jkhandजहरीली शराब से सात मौतों की ताजातरीन वारदात के बाद एक बार फिर सामाजिक-सांस्कृतिक मंचों से झारखंड में बिहार की तर्ज पर शराबबंदी की मांग उठ रही है. कुछ राजनेता भी इसकी जरूरत पर बल दे रहे हैं. लेकिन कहीं न कहीं सत्तापक्ष अथवा विपक्ष की ओर से आधिकारिक बयान देने में संकोच भी कायम है. राज्य की भाजपानीत सरकार और विपक्षी दलों का अंदरूनी संकट यह है कि शराबबंदी पर जोर देने से आदिवासी समुदाय का एक बड़ा हिस्सा नाराज हो सकता है, क्योंकि हड़िया शराब उनके सांस्कृतिक जीवन का एक अहम हिस्सा है. झारखंड के आदिवासी धार्मिक आस्था को लेकर तीन हिस्सों में विभाजित हैं.

सरना धर्मावलंबियों के अलावा हिन्दू और ईसाई धर्म को मानने वाले आदिवासियों की बड़ी जमात है. झारखंड की स्थिति इस मायने में बिहार से भिन्न है कि बिहार में किसी समुदाय के सांस्कृतिक जीवन में शराब शामिल नहीं रही है. लेकिन झारखंड में तकरीबन हर आदिवासी परिवार में खास मौकों पर चावल को सड़ाकर बनी हड़िया शराब का सेवन करने का प्रचलन है.

इस पर रोक को वे संस्कृति पर हमले के रूप में देख सकते हैं. यदि चुनाव का समय नहीं होता तो सत्ताधारी दल शराबबंदी की पहल कर सकता था, लेकिन इस समय किस समुदाय पर इसकी क्या प्रतिक्रिया होगी अनुमान लगाना कठिन है. खासतौर पर तब जब सत्ता की कमान गैरआदिवासी मुख्यमंत्री के हाथ में हो.

मौत के बाद की गई कार्रवाई

हड़िया शराब आमतौर पर जानलेवा नहीं होती. लेकिन इसे बनाने में कई दिन लग जाते हैं. जबकि, इसकी मांग इतनी अधिक है कि उसकी पूर्ति पारंपरिक उत्पादन प्रणाली से संभव नहीं है. इसलिए कारोबारी अधपकी शराब खरीद लाते हैं और उसमें केमिकल तथा टैबलेट डालकर 8-10 घंटे में तैयार करने का प्रयास करते हैं. कई बार तो सामान्य पानी में टैबलेट और केमिकल डालकर बेच दिया जाता है.

राजधानी के गोंदा थाना क्षेत्र की जिस हातमा बस्ती में 30 सितंबर की रात जहरीली शराब का कहर टूटा था, वहां कर्मा त्योहार के मौके पर सामूहिक रूप से शराब का सेवन किया गया था. उसमें गड़बड़ी के कारण 5 लोगों की उसी रात मौत हो गई, जबकि दो लोगों की मौत इलाज के दौरान हुई. गांव के लोग घटना के तुरंत बाद मृतकों के अंतिम संस्कार की तैयारी कर चुके थे, लेकिन पुलिस और उत्पाद विभाग के लोगों ने ऐन मौके पर शवों को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया.

घटना की खबर मिलते ही तत्काल रांची के उपायुक्त महिमापत राय और पुलिस के आला अधिकारी दल-बल समेत पहुंच गए. उधर, राज्य के नगर विकास मंत्री सीपी सिंह भी पहुंच गए. सूबे के मुख्यमंत्री रघुवर दास ने घटना पर दुःख व्यक्त करते हुए जांच व अवैध शराब के कारोबारियों पर लगाम कसने के निर्देश दिए. आनन-फानन में सीआइडी ने एसआइटी का गठन किया. पुलिस और उत्पाद विभाग की तीन टीमें अवैध शराब के कारोबारियों के खिलाफ छापेमारी अभियान में लग गईं. कई नामजद कारोबारियों की गिरफ्तारी हुई. सैकड़ों टन महुआ बरामद किया गया.

नष्ट किए शराब बनाने के उपकरण

जिस हातमा बस्ती में यह कांड हुआ, वह रांची की पुरानी बस्तियों में से एक है. मोहराबादी और कांके रोड के बीच में स्थिय 7000 घरों की इस बस्ती में स्थानीय लोगों के मुताबिक, 200 घरों में शराब का कारोबार होता है. बस्ती की अधिकांश आबादी नशे की आदी है और रोजाना शराब का सेवन करती है. यह बस्ती के अंदर ही उपलब्ध हो जाती है. बस्ती के छोटन मिर्धा और उसकी पत्नी धुन्नी देवी ने स्वीकार कर लिया है कि जिस शराब को पीने से मौतें हुईं, उसे उन्होंने ही बेचा था.

लेकिन इतना तय है कि शराब का निर्माता कोई और था. यदि उन्हें जानकारी होती कि वे नशे की जगह मौत बांट रहे हैं, तो उनका अपना बेटा विजय मिर्धा मृतकों में शामिल नहीं होता. बहरहाल, स्वीकरोक्ति बयान के बाद पुलिस ने उन्हें हिरासत में ले लिया है.  अधिकांश कारोबारियों ने अभी काम बंद कर दिया है और उपकरण हटा दिए हैं.

