अगर झारखंड की स्थिति देखें तो राज्य की स्थिति भयावह है. 60 प्रतिशत से ज्यादा ग्रामीण आबादी कुपोषित है और लगभग इतनी ही आबादी दो जून की रोटी के लिए लगातार संघर्ष करती हैं. ऐसे में भूख से मौत की घटना तो आए दिन घटती है. पर कुछ मौतें जब समाचार-पत्रों की सुर्खियां बनती हैं, तो राज्य सरकार इस ओर कोई ठोस नीति बनाने की जगह पल्ला झाड़ लेती है.
सबसे विकसित एवं समृद्ध राज्य होने का दावा, कागजों में विकास के बड़े-बड़े आंकड़े. इन आंकड़ों को देख लोेग दिग्भ्रमित भी होते हैं और मुंगेरी लाल की तरह हसीन सपने भी देखने लगते हैं. पर अभी भी झारखंड में गरीबी सबसे ज्यादा है. आधी से अधिक आबादी एक जून की रोटी के लिए दिन-रात मेहनत करती हैं, पर अधिकांश परिवारों को एक जून की रोटी भी नसीब नहीं हो पाती है. परिणामस्वरूप आये दिन भूख से मौत की घटना तो घट ही रही है, पर सरकार इसे मानने को तैयार नहीं है.
जांच टीम बना दिया जाता है, जो अपनी रिपोर्ट सरकार के इशारे पर देती है. उसके बाद सरकार के आला अधिकारी यह कहने से नहीं चूकते कि फलां आदमी की मौत भूख से नहीं, बल्कि बीमारी से हुई है. इससे पूर्व अगर किसी की मौत भूख से होती थी, तो राज्य के खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री सरयू राय यह जरूर बयान देते थे कि राज्य सरकार की लालफीताशाही के कारण उसकी मौत भूख से हुई है, पर अब मंत्री सरयू राय भी किसी भी तरह का बयान देने से परहेज करने लगे हैं. वैसे इस बात से इंकार नहीं कर सकते है कि पिछले छह महीने में लगभग आधे दर्ज लोेगों की मौत भूख से हुई है.
भोजन का अधिकार कहां गया?
भोजन का अधिकार अभियान के सदस्य एवं प्रसिद्ध अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज का कहना है कि लगातार राज्य में भूख से मौत हो रही है और राज्य सरकार इसका कारण ही खोजने में लगी है. उन्होंने कहा कि गिरिडीह में सावित्री देवी, चतरा में मीना मुसहर और रामगढ़ में चिंतामन मल्हार की मौत पिछले महीने भूख से हुई है. टीम के सदस्यों का भी मानना है कि तीनों मौत के पीछे एक ही कारण है कि इनलोेगों को कई दिनों से खाना नहीं मिल पा रहा था. मरने के दिन इनके घर में खानेे के लिए कुछ नहीं था. इनकी मौत तो भूख से हो गयी, अब सरकार यह बताने का पूरा प्रयास कर रही है कि इनकी मौत भूख से नहीं हुई है. सरकार इसके वैज्ञानिक पहलू की बात कह रही है, जबकि सच्चाई यह है कि मरने वालों के पास खाने के लिए कुछ नहीं था. टीम का मानना है कि पिछले दस माह में चौदह लोेगों की मौत भूख से हुई है.
गिरिडीह जिले के मंगरगड़ी गांव की सावित्री देवी काफी गरीब थी. दो बेटे रोजगार के अभाव में मजदूरी करने राज्य के बाहर गये हुए थे. परिवार तंगी झेल रहा था. सावित्री देवी खाना नहीं मिलने के कारण इतनी कमजोर हो गई थी कि चल फिर भी नहीं पा रही थी. तीन जून को उनकी मौत भूख से हो गयी. पर आनन-फानन में प्रशासन ने यह बयान देना शुरू किया कि सावित्री बीमार थी और उसकी मौत भूख से नहीं, बल्कि बीमारी से हुई है. प्रशासन का कहना था कि सावित्री के खाते में 1800 रुपये भी थे, तो उसकी मौत भूख से कैसे हुई. पर सच्चाई यह है कि सावित्री ने 2014 में विधवा पेंशन के लिए आवेदन दिया था, लेकिन आधार से नाम नहीं जुड़ा होने के कारण मार्च, 2018 तक उसे पेंशन नहीं मिला था. आधार से नाम जुड़ने के बाद अप्रैल, 2018 में उसे तीन माह का पेंशन 1800 रुपया तो मिला पर इसका पता सावित्री की मौत के बाद परिवार को मिला था. पर अधिकारी इसे दूसरे तरीके से पेश कर रहे हैं.
