भाजपा सांसद समीर उरांव ने कहा कि साजिश के तहत आदिवासी महिलाओं से शादी की जा रही है और आदिवासियों की जमीन भी हड़पी जा रही है. आदिवासी महिला दस्तावेज में पति का नाम नहीं दिखाकर पिता का नाम दर्ज कराती है. इससे उसकी जमीन का मालिक उसका गैर आदिवासी पति बन जाता है.
एक लंबे अर्से से रह रहे घुसपैठियों के सामने अब यह समस्या हो गई है कि अब आखिर जाए तो जाए कहां. सरकार ने घुसपैठियों के बीच अब लुका-छिपी के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाने शुरु कर दिए हैं. इन लोगों ने आदिवासी लड़कियों से शादी कर यहां का स्थानीय बनने को लेकर सारे प्रमाण-पत्र जुटाने शुरु कर दिए हैं, वहीं संथाल परगना के पाकुड़, साहेबगंज एवं अन्य जिलों में लाखों बांग्लादेशी घुसपैठियों ने अपना ठिकाना बना लिया है. पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) के सदस्य आदिवासी लड़कियों से शादी कर उनके नाम से जमीन खरीद रहे हैं. ऐसा होने से बांग्लादेशी घुसपैठिए भी खुद को आसानी से झारखंड का निवासी बता सकते हैं. झारखंड सरकार ने भी केंद्र सरकार से यह आग्रह किया है कि असम की तरह झारखंड में भी एनआरसी की सूची तैयार की जाए.
दरअसल झारखंड के कुछ जिले जैसे साहेबगंज, पाकुड़ एवं जामताड़ा, पश्चिम बंगाल की सीमाओं से मिले हुए हैं. पश्चिम बंगाल के फरक्का, मालदा एवं मेदिनीनगर में बांग्लादेशी घुसपैठियों की भरमार है. पश्चिम बंगाल में बांग्लादेशी घुसपैठियों के कारण बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी केन्द्र सरकार के निशाने पर है. वहां बांग्लादेशी घुसपैठियों को इसके कारण परेशानी हो रही है और उन्हें यह भय सता रहा है कि अगर बंगाल में एनआरसी का काम शुरु हुआ तो उन्हें या तो बांग्लादेश लौटना पड़ सकता है या नज़रबंदी की हालत में कैंपों में रहना पड़ सकता है. वैसे भी पश्चिम बंगाल में घुसपैठियों की आबादी ज़्यादा रहने के कारण उन लोगों को पकड़े जाने का डर था.
इसलिए वे धीरे-धीरे पड़ोसी राज्यों की ओर भी रुख कर वहां अपना पड़ाव बनाने में लग गए थे. घुसपैठियों ने अपनी पहचान छुपाने के लिए यहां की वेशभूषा ज़रुर धारण की, पर वे अपनी बोली और चेहरे से साफ पहचान में आ जाते हैं कि ये लोग बांग्लादेशी हैं. इन लोगों ने खेती भी करनी शुरु कर दी है. पाकुड़ के एक गांव में रहने वाले मो शफीउद्दीन का कहना है कि मेरा परिवार चालीस वर्षों से यहां रह रहा है, खेतीबाड़ी है, बच्चे स्कूल जाते हैं. वैसे शफीउद्दीन अपने को बांग्लादेशी नहीं बताता है, पर यह कहता है कि रोजी-रोटी की तलाश में सभी लोग पश्चिम बंगाल से यहां आए हैं और हमलोग भारत के ही रहने वाले है. हमारे पास राशन कार्ड, वोटर कार्ड एवं आधार भी हैं, पर प्रशासन बांग्लादेशी साबित करने में लगा हुआ है. इसके बोलचाल एवं रहने के ढंग से यह अहसास हो जाता है कि ये लोग बांग्लादेश से ही भागकर भारत आए हैं.