घटना के दूसरे दिन महिला समिति की टीम ने घर-घर तलाशी लेकर शराब चुलाई के बचे-खुचे उपकरण नष्ट कर दिए थे. मुख्यमंत्री आवास के पास इतने बड़े पैमाने पर अवैध शराब का कारोबार हो और पुलिस प्रशासन को इसकी भनक तक न हो यह संभव नहीं है. स्थानीय पुलिस की मिलीभगत से ही यह धंधा चलता रहा है.

बंद होने के बाद फिर शुरू हुआ शराब का धंधा

पिछले वर्ष सितंबर माह में ही राजधानी के डोरंडा, हरमू, लालपुर आदि इलाकों में जहरीली शराब से 17 लोगों की मौत हो गई थी. उस समय कई पुलिसकर्मी इस धंधे में संलिप्त पाए गए थे. 4 सितंबर 2017 को सुखदेवनगर थाना क्षेत्र के संतोष कुमार ने प्राथमिकी दर्ज कराकर बताया था कि उन्होंने डोरंडा के इंद्रभान थापा की दुकान से शराब खरीदकर दोस्तों के साथ इसका सेवन किया, जिसमें अमित कुमार, संदीप चौधरी और अरविंद यादव की मौत हो गई, जबकि संतोष समेत अन्य लोगों को अस्पताल में भर्ती होना पड़ा था.

मामले की छानबीन के बाद गिरफ्तार किए गए लोगों को आजीवन कारावास की सज़ा मिली. इसके तत्काल बाद शहर के अन्य इलाकों से मौत की खबरें आने लगीं. देखते-देखते यह आंकड़ा 17 मौतों तक जा पहुंचा. चला कि शराब नामकूम में चुलाई और डोरंडा में बेची जाती थी. थानेदारों की संलिप्तता की बात सामने आने पर उन्हें निलंबित कर दिया गया था. इसके बाद कुछ समय तक अवैध शराब का धंधा लगभग बंद हो गया, लेकिन मामला ठंडा पड़ते ही इसने फिर रफ्तार पकड़ ली.

इसी साल 30 जून को सिमडेगा के ठेठई टांगर इलाके के केरिया घाट तूरी गांव में सामूहिक भोज के दौरान शराब पीने से 9 लोगों की मौत हो गई, जबकि दर्जन भर लोग बीमार हो गए.

बग़लें झांकते राजनीतिक दल

राज्य के नगर विकास मंत्री सीपी सिंह भाजपा के एकमात्र नेता हैं, जिन्होंने हातमा बस्ती के दौरे के बाद बिहार की तर्ज पर पूर्ण नशाबंदी की हिमायत की है. राज्यपाल द्रौपदी मुर्मु ने भी इस संबंध में राज्य सरकार से बात करने को कहा है. लेकिन यह उनका व्यक्तिगत विचार है. मुख्यमंत्री रघुवर दास ने अभी तक सिर्फ कड़ाई से जांच करने का और अवैध शराब के कारोबारियों पर लगाम कसने का आदेश दिया है. लेकिन मंत्री सीपी सिंह के सुझाव या जन समुदाय की ओर से उठती नशाबंदी की मांग पर कोई टिप्पणी नहीं की है.

राज्य के मुखिया होने के नाते वे भावनाओं में बहकर कोई बयान नहीं दे सकते. अपने राजनीतिक हितों का ध्यान रखते हुए ही वे कोई कदम उठा सकते हैं. नशाबंदी अवैध शराब के कारोबार का निदान कतई नहीं है. बिहार में नशाबंदी है, लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद अवैध शराब का धंधा न सिर्फ चल रहा है बल्कि और व्यापक हो गया है.

हाल में आरा में जहरीली शराब से कई लोगों की मौत की वारदात हुई थी. बिहार का अनुभव बताता है कि शराबबंदी से सरकारी राजस्व को हानि होती है, लेकिन शराब के सेवन और उसके अवैध कारोबार पर कोई खास असर नहीं पड़ता. प्रशासनिक अमला न तो इतना कर्तव्यनिष्ठ है और न ही इतना भरोसेमंद कि सरकारी निर्णयों को ज़मीनी स्तर पर अमली जामा पहनाए.

मंत्री सीपी सिंह के बयान के बाद आंदोलनकारियों के बीच यह संदेश तो चला ही गया कि सरकार इस मामले में गंभीर है और नशाबंदी पर विचार कर रही है. आजसू आलाकमान सुदेश महतो स्वाभिमान यात्रा पर हैं. उन्होंने इस मुद्दे पर कोई टिप्पणी नहीं की है. एनडीए के घटक जदयू की भी कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है.

विपक्षी दलों में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पूर्व मंत्री सुबोधकांत सहाय और झारखंड विकास मोर्चा (झाविमो) के सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी ने राज्य में पूर्ण नशाबंदी की जरूरत बताई है. झाविमो के प्रवक्ता योगेंद्र प्रताप सिंह ने मुख्यमंत्री से इस्तीफे की मांग की है. मुख्य विपक्षी दल झारखंड मुक्ति मोर्चा के महुआ माजी आदि कुछ नेताओं ने घटनास्थल का दौरा कर इसे सरकार की विफलता का परिणाम बताया है.

लेकिन कार्यकारी अध्यक्ष पूर्व मुख्यमंत्री व वर्तमान विपक्ष के नेता हेमंत सोरेन ने स्वयं कोई टिप्पणी नहीं की है. वे अभी संघर्ष यात्रा पर हैं. दरअसल, आदिवासियों के बीच गहरी पैठ रखने वाले दलों के नेता इस मामले में सीधा बयान देने से परहेज़ कर रहे हैं. भावनात्मक बयान की बात और है लेकिन झारखंड में पूर्ण नशाबंदी लागू करना टेढ़ी खीर है.


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