भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह भाजपा को फिर से सत्ता पर काबिज कराने के लिए ए़ंडी-चोट एक कर रणनीति बनाने में जुटे हुए हैं. इसी क्रम में अमित शाह तीन दिवसीय दौरे पर रांची आए और उन्होंने कई कार्यक्रमों में शिरकत की. प्रदेश भाजपा नेताओं के साथ कई दौर की बैठकें भी हुईं, जिनमें लोकसभा की सभी 14 सीटों पर जीत सुनिश्चित करने के मुद्दे पर चर्चा हुई. मुख्यमंत्री रघुवर दास ने भी अपने आलाकमान को इसके लिए आश्वस्त किया कि राज्य में भाजपा का जनाधार तेजी से बढ़ा है और जनता सरकार द्वारा कराए जा रहे विकास कार्यों से खुश है. उन्होंने यह भी दावा किया कि पार्टी झारखंड में सभी लोकसभा सीटों पर तो भगवा लहराएगी ही, विधानसभा की 81 में से 60 सीटों पर भी कमल खिलेगा. मुख्यमंत्री के इस दावे को कुछ राजदरबारी समाचार पत्रों का भी साथ मिला. एक सर्वेक्षण के जरिए यह बताया गया कि अगर अभी चुनाव हुए, तो भाजपा को 81 में से 65 सीटें मिलेंगी. भाजपा के कई आला नेताओं को इस सर्वेक्षण वाले समाचार पत्र की कॉपियां भेजी गईं. लेकिन भाजपा नेता इससे आश्वस्त नहीं हो सके और अपने स्तर पर उन्होंने आंतरिक सर्वेक्षण कराया, जिसके नतीजे चौंकाने वाले थे.
विपक्षी एकजुटता भाजपा के लिए चुनौती
इस बार भाजपा को शिकस्त देने के लिए झारखंड में महागठबंधन की पृष्ठभूमि लगभग तैयार हो चुकी है. राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव महागठबंधन में सभी दलों को लाने की कोशिश कर रहे हैं. चारा घोटाले के मामले में ट्रायल फेस कर रहे लालू प्रसाद यादव का इन दिनों रांची आना-जाना लगा रहता है. वे इस कोशिश में हैं कि झारखंड में भी बिहार विधानसभा चुनाव जैसा परिणाम दोहराया जाय. इसके लिए वे भाजपा विरोधी सभी दलों को एक मंच पर लाने के प्रयास में जुटे हैं. उनका कहना है कि इस बार पूरे देश की जनता भगवा पार्टी को सबक सिखाएगी. झारखंड और बिहार में तो भाजपा का सफाया तय है. धर्मनिरपेक्ष दल इस बार भगवा पार्टी को खदेड़ कर ही दम लेंगे. हालांकि झारखंड मुक्ति मोर्चा और बाबूलाल मरांडी की पार्टी का मतभेद लालू की इस कोशिश के आड़े आ रहा है. दोनों के बीच मुख्यमंत्री पद को लेकर कुछ मतभेद है. लेकिन अगर बाबूलाल इस गठबंंधन में शामिल नहीं होते हैं, तो भी कांग्रेस, झामुमो और राजद का एक साथ चुनाव मैदान में उतरना भाजपा के लिए मुसीबत बन सकता है. अगर ऐसा हुआ, तो भाजपा के लिए विधानसभा में 20 सीटें जीत पाना भी ईश्वरीय कृपा मानी जाएगी. अकेले झामुमो ही भाजपा को कड़ी चुनौती दे रहा है. सीएनटी-एसपीटी एक्ट के मामले में भाजपा सरकार के बैकफुट पर आने के बाद झामुमो का जनाधार तेजी से बढ़ा है. लिट्टीपाड़ा विधानसभा उपचुनाव में भाजपा ने अपनी पूरी ताकत झोक दी थी. पूरे सरकारी अमले के साथ भाजपा के शीर्ष नेताओं ने तीन माह तक कैंप किया, लेकिन इन सबके बाद भी झामुमो ने भाजपा को भारी मतों से शिकस्त दी. झामुमो के बढ़ते जनाधार का सहज अंदाजा इसी से लगाया जा सकता जा सकता है कि पूरे देश में मोदी लहर के बाद भी झामुमो ने एक सीट का इजाफा कर 81 में से 19 सीटों पर कब्जा जमाया था.
