he2016_ph143झारखंड में एक बार फिर मुख्यमंत्री रघुवर दास द्वारा औद्योगिक माहौल बनाने की कोशिश की जा रही है. राज्य में निवेश का बेहतर माहौल दिखाने के तहत राज्य सरकार फरवरी, 2017 में ग्लोबल इन्वेस्टमेंट समिट करने जा रही है. इसे सफल बनाने के लिए मुख्यमंत्री बेंगलुरू, हैदराबाद, दिल्ली, मुम्बई के साथ ही विदेशों में रोड शो कर चुके हैं. मेक इन इंडिया की तर्ज पर मेक इन झारखंड का माहौल बनाने का प्रयास रंग पकड़ने लगा है. सैकड़ों उद्योगपतियों ने राज्य में निवेश की इच्छा जाहिर की है और उनके साथ एमओयू भी हुए हैं. रूस की कंपनी रोसोटोम द्वारा राज्य में परमाणु ऊर्जा संयंत्र लगाने की घोषणा के बाद तो राज्य सरकार अति उत्साह में दिख रही है.

‘देर आये दुरुस्त आये’ की तर्ज पर रघुवर सरकार ने  औद्योगिक घरानों को हर सुविधाएं देने की बात दोहरायी है, उससे लगता है कि इस बार राज्य में औद्योगिक माहौल बनेगा, जिससे औद्योगिक, शैक्षणिक, स्वास्थ्य आदि क्षेत्रों में विकास की नई गाथा लिखी जाएगी. वैसे झारखंड में खनिज  व वन संपदा की प्रचुरता और सस्ते श्रमिक उपलब्ध होने के कारण यह राज्य पहले से ही उद्यमियों की नजर में था. पूर्ववर्ती सरकारों ने भी देशी-विदेशी कंपनियों के साथ एमओयू साइन किए, लेकिन जल, जमीन व व्यवस्थागत पेचीदगियों के कारण उनमें से ज्यादातर ने अपने पांव खींच लिए. एमओयू के बाद कई तो वापस ही नहीं आए और कई निवेशकों ने अपने प्रस्ताव को जमीन पर उतारने के लिए विभागों में दौड़-धूप लगाने के बाद थक-हारकर मुंह मोड़ लिए. नया राज्य बनने के बाद झारखंड का औद्योगिक माहौल छोटे से कालखंड में ही धूमिल हो गया, लेकिन इस बार रघुवर सरकार ने नई सोच और पक्के इरादों के साथ फिर राज्य में औद्योगिक माहौल बनाने का प्रयास किया है. इस बार लोगों को यह अहसास हो रहा है कि बड़े औद्योगिक घराने यहां उद्योग लगायेंगे. अगर नये प्रस्ताव झारखंड की जमीं पर उतर सके, तो रघुवर सरकार की एक नयी साख बन जायेगी. वैसे इस सरकार ने अडानी समूह को सस्ते दर पर जमीन उपलब्ध कराकर एवं विशेष रियायतें देकर दृढ़ इच्छाशक्ति का परिचय दिया है. हालांकि रघुवर सरकार के इस फैसले की काफी आलोचना भी हुई, क्योंकि अडानी को अमित शाह का करीबी माना जाता है और संभवतः पार्टी नेता के दबाव के कारण ही रघुवर सरकार को इस तरह का फैसला लेना पड़ा. वैसे यह भी कहा जा रहा है कि अगर कुछ समय पहले यही माहौल रहता तो अंबानी समूह को झारखंड से अपना बोरिया-बिस्तर नहीं समेटना पड़ता.

पर अब रूसी कंपनी एवं अन्य बड़े औद्योगिक घरानों द्वारा मिले निवेश के प्रस्ताव से मुख्यमंत्री रघुवर दास अति उत्साहित हैं. उनका मानना है कि उद्योगपतियों को पहले विभिन्न प्रक्रियाओं से गुजरना होता था, पर अब सिंगल विंडो सिस्टम प्रणाली लागू की गई है, जिससे एक ही जगह सारी औपचारिकताएं पूरी हो जाएंगी. औद्योगिक घरानों को राज्य में बेहतर आधारभूत संरचना उपलब्ध कराने के साथ पूरी सुरक्षा मुहैया करायी जाएगी. उन्होंने यह दावा किया कि राज्य में विधि-व्यवस्था की स्थिति अन्य राज्यों से बेहतर है. नक्सल समस्या पर भी नियंत्रण कर लिया गया है.