असम के बाद जब झारखंड ने भी बांग्लादेशी घुसपैठियों की पहचान के लिए सर्वेक्षण शुरू कराया था, तब से ही इन लोगों ने नई-नई चाल भी चलना शुरू कर दिया है. स्पेशल ब्रांच ने जो पुलिस मुख्यालय को रिपोर्ट दी है, उसके अनुसार अब घुसपैठिए आदिवासी लड़कियों से शादी कर उनके नाम से जमीन खरीद रहे हैं. अधिकांश घुसपैठिए प्रतिबंधित रहे संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया के सदस्य हैं. वैसे इस संगठन को उच्च न्यायालय ने प्रतिबंध से मुक्त कर दिया है. राज्य सरकार ने इस संगठन पर प्रतिबंध लगया दिया था, पर इस प्रतिबंध को लेकर दायर याचिका पर उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाते हुए राज्य सरकार के उस आदेश को निरस्त कर दिया. अब इस संगठन में शामिल बांग्लादेशी घुसपैठियों ने संथाल परगना में दस हजार एकड़ से भी अधिक जमीन खरीद ली है. रिपोर्ट में कहा गया है कि घुसपैठियों ने पाकुड़, जामताड़ा, साहेबगंज और गोड्डा तक अपनी पहुंच बना ली है.
बांग्लादेशी घुसपैठियों को इन लोगों को पीएफआई द्वारा फंडिंग किया जाता है और बाद में इन लोगों को अवैध धंधे में लगाकर पीएफआई अपने पैसे वापस ले लेती है. पाकुड़ के कुछ गांवों में तो इन लोगों का इतना खौफ है कि आम आदमी तो दूर पुलिस भी जाने से कतराती है. बकरीद के दिन जब पुलिस को गुप्त सूचना मिली कि पाकुड़ के एक गांव में प्रतिबंधित मांस काट कर उसे बांटा जा रहा है, तो पुलिस ने उस गांव में दबिश दी, पर सभी ग्रामीण एकजुट होकर पुलिस पर ही पथराव करने लगे. भारी विरोध के कारण पुलिस को वापस भागने पर ग्रामीणों ने मजबूर कर दिया.
वस्तुत: एक रणनीति के तहत ही ये शादियां हो रही है. अब तक इस क्षेत्र में लगभग बारह हजार से अधिक आदिवासी लड़कियों से इन लोगों ने शादी की है. दरअसल संथाल परगना के सुदूरवर्ती गांवों में आदिवासी परिवारों की हालत अत्यंत दयनीय है. कुछ आदिवासी परिवार तो दो वक्त की रोटी के लिए भी मोहताज है. घुसपैठियें भोले- भाले आदिवासी परिवार की लड़कियों को फांस कर विवाह रचा लाते हैं. अधिकांश बांग्लादेशी घुसपैठिए अवैध कारोबार में लिप्त है, इसलिए इन लोगों की आर्थिक स्थिति बेहतर है. इन्हीं पैसों से ये लोग लड़कियों के नाम पर जमीन की खरीद-बिक्री कर लेते हैं और इस जमीन के दस्तावेज़ों में अपना नाम भी दर्ज करा लेने में सफल रहते हैं. इसके बाद इन लोगों को यह अहसास होने लगता है कि अब उनकी पहचान भारतीय नागरिक के रुप में होने लगेगी.
भाजपा सांसद समीर उरांव ने कहा कि साजिश के तहत आदिवासी महिलाओं से शादी की जा रही है और आदिवासियों की जमीन भी हड़पी जा रही है. आदिवासी महिला दस्तावेज में पति का नाम नहीं दिखाकर पिता का नाम दर्ज कराती है. इससे उसकी जमीन का मालिक उसका गैर आदिवासी पति बन जाता है. इन सब घटनाओं के बाद राज्य सरकार की नींद खुली है और राज्य सरकार ने यह फैसला लिया है कि आदिवासी महिला को जमीन रजिस्ट्री में पति का नाम दिखाना होगा. उड़ीसा में ऐसा कानून बनाया जा चुका है उड़ीसा कानून की तर्ज पर बाकी जगहों पर भी कानून बनाने की तैयारी की जा रही है. इस कानून के लागू हो जाने से गैर आदिवासी पुरुष से शादी करने वाली आदिवासी महिलाएं अब आदिवासियों की जमीन नहीं खरीद सकेगी. अब ऐसी महिलाओं के जाति प्रमाण-पत्र में पिता की जगह पति का नाम लिखा जाएगा, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उसने गैर आदिवासी पुरुष से शादी की है. झारखंड सरकार ने इससे संबंधित प्रस्ताव तैयार कर लिया है और इसे जल्द ही लागू कर दिया जाएगा.
