झारखंड में स्थानीयता को लेकर वोटों की राजनीति तेज़ हो गई है. भारतीय जनता पार्टी से आदिवासियों एवं मूलवासियों का मोह भंग होता देख मुख्यमंत्री रघुवर दास ने बाहरियों को लुभाने के लिए ऐसी स्थानीय नीति बनाई, जिससे बाहरियों को कोई नुकसान न हो. एक तरह से मुख्यमंत्री दास बाहरियों पर कुछ ज्यादा मेहरबान हैं. 15 साल बाद घोषित स्थानीय नीति में 30 वर्षों से झारखंड में रहन वाले लोगों को स्थानीय माना गया है, पर बाहरी को कोई नुकसान नहीं हो, इसके लिए यह भी प्रावधान किया गया है कि जिसने कक्षा एक से 10वीं तक की पढ़ाई झारखंड में की हो, उसे भी स्थानीय माना जाएगा. भाजपा ने बाहरी लोगों के पक्ष में स्थानीय नीति लाकर लगभग 40 प्रतिशत मतदाताओं को अपनी ओर मोड़ने में कोई कोर-कसर बाकी नहीं रखी. राज्य की 81 विधानसभा सीटों में से लगभग आधे पर हार-जीत में इन मतदाताओं की भूमिका निर्णायक होती है.
भाजपा ने इस निर्णय को ऐतिहासिक बताया, वहीं झारखंड मुक्ति मोर्चा सहित सभी विपक्षी दलों ने इसे आदिवासी-मूलवासी विरोधी फैसला बताते हुए इस अधिसूचना को वापस लेने की मांग की है. झारखंड मुक्ति मोर्चा ने इस फैसले के विरोध में 14 मई को झारखंड बंद बुलाया है, साथ ही चेतावनी दी है कि अगर फैसले को वापस नहीं लिया गया तो पूरे राज्य में उग्र आंदोलन चलाया जाएगा. वहीं झारखंड विकास मोर्चा के सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी भी इस मुद्दे को भुनाने में लग गए हैं. उन्होंने इसे आदिवासी मूलवासी विरोधी बताते हुए पूरे राज्य में आर्थिक नाकेबंदी की घोषणा की है. उन्होंने कहा कि खान से कोयले का उठान भी नहीं करने दिया जाएगा.
वैसे इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि मुख्यमंत्री बाहरी पर मेहरबान हैं. लोगों के बीच यह भी चर्चा है कि मुख्यमंत्री स्वयं बाहरी हैं, छत्तीसगढ़ के निवासी हैं, इसलिए बाहरियों के साथ इनकी सहानुभूति कुछ ज्यादा ही है. मुख्यमंत्री दास ने जब सत्ता संभाली तो उन्हें झारखंड कैडर के आईएएस पर विश्वास नहीं हुआ, उन्होंने बिहार के एक स्वजातीय आईएएस को आयात कर उन्हें अपना प्रधान सचिव बनाया. झारखंड में भाजपा बहुमत में रहने के बावजूद हमेशा सरकार गिरने के भय से सशंकित रहती है.
मुख्यमंत्री रघुवर दास को हमेशा इस बात का भय बना रहता है कि भाजपा का ही एक गुट, जिसका नेतृत्व एक स्थानीय आदिवासी नेता कर रहे हैं, कहीं उनकी सरकार को पटखनी न दे दे. अगर ऐसा हुआ तो रघुवर दास अपनी सरकार बचाने के लिए कुछ दिनों के लिए किसी से हाथ मिलाने की कोशिश करेंगे. अगर इसमें वे सफल नहीं हुए तो विधानसभा भंग कर चुनाव में जाना चाहेंगे. भविष्य की चुनावी रणनीति को देखते हुए ही इस तरह की स्थानीय नीति लाई गई है. इसका लाभ भाजपा उठा सकती है, क्योंकि यहां क्षेत्रीय दलों सहित कांग्रेस भी आदिवासी व मूलवासी की ही राजनीति करती रही है.
मुख्यमंत्री रघुवर दास इस निर्णय को ऐतिहासिक बताते हुए कहते हैं कि अभी तक की सभी सरकारें इस पर राजनीति ही करती रही हैं. वोट बैंक की राजनीति के लिए हमेशा इसे मुद्दा बनाए रखकर आदिवासी एवं मूलवासियों को छलने का काम किया है. झारखंडवासियों को भाजपा ने एक तोहफा दिया है. दास ने कहा कि झारखंड के लोगों की यह बहुप्रतीक्षित मांग थी. उम्मीद है कि राज्य के विकास के रास्ते में कोई अड़चन नहीं आएगी.
प्रदेश के इतिहास में यह निर्णय मील का पत्थर साबित होगा. इधर झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन ने कहा है कि स्थानीय नीति के मसले पर सरकार ने झामुमो के सुझाव को दरकिनार कर दिया. सरकार प्रदेश की जनता को बांटने का काम कर रही है. नीति में कई ऐसी बातें हैं जिनसे आपस में ही मनमुटाव होगा. इस नीति से किसी का हित नहीं होने वाला है. उन्होंने कहा कि 1932 के खतियान के आधार पर ही स्थानीयता तय होनी चाहिए थी. झामुमो की यह मांग थी और इससे ही यहां के आदिवासियों का हित सधने वाला था, लेकिन घोषित नीति से आदिवासियों का हक मारा जाएगा.