उद्योगपति राज्य में बेहिचक निवेश कर सकते हैं. राज्य में खनिज एवं वन संपदा प्रचुर मात्रा में हैं, जिसका लाभ औद्योगिक घरानों को मिलेगा. मुख्यमंत्री का मानना है कि देश-विदेश में जो रोड शो हुए, उसका उत्साहवर्द्धक परिणाम सामने आ रहा है. रूसी कंपनी द्वारा परमाणु ऊर्जा संयंत्र लगाने से झारखंड को भरपूर मात्रा में बिजली उपलब्ध होगी. स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में भी प्रस्ताव आ रहे हैं जिसके कारण कुछ वर्षों में यह राज्य आत्मनिर्भर हो जाएगा.

मुख्यमंत्री की इस पहल के बाद उद्योग लगाने के प्रस्ताव आने के साथ ही विरोधी दलों के भी आवाज मुखर होने लगे हैं. झारखंड विकास मोर्चा के अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने कहा कि विकास के नाम पर आदिवासी हितों पर कोई समझौता नहीं किया जाएगा. उद्योग लगाने के नाम पर आदिवासियों का विस्थापन बर्दाश्त नहीं होगा. अगर सरकार उद्योगों के लिए यहां की जमीन लेती है तो राज्यव्यापी आंदोलन चलाया जाएगा और एक भी इंच नहीं लेने दिया जाएगा. उन्होंने कहा कि सरकार गैर मजरुआ एवं बंजर जमीनों को चिन्हित कर भूमि बैंक बनाए और उद्योगपतियों को दे.

विधानसभा में विरोधी दल के नेता हेमंत सोरेन ने कहा कि औद्योगिक निवेश के नाम पर मुख्यमंत्री देश-विदेश घूम रहे हैं. सरकारी खजाने की लूट हो रही है. वे राज्य में विकास का काम छोड़ उद्योगपतियों को रिझाने में लगे हैं. पहले आधारभूत संरचना विकसित करनी चाहिए. वैसे इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि इस बार मुख्यमंत्री रघुवर दास की दृढ़ इच्छाशक्ति के कारण राज्य में औद्योगिक माहौल बन सकता है. उद्योग स्थापित होने से लोगों को परोक्ष एवं अपरोक्ष रूप से रोजगार मुहैया हो सकता है, वैसे चर्चा इस बात की भी है कि भाजपा  समर्थित उद्योगपतियों की नजर झारखंड की खनिज संपदा पर है. वे इसी बहाने खनिज संपदाओं पर कब्जा कर सकेंगे और यही कारण है कि मुख्यमंत्री कुछ चुनिंदा उद्योगपतियों को अनुचित लाभ देकर विवादों में घिरते नजर आ रहे हैं.