भोजन का अधिकार के सदस्य जब चतरा गए तो मीना मुसहर की हालत देखकर आश्चर्यचकित हो गए. मीना मुसहर का परिवार गांव में ही एक पेड़ के नीचे रहता था और कचरा चुनकर जीवन-यापन करते थे. इसके परिवार के पास राशन कार्ड नहीं था. मीना मुसहर की मौत घर में खाना नहीं रहने के कारण हो गयी. दो हफ्ते के बाद भी उसकी मौत की पोस्टमार्टम रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की जा रही है. ठीक इसी तरह रामगढ़ के चिंतामन मल्हार की भी मौत हो गयी. चिंतामन भी पेड़ के नीचे रहता था, उसके पास राशन कार्ड भी नहीं था, जंगल से तीतर पकड़कर बाजार में बेचा करते था. दो दिनों से उसके घर में खाना नहीं बना था. पर सरकार इसे भी भूख से मौत नहीं मान रही है. सरकारी अधिकारी चिंतामन के बेटे से खाली कागज पर अंगूठा लगवा रहे थे.
एनएपीएम की पांच सदस्यीय टीम ने भूखमरी पर चिंता जाहिर करते हुए कहा था कि भूखमरी के सवाल पर राज्य सरकार गंभीर नहीं है. क्या सरकार नहीं मानती कि चिंतामन मल्हार बेहद गरीब था और वह अकेला रहता था. सरकार क्या इतनी नामसमझ है जो यह भी नहीं समझती कि जो लगातार भूखा रहेगा, वह स्वस्थ्य कैसे रहेगा, बीमार तो होगा ही. चिंतामन के पास न तो आधार था और न ही राशन कार्ड. मृतक का बेटा भी यह कह रहा है कि उसकी मौत भूख से हुई है, तो सरकार इसे क्यों नहीं मानती.
एनएपीएम का यह भी मानना है कि कोई भूखा न रहे, किसी की मौत भूख से न हो, इसके लिए सरकार जितनी गंभीरता बरते, लेकिन विभागीय लापरवाही के कारण योजनाओं का लाभ जरुरतमंदों तक नहीं पहुंच पाता और इस कारण गरीबी की मार झेल रहे लोेग भूखमरी के शिकार होते हैं और भूख से गरीबों की मौत की घटना हमेशा घटती रहती है. लेकिन सरकार का हमेशा यही रटा-रटाया सा जवाब होता है कि उसकी मौत भूख से नहीं बल्कि बीमारी से हुई है.
भूख नहीं तो क्या कारण है?
राज्य के खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री सरयू राय ने कहा कि भूख से कथित मौत के हाल-फिलहाल में तीन मामले सामने आये हैं. तीनों ही मामलों की जांच की जा रही है. वैसे अभी तक के रिपोर्ट में जो बातें सामने आयी है, उससे यह पता चलता है कि लोेगों की मौत भूख से नहीं हुई है. इधर सबसे बड़े सरकारी अस्पताल रिम्स के मेडिसीन विभाग के अध्यक्ष डॉ. जेके मित्रा का मानना है कि भूख से मौत के मामले में मेडिकली कोई लक्षण बाहर से नहीं दिखते. पोस्टमार्टम से ही वजह पता चलती है. मसलन मरीज के लीवर का फैट पूरी तरह से गल जाना, साथ ही पेट और अन्य स्टोरेज में अन्न के अंश नहीं होते.
मुख्यमंत्री रघुवर दास का मानना है कि भूख से किसी की मौत नहीं हुई है. किसी को भी भूख से मरने नहीं दिया जायेगा. राज्य सरकार द्वारा विभिन्न तरह की योजनाएं चलाई जा रही है, जिसका लााभ गरीबों को मिल रहा है. गरीबों के लिए खाद्यान्न योजना भी शुरू की गयी है. राज्य सरकार यह सुनिश्चित कर रही है कि भूख से मौत किसी की न हो. अगर किसी भी जिले में भूख से मरने की बातें आती है, तो जांच कर संबंधित दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जायेगी.