दरअसल आदिवासी व मूलवासी 1932 के सर्वे को आधार मानते हुए स्थानीय नीति की मांग कर रहे थे. 2002 में बाबूलाल मरांडी ने डोमिसाइल नीति बनाई और 20 अप्रैल 2002 को मंत्रिमंडल ने इस संबंध में अधिसूचना जारी की थी. इसके बाद 8 अगस्त व 19 अगस्त को इसे कुछ संशोधित करते हुए संकल्प पत्र जारी कर इसमें सर्वे को आधार माना गया. कहा गया कि उसी को स्थानीय माना जाएगा जिसके अपने पूर्वज या पूर्वज के नाम पर ज़मीन या मकान हो. उसका सर्वे में रिकॉर्ड दर्ज हो. तृतीय और चतुर्थ श्रेणी के पदों पर स्थानीय व्यक्ति की बहाली की बात भी कही गई थी.इस नीति के लागू होने के बाद झारखंड में हिंसा का दौर शुरू हो गया.
बाहरी-भीतरी एक-दूसरे के दुश्मन बन गए और हिंसा-प्रतिहिंसा का दौर आरंभ हो गया. बाबूलाल मरांडी ने इस नीति को लाकर झारखंड को बारूद के ढेर पर खड़ा कर दिया था. स्थिति बिगड़ती देख झारखंड उच्च न्यायालय ने सरकार के इस आदेश को 27 नवंबर 2002 को निरस्त कर दिया. तब से यह मामला विचाराधीन था. मरांडी सरकार गिरने के बाद से अब तक किसी भी सरकार ने काबिज कोई भी सरकार ने इसमें हाथ डालने का साहस नहीं किया. सभी दलों को यह पता था कि स्थानीय नीति के लागू होने से एक पक्ष का आक्रोश झेलना ही होगा.
ऐसे में, मुख्यमंत्री रघुवर दास ने इस नीति को लाकर बाहरियों को एक प्रकार से तोहफा ही दे दिया है. नीति में 30 साल से झारखंड में रहने वाले को स्थानीय माना गया है. इसमें चालाकी से एक शब्द ऐसा जोड़ दिया गया है जिससे पूरा लाभ मिले. नीति में स्पष्ट कहा गया है कि कक्षा एक से 10 तक स्थानीय स्कूल में पढ़े लोगों को भी स्थानीय माना जाएगा. चाहे उसके पास अपना मकान या ज़मीन हो या न हो.
इससे बाहरी लोग भी नौकरी पाने के हकदार हो जाएंगे. वैसे यह भी कहा गया है कि शिड्यूल एरिया में 10 साल तक तृतीय व चतुर्थ वर्ग के पदों पर जिले के स्थानीय लोगों की ही नियुक्ति होगी. राज्य के 13 आदिवासीबहुल क्षेत्र शिड्यूल एरिया में आते हैं. 10 साल बाद इन जिलों में बाहरी लोगों की नियुक्ति की राह प्रशस्त हो जाएगी. बहरहाल, यह देखना दिलचस्प होगा कि आगामी चुनाव में इस स्थानीय नीति का क्या असर पड़ता है. वैसे, इस नीति से रघुवर दास ने बाहरियों का दिल जीतने का काम किया है. बाहरियों के मन में भय समाया हुआ था, बच्चों के भविष्य को लेकर वे चिंतित थे, सरकार के कदम से उनका भय खत्म हुआ.
ये सब माने जाएंगे झारखंडी
- झारखंड की भौगोलिक सीमा में रहनेवाले वैसे सभी लोग, जिनका स्वयं या पूर्वजों का नाम गत सर्वे व खतियान में दर्ज हो. वैसे मूल निवासी जो भूमिहीन हैं. उनके संबंध में भी उनकी प्रचलित भाषा, संस्कृति व परंपरा के आधार पर ग्राम सभा की ओर से पहचान किए जाने पर वे स्थानीय कहलाएंगे.
- झारखंड के वैसे निवासी जो व्यापार को लेकर विगत 30 वर्षों या उससे अधिक समय से झारखंड में रह रहे हैं. चल-अचल संपति अर्जित की हो तो वे उनकी पत्नी या पति और उनकी संतानें झारखंडी मानी जाएंगी.
- झारखंड सरकार की ओर से संचालित या मान्यता प्राप्त संस्थानों/निगमों आदि के नियुक्त व कार्यरत पदाधिकारी, कर्मचारी और उनकी पत्नी या पति और उनकी संतानें झारखंडी होंगी.
- झारखंड में कार्यरत भारत सरकार के पदाधिकारी व कर्मचारी और उनकी पत्नी या पति और उनकी संतानें झारखंडी होंगी.
- झारखंड में किसी संवैधानिक या विधिक पदों पर नियक्ुत व्यक्ति या उनकी पत्नी या पति और उनकी संतानें झारखंडी मानी जाएंगी.
- जिनका जन्म झारखंड में हुआ हो या जिन्होंने मैट्रिक या समकक्ष स्तर की शिक्षा प्रदेश के मान्यता प्राप्त संस्थान से पाई हो, उन्हें झारखंडी माना जाएगा.