों को उनका भी उपयोग करना चाहिए. निगम की इस सलाह को लेकर स्थानीय लोगों से पूछे जाने पर लोगों का कहना है कि यहां शौचालय जाना खाना खाने से भी महंगा है. मुख्यमंत्री दाल-भात योजना के तहत खाना तो पांच रुपए में मिल जाता है, लेकिन सुलभ इंटरनेशनल के लोग शौचालय जाने का शुल्क दस रुपए लेते हैं. यह तथ्य वास्तव में हैरान करने वाला है कि झारखंड की राजधानी में, वो भी मुख्यमंत्री के सरकारी आवास वाले वार्ड में लोगों के पास शौच का साधन नहीं है.
झारखंड सरकार के ओडीएफ के दावे पर केंद्र के विभागीय मंत्री की बात ही सवालिया निशान लगाती है. केन्द्रीय पेयजल एवं स्वच्छता राज्य मंत्री एसएस अहलुवालिया का कहना है कि झारखंड को अक्टूबर 2018 तक ओडीएफ का लक्ष्य प्राप्त करना है और इसके लिए राज्य सरकार को हर दिन 4200 शौचालय बनाने होंगे. झारखंड में अभी तक तीन लाख शौचालय बन चुके हैं और लगभग 14 लाख शौचालय और बनने हैं. इधर राज्य सरकार का दावा है कि राज्य के सभी शहरी क्षेत्र खुले में शौच से मुक्त हो चुके हैं.
नगर विकास विभाग के अधिकारियों का कहना है कि ढाई लाख शौचालय बन चुके हैंं. नगर विकास विभाग के सचिव राजेश शर्मा ने कहा है कि जो लक्ष्य था उसे पूरा किया जा चुका है. लेकिन सरकार के ही मंत्री इसपर सवाल उठाते हैं. झारखंड के नगर विकास मंत्री सीसी सिंह का कहना है कि सिर्फ ताली बजवाने के लिए पूरे राज्य को ओडीएफ घोषित कर दिया गया है. उन्होंने कहा कि कुछ माह पहले ही विभाग ने राज्य को खुले में शौच से मुक्त घोषित कर दिया, लेकिन अभी भी राज्य में लाखों शौचालय बनने बाकी हैं और जो बने हैं, वो भी आधे-अधूरे हैं. स्वच्छता अभियान की समीक्षा बैठक में नगर विकास मंत्री अधिकारियों पर जमकर बरसे और अधिकारियों से कहा कि वे कागजी आंकड़ों में विश्वास नहीं करें और झूठे दावों से बचें.
झारखंड सरकार के दावों पर युनिसेफ ने लगाया सवालिया निशान
राज्य सरकार जो भी दावा करे, पर सच्चाई यही है कि 32 हजार गांव वाले झारखंड में अब तक केवल 25 सौ गांवों में ही शौचालय का निर्माण हो सका है. राज्य के 4431 पंचायतों में से मात्र 27 पंचायत ही अब तक सही मायने में ओडीएफ हैं. झारखंड सरकार ने 26 लाख शौचालय बनाने का लक्ष्य रखा था, लेकिन सरकारी आंकड़े ही बताते हैं कि अब तक मात्र तीन लाख शौचालय ही बन सके हैं. इस हकीकत को नजरअंदाज करते हुए राज्य सरकार ने पूरे राज्य को ओडीएफ घोषित कर दिया है.
ऐसा भी नहीं है कि जो शौचालय बने हैं, वे अब तक सुचारू रूप में हैं. युनिसेफ के सेनिटेशन अधिकारी ने बीते दिनों कहा कि झारखंड सरकार द्वारा राज्य में जो शौचालय बनाए गए हैं, उनमें से 75 प्रतिशत का अस्तित्व अभी ही खत्म हो गया है. जो शौचालय बनाए गए हैं, वे भी न तो हाईजेनिक हैं और न ही उपयोग के लायक हैं. युनिसेफ का यह भी कहना है कि इस योजना का आकार ही गलत है. साढ़े बारह हजार रुपए में शौचालय का निर्माण किया ही नहीं जा सकता है. इन सबके बीच मुख्यमंत्री रघुवर दास ने फिर दावा किया है कि 2018 तक हर हाल में झारखंड ओडीएफ का अपना लक्ष्य पूरा करेगा. उन्होंने कहा कि इसमें हमें जनसहयोग की आवश्यकता है. लोगों को अपनी सोच भी बदलनी होगी. मुख्यमंत्री ने दावा किया कि हजार दिनों में एक लाख नब्बे हजार शौचालय बना चुके हैं.