सूबे में दिशोम गुरु के नाम से विख्यात झारखंड आंदोलन के प्रणेता शिबू सोरेन अपनों के बीच ही बेगाने हो गए हैं. अपने मूर्धन्य सहयोगियों से अलग होकर चुनाव मैदान में उतरे शिबू सोरेन को पूरा भरोसा है कि क्षेत्र की जनता उनके साथ अन्याय नहीं होने देगी. जिस राज्य के गठन को लेकर वह अपना खून-पसीना बहाते आए हैं, वहां की जनता उनके साथ नहीं होगी, ऐसा सोरेन सोचते भी नहीं होंगे. उम्र के जिस पड़ाव पर शिबू सोरेन अपने क्षेत्र की सेवा का जज्बा लिए चुनाव मैदान में उतरे हैं, उससे यह साफ़ है कि शिबू सोरेन अपनी राजनीतिक जमीन ताउम्र खोना नहीं चाहते. हाल के दिनों में झामुमो के मजबूत स्तंभों में से एक हेमलाल मुर्मू के पार्टी छोड़ने के बाद अब साइमन मरांडी के बगावती तेवर ने शिबू को अपनों से बिल्कुल दूर कर दिया है. 2014 के लोकसभा चुनाव के पूर्व टिकट को लेकर विवाद में हेमलाल मुर्मू ने पार्टी छोड़ दी थी. फिलहाल वह राजमहल सीट से भाजपा के टिकट पर झामुमो प्रत्याशी विजय हासंदा को चुनौती दे रहे हैं. कुछ वर्ष पूर्व संथाल में शिबू सोरेन के नज़दीकी माने जाने वाले स्टीफन मरांडी ने भी टिकट के मसले पर मतभेद के बाद झामुमो त्याग दिया था.
अब राजमहल सीट से अपने पुत्र को टिकट न मिलने से साइमन मरांडी भी खफा बताए जा रहे हैं. नाराज़ साइमन ने चुनाव प्रचार से स्वयं को अलग कर लिया है और घर पर बैठ गए हैं. उनका कहना है कि यदि झामुमो प्रत्याशी हार जाते हैं, तो उसकी ज़िम्मेवारी मेरे मत्थे मढ़ी जा सकती है और यदि जीत गए, तो उसका श्रेय भी मुझे नहीं मिलने वाला. ऐसी संभावना व्यक्त की जा रही है कि लोकसभा चुनाव के बाद साइमन अपना राजनीतिक रिश्ता किसी और दल से जोड़ सकते हैं. यह कोई अकेला उदाहरण नहीं है. इससे पूर्व भी संथाल में झामुमो को कई सदमों का सामना करना पड़ा है. झामुमो प्रमुख एवं राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन संथाल परगना में एक से बढ़कर एक झटका खाने के बाद अब अकेले दम पर अपना गढ़ बचाने में जुटे नज़र आ रहे हैं. संथाल परगना दशकों तक झामुमो का गढ़ बना रहा, लेकिन अब यह गढ़ कमजोर होता दिख रहा है, क्योंकि किसी समय शिबू सोरेन के सहयोगी रहे लोग एक के बाद एक उनका साथ छोड़ते जा रहे हैं. ऐसी स्थिति में अपना गढ़ बचाए रखना उनके लिए चुनौती बन गया है.
एक जमाने में एक-दूसरे के पूरक रहे सूरज मंडल ने सबसे पहले शिबू सोरेन का साथ छोड़ा. अलग राज्य बनने के पूर्व जब झारखंड में जैक का गठन हुआ था, तो उसके अध्यक्ष शिबू सोरेन बने और सूरज मंडल उपाध्यक्ष बनाए गए. इसके अलावा, बिहार के लालू राज में दोनों ही नेता मुख्यमंत्री लालू प्रसाद के खास लोगों में शामिल थे. बाद में शिबू सोरेन के पुत्र दुर्गा सोरेन से न पटने के कारण सूरज मंडल ने न केवल पार्टी छोड़ी, बल्कि अपनी अलग पार्टी बना ली थी. झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेताओं और रणनीतिकारों की रणनीति ऐसी बन रही है कि कोई भी तीर सही निशाने पर नहीं लग पा रहा है. अब शिबू सोरेन और उनके मुख्यमंत्री पुत्र हेमंत सोरेन के लिए यह सीट प्रतिष्ठा का सवाल बन गई है. पूरे संथाल में झारखंड मुक्ति मोर्चा आधार वाली पार्टी मानी जाती है. आने वाले दिनों में देखना यह है कि झामुमो की प्रतिष्ठा बच पाती है या नहीं?
झारखंड अपनों के बीच बेगाने हुए शिबू
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