अपनों से जूझ रही भाजपा
झारखंड गठन के बाद भाजपा पहली बार बहुमत में आई, लेकिन ऐसा कोई काम नहीं कर सकी, जिससे लोग भाजपा को याद कर सकें. सीएनटी-एसपीटी एक्ट में संशोधन और धर्मान्तरण निषेध विधेयक लाकर तो सरकार खुद विवादों में घिर गई. इससे सत्ताधारी पार्टी पूरी तरह से बैकफुट पर आ गई. अपने तानाशाही भरे फैसलों के कारण मुख्यमंत्री रघवर दास को भारी फजीहत झेलनी पड़ी. सीएनटी-एसपीटी एक्ट के मामले में तो रघुवर दास ने भाजपा के आला नेताओं की भी नहीं सुनी. इसके बाद अर्जुन मुंडा और करिया मुंडा सरीखे नेता रघुवर दास से नाराज हो गए. अर्जुन मुंडा की नाराजगी रघुवर और भाजपा पर भारी पड़ी. अधिकांश आदिवासी विधायक एवं भाजपा नेता मुंडा के पक्ष में गोलबंद हो गए. झारखंड में पार्टी का संगठन कमजोर है और दो गुटों में साफ तौर पर विभाजित है. संगठन में 44 लाख नए सदस्य तो बने पर 22 लाख सदस्यों का सत्यापन नहीं हो सका है. इस मुद्दे पर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने नाराजगी भी जताई थी. अमित शाह ने जीत के कई टिप्स दिए, लेकिन शाह के टास्क पर पार्टी संगठन सुस्त है. राष्ट्रीय अध्यक्ष ने मिशन-2019 को लेकर सरकार के मंत्रियों, विधायकों और पार्टी की सभी ईकाइयों को कई टास्क सौंपे थे, लेकिन अभी तक उस दिशा में कोई काम होता नहीं दिख रहा है.
इधर संथाल परगना में भाजपा अपना किला मजबूत करने की कोशिश में है. केन्द्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने यहां मिशन-2019 की बुनियाद भी रखी. उन्होंने यहां कई योजनाओं का शिलान्यास व उद्घाटन भी किया. इसके जरिए उन्होंने यह संदेश देने की कोशिश की कि भाजपा ही आदिवासी बहुल इस प्रमंडल का कायाकल्प कर सकती है. संथाल परगना में लोकसभा की तीन और विधानसभा की 18 सीटें है. यह क्षेत्र झामुमो का गढ़ माना जाता रहा है. अब भाजपा यहां सेंधमारी का प्रयास कर रही है. इसी कड़ी में झामुमो के 6 विधायक भाजपा में शामिल हुए हैं. हालांकि वे दल-बदल कानून की जद में आ गए और उनका मामला अभी विधानसभा अध्यक्ष के पास लंबित है. इधर रघुवर दास को अपनी ही पार्टी के विधायकों एवं नेताओं से भी भय बना रहता है. भारी बहुमत से सत्ता में आने के बाद भी वे हमेशा एक अनजान भय से डरे रहते हैं. यही कारण है कि वे कभी कांग्रेसी विधायकों को अपने साथ लाने का प्रयास करते हैं, तो कभी झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरने का अर्शीवाद लेते हैं. सत्ता पर काबिज रहने के लिए उन्होंने बाबूलाल मरांडी की पार्टी को तोड़ कर विधायकों को भाजपा में मिला लिया.