ग्रेन बैंक की स्थापना अब तक क्यों नहीं हुई?
वैसे राज्य सरकार ने इससे निबटने के लिए कुछ सार्थक पहल भी की है. विषम परिस्थितियों से निबटने के लिए राज्य सरकार ने पंचायत स्तर पर ग्रेन बैंक बनाने का निर्णय लिया है. राज्य में खाद्य सुरक्षा अधिनियम तो लागू था, लेकिन ग्रेन बैंक की स्थापना अभी तक नहीं हो पायी थी. राज्य सरकार की नींद तब खुली, जब पिछले चार-पांच महीनों में भूख से हो रही मौतों को लेेकर झारखंड सुर्खियों में रहा. सरकार भलेे ही तार्किक आधार पर यह साबित करने में सफल रही कि यह मौत भूख से नहीं हुई है, पर इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि राज्य की जन वितरण प्रणाली अभी तक पुख्ता नहीं हो सकी है. वैसे ग्रेन बैंक की स्थापना भी तथाकथित भूख से होने वाली मौतों को टालने में कितनी कारगर होगी, यह वक्त ही बतायेगा. वैसे सरकार के कानूनों के पैरामीटर पर आज तक भूख से कोई मौत ही नहीं हुई या यूं कहे कि भूख से कोई मौत ही नहीं हो सकती.
राज्य सरकार और उसके आला अधिकारी राज्य में भूख से हुई मौतों को अपनी तरह से परिभाषित कर रहा है. सरकार ने सभी मौतों का कारण बीमारी ही बताया है. बीमारी क्या है, ये तो भूख से मरने वालों के परिजन ही बता सकते हैं और परिजनों की माने तो सरकार की सोच ही बीमार है. भूख से मौत कोई एक-दो दिनों में नहीं होती. ऐसे में सरकार ने कभी यह जानने की कोशिश नहीं की कि जहां भी भूख से मौत हुई, वहां कितनों दिनों से खाना नहीं था. अधिकारियों का बयान तो और शर्मनाक है. उनका मानना है कि गांव वाले सरकारी मदद के लिए सामान्य मौत को भी भूख से मौत बना देते हैं. ऐसे में सरकार सरकारी मदद के तौर पर दस हजार रुपये और 14 किलो अनाज देती है.
अगर झारखंड की स्थिति देखे तो राज्य की स्थिति भयावह है. 60 प्रतिशत से ज्यादा ग्रामीण आबादी कुपोषित है और लगभग इतनी ही आबादी दो जून की रोटी के लिए लगातार संघर्ष करती हैं. ऐसे में भूख से मौत की घटना तो आये दिन घटती है. पर कुछ मौतें जब समाचार-पत्रों की सुर्खियां बनती है तो राज्य सरकार इस ओर कोई ठोस नीति बनाने की जगह पल्ला झाड़ लेती है.
कोई भूख से न मरे: द्रौपदी मुर्मू
राज्यपाल द्रौैपदी मुर्मू ने अधिकारियों से कहा है कि राज्य में किसी भी व्यक्ति की मौत भूख से नहीं होनी चाहिए. इसे सुनिश्चित करें और करायें भी. साथ ही क्षेत्रीय पदाधिकारी गरीबों को खाद्यान्न उपलब्ध कराने की दिशा में सजग और संवेदनशील होकर कार्य करें. राज्यपाल श्रीमती मुर्मू ने गिरिडीह, खूंटी, सिमडेगा, चतरा, रांची, रामगढ़ आदि जिलों में भूख से हुई मौत के मामले को गंभीरता से लेते हुए राजभवन में खाद्य सार्वजनिक वितरण एवं उपभोक्ता मामलों के विभाग के सचिव अमिताभ कौशल व रामगढ़ उपायुक्त बी राजेश्वरी को बुलाया और जानकारी हासिल की. इसके बाद राज्यपाल ने अधिकारियों के साथ बैठक कर आवश्यक निर्देश भी दिया. उन्होंने बताया कि जिन गरीब परिवारों को राशन कार्ड नहीं मिले है, उन्हें शीघ्र ही राशन कार्ड सुलभ कराया जाए. उन्होंने हिदायत देते हुए कहा कि खाद्यान्न सुलभ कराने में आधार लिंकिंग कभी भी बाधक नहीं बनना चाहिए.