झारखंड पुलिस के प्रवक्ता एवं अपर पुलिस महानिदेशक आरके मल्लिक का कहना है कि पूरे मामले को देखा जा रहा है, अभी इस विषय पर ज्यादा कुछ नहीं कहा जा सकता है. इधर अब राज्य सरकार ने भी घुसपैठियों की पहचान के लिए ठोस रणनीति तैयार कर रही है. झारखंड सरकार ने केंद्र सरकार से एनआरसी तैयार करने का आग्रह किया है. एनआरसी बनने से संथाल परगना के बड़े इलाके में बांग्लादेशियों की घुसपैठ और उनके द्वारा गलत तरीके से भारत का मतदाता बनने पर रोक लग जाएगी.
एनआरसी शुरु होते ही क्षेत्र विशेष में रह रहे लोगों को वंशावली के आधार पर भारतीय नागरिकता का प्रमाण-पत्र मिलेगा. साहेबगंज, राजमहल तथा बड़हरवा जो सीमावर्ती पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद, मालदा सीमा से जुड़ा है, यहां विशेष गणना कराई जाएगी. ये सभी इलाके बांग्लादेश की सीमा से भी सटे हुए है. वैसे नियमानुसार यहां बांग्लादेश के नागरिक वैध पासपोर्ट और वीजा पर आते हैं, लेकिन अवैध रुप से भी बांग्लादेशी भारी संख्या में झारखंड आ रहे हैं. केंद्रीय गृह मंत्रालय से राज्य सरकार ने झारखंड में अपडेशन का आग्रह किया है. केंद्र की स्वीकृति मिलते ही एनआरसी अपडेशन का काम शुरु हो जाएगा. राजमहल क्षेत्र से भाजपा विधायक अनंत ओझा ने भी संथाल परगना एनआरसी अपडेशन की मांग राज्य सरकार से की है. मुख्यमंत्री रघुवर दास का मानना है कि अवैध ढंग से आए घुसपैठियों की पहचान कर जल्द ही बाहर भेज दिया जाएगा. केंद्र सरकार से यह मांग की गई है कि असम की तर्ज पर झारखंड में एनआरसी लागू किया जाए, ताकि घुसपैठियों की पहचान हो सके.
क्या है एनआरसी?
एनआरसी के तहत वंशावली का निर्धारण किसी कट ऑफ डेट को आधार मानकर किया जाता है. 1985 में सुप्रीम कोर्ट ने असम में एनआरसी का आदेश दिया था. केंद्र में एनडीए की सरकार बनने के बाद असम में एनआरसी शुरु हुआ. इसके लिए वहां 1951 की जनगणना और 1952 की मतदाता सूची को आधार बनाया गया. अर्थात्त, इन दोनों सूचियों में वहां रह रहे लोगों के जिन पूर्वजों का नाम है, उन्हें भारतीय नागरिकता का प्रमाण-पत्र एसडीओ द्वारा दिया जा रहा है.
निकाले जाएंगे बांग्लादेशी घुसपैठिए : गिलुवा
झारखंड में 15 लाख से अधिक बांग्लादेशी घुसपैठिए रह रहे हैं. ये स्थानीय लोगों का रोजगार छीन रहे हैं. झारखंड की बहन-बेटी से शादी कर यहां दामाद बनकर रहते हैं. उक्त बातें भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सह सिंहभूम सांसद लक्ष्मण गिलुवा ने कही. उन्होंने कहा कि वर्ष 1999 में जब देश में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी और देश में बांग्लादेशी घुसपैठ कर रहे थे, तब तृणमूल कांग्रेस की नेता ममता बनर्जी ने संसद में इसका विरोध किया था. परंतु पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री बनने के बाद ममता बनर्जी वोट बैंक की राजनीति करने लगी है. बांग्लादेशी घुसपैठियों का स्वागत कर रही है. उन्हें देश की सुरक्षा की कोई चिंता नहीं है. उन्होंने कहा कि झारखंड में बांग्लादेशी घुसपैठिए चार औरतों से शादी कर रहे हैं. चौबीस बच्चे पैदा कर रहे हैं. यहां की बेटियों से शादी कर दामाद बनकर रहने लगे हैं. इन्हें चिन्हित कर ससम्मान बांग्लादेश भेजा जाएगा.