आदिवासियों के हित की अनदेखी न हो – बाबूलाल

झारखंड विकास मोर्चा के अध्यक्ष एवं राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी का मानना है कि राज्य में विकास का काम होना चाहिए, औद्योगिक माहौल बने पर आदिवासियों के हित को अनदेखी कर विकास का काम नहीं हो. अगर बड़े औद्योगिक घराने अपना उद्योग यहां स्थापित करेंगे तो जाहिर है कि आदिवासियों की जमीन अधिग्रहित की जाएगी, इससे आदिवासियों की अस्मिता पर संकट उत्पन्न होगा और जल, जंगल, जमीन छिने जाएंगे, जिससे अपने ही घर में वे बेघर हो जाएंगे. मरांडी ने कहा कि राज्य सरकार को औद्योगिक घराने को आमंत्रित करने के पहले गैर-मजरुआ, गैर कृषि वाली जमीन एवं बंजर भूमि को चिन्हित कर एक भूमि बैंक बनाना चाहिए, ताकि उद्योग के लिए सरकार जमीन मुहैया करा सके. उन्होंने कहा कि किसी भी हालात में आदिवासी एवं गरीब किसानों की जमीन को अधिग्रहण नहीं करने दिया जाएगा. इससे पहले भी सरकार विकास के नाम पर आदिवासियों एवं मूलवासियों को विस्थापित करने का काम कर चुकी है, अब सरकार चेते, नहीं तो इसके गंभीर परिणाम भुगतने होंगे. मुख्यमंत्री रघुवर दास की विदेश यात्रा की आलोचना करते हुए उन्होंने कहा कि औद्योगिक निवेश के लिए मुख्यमंत्री देश-विदेश की यात्रा पर सरकारी खजाना लुटाने का काम कर रहे हैं. अगर राज्य में छोटे एवं कुटीर उद्योगों पर ध्यान दिया जाता तो अभी तक झारखंड सबसे समृद्ध राज्य बन जाता. यहां की खनिज संपदाओं से दूसरे राज्य शीर्ष पर जा रहे हैं, जबकि हमलोग अपना खनिज लुटाने में लगे हुए हैं. सरकार को इस ओर ध्यान देने की जरूरत है.

अडानी समूह के लिए पूरी ऊर्जा नीति ही बदल दी

निवेशकों को आकर्षित करने के लिए मुख्यमंत्री रघुवर दास अपनी टीम के साथ जहां देश के मेट्रो शहरों एवं विदेशों में रोड शो कर रहे हैं एवं उद्योगपतियों को लाने में सफल भी हो रहे हैं, वहीं भाजपा सरकार  कुछ उद्योगपतियों पर ज्यादा ही मेहरबान नजर आ रही है. इस कारण वे विवादों में भी घिरते जा रहे हैं.  उन्होंने भाजपा के प्यारे उद्योगपति अडानी के लिए पूरी ऊर्जा पॉलिसी ही बदल दी. अडानी समूह गोड्डा में 1600 मेगावाट का पावर प्लांट लगाने जा रहा है. अडानी समूह ने राज्य सरकार के साथ एमओयू साइन किया है. औद्योगिक जगत में यह चर्चा जोरों पर है कि अडानी समूह के लिए राज्य सरकार ने ऊर्जा नीति में बदलाव कर दिया है. इसका सीधा लाभ अडानी के पावर प्रोजेक्ट को मिलेगा. दरअसल सरकार ने 2012 की ऊर्जा नीति में संशोधन किया है, जिसके तहत सरकार उन्हीं पावर प्लांटों से बेरिएवल कॉस्ट पर बिजली लेगी, जिसे सस्ते दर पर राज्य सरकार कोयला उपलब्ध कराएगी. ऊर्जा नीति 2012 के अनुसार झारखंड में स्थापित पावर प्लांट से उत्पादित बिजली का 25 प्रतिशत हिस्सा राज्य सरकार को देना होगा. 25 प्रतिशत में से 13 प्रतिशत बेरिएवल कॉस्ट पर और 12 प्रतिशत तय रेट पर. तय दर अमूमन बेरिएवल रेट का लगभग आधा होता है. सरकार के इस नये फैसले से अडानी समूह को सीधे लाभ पहुंचेगा. राज्य सरकार अब सस्ते दर पर अडानी से बिजली नहीं खरीद सकेगी. अडानी के साथ पहले फेज का एमओयू फरवरी 2015 में मुम्बई में हुआ था, इसके बाद फेज-2 के समझौते में कंपनी ने शर्तों में बदलाव के लिए दबाव बनाया. सरकार अडानी समूह को नाराज नहीं करना चाहती थी, इसलिए नियमों में फेरबदल कर अडानी को सुविधा देने का फैसला राज्य सरकार ने लिया. अडानी प्रोजेक्ट के साथ विवाद के कारण तत्कालीन ऊर्जा सचिव एसकेजी रहाटे का भी तबादला कर दिया गया था. रहाटे शर्तों में बदलाव के पक्ष में नहीं थे. अडानी समूह को सस्ते दर पर जमीन मुहैया कराने को लेकर भी राज्य सरकार की जमकर आलोचना हुई थी.

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