रघुवर दास के दावे पर विपक्ष का सवाल
अपने कामों को लेकर मुख्यमंत्री रघुवर दास आत्मविश्वास से लबरेज हैं. उनका मानना है कि भ्रष्टाचार एवं अन्य कारणों से आम जनता का विश्वास राजनेताओं से उठ गया था जिसे वे वापस लाने में सफल रहे हैं. उनका कहना है कि मैं दास बनकर जनता की सेवा कर रहा हूं और 2019 के अंत में जनता को अपने काम का हिसाब दूंगा. जनता उन नेताओं को सबक सिखाएगी, जिन्होंने केवल राज्य को बेचने का काम किया है. मिशन-2019 के बारे में चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने जो टास्क और जिम्मेदारी दी है, उसे हर हाल में पूरा किया जाएगा. भाजपा का जनाधार राज्य में तेजी से बढ़ा है. लोकसभा की सभी 14 सीटों एवं विधानसभा की 81 में से 60 सीटों पर जीत का पार्टी ने लक्ष्य रखा है, जो हर हाल में पूरा होगा, क्योंकि जनता विकास चाहती है और हमारी सरकार ने विकास में एक मिसाल कायम किया है. हमने योजनाओं को जमीन पर उतारा है. पहली बार स्थानीय नीति एवं धर्मान्तरण निषेध विधेयक लाया गया है. स्थानीय नीति के नाम पर पिछले 14 वर्षों से राजनीति हो रही थी. काफी विरोध के बाद भी मैं इस नीति को लाने में सफल रहा. मैने कई राज्यों की स्थानीय नीति का अध्ययन किया और सभी से विचार-विमर्श करने के बाद अंतिम परिणाम पर पहुंचा. इसका लाभ भी अब दिखने लगा है, सरकारी नौकरियों में एक लाख से भी अधिक लोगों को नियुक्त किया गया. जिसमें से 90 प्रतिशत स्थानीय हैं. मोमेंटम झारखंड की परिकल्पना भी इसलिए की गई थी कि हमारे राज्य के बेरोजगारों को घर में ही काम मिले. उद्योगों के आने से रोजगार की संभावनाएं बढ़ेंगी और पलायन जो कि एक बड़ी समस्या है, उसपर रोक लगेगी. रघुवर दास का कहना है कि मैं अब भी उस वादे पर अटल हूं कि अगर 2018 तक गांवों में बिजली नहीं पहुंचा सका, तो वोट मांगने नहीं आऊंगा.
इधर झामुमो नेता हेमंत सोरेन रघुवर दास के दावों पर सवाल उठाते हैं. उनका कहना है कि यहां सरकार नाम की कोई चीज ही नहीं है. झारखंड की सरकार दिल्ली से चल रही है. मुख्यमंत्री रघुवर दास केवल यहां की जमीनें बेचने के लिए सत्ता में बैठे हैं. आला नेताओं के आदेश पर बड़े उधोगपतियों को जमीन दिया जा रहा है. लोग यहां भूख से मर रहे हैं और मुख्यमंत्री विदेश दौरा कर रहे हैं. मोमेंटम झारखंड और माइनिंग शो के नाम पर जनता की गाढ़ी कमाई को लुटाया जा रहा है. इससे राज्य को कोई लाभ नहीं मिल पाया. जीरो टॉलरेंस की बात करने वाले मुख्यमंत्री के कुनबे में ही भ्रष्टाचारियों की जमात है. विकास के नाम पर सरकारी राशि का खुलकर बंटरबांट हो रहा है. राज्य के मुख्यमंत्री, मंत्री, आला अधिकारी सभी भ्रष्टाचार में लिप्त हैं. झााखंड में विकास जमीन पर नहीं, विज्ञापनों में नजर आ रहा है. राज्य में विवि-व्यवस्था पूरी तरह से ध्वस्त है. आए दिन दुष्कर्म एवं हत्या की घटनाएं घटित हो रही हैं. नक्सली लगातार घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं और अधिकारी मुकदर्शक बने हुए हैं. रघुवर सरकार हर मोर्चे पर विफल है. यह सरकार सर्कस की तरह केवल शो दिखाने में विश्वास करती है.