समाजवादी पार्टी को महागठबंधन से अलग होने के लिए विवश करने वाले जनता दल (यू) और कांग्रेस की उत्तर प्रदेश में बन रही खिचड़ी बेस्वाद करने की तैयारी चल रही है. सपा नहीं चाहती कि उसके जले पर नमक छिड़क कर जदयू और कांग्रेस अपना मुंह मीठा करें. बिहार में जीत से उत्साहित नीतीश कुमार राष्ट्रीय स्तर पर अपना कद मजबूत करने के प्रयास में उत्तर प्रदेश में भी महागठबंधन की मौजूदगी प्रभावशाली तरीके से दर्ज कराना चाहते हैं, जिसके लिए जदयू, कांग्रेस और राष्ट्रीय लोकदल के बीच सियासी वार्ताएं चल रही हैं.
जदयू का प्रयास महागठबंधन प्रयोग में उत्तर प्रदेश से बसपा को भी साथ जोड़ने का है. इसके बरक्स समाजवादी पार्टी बदला लेने की तैयारी में है, क्योंकि सपाइयों का मानना है कि महागठबंधन से अलग होने में नीतीश कुमार एवं सोनिया गांधी ने बड़ी महीन भूमिका निभाई और मुलायम के समधी लालू यादव अवाक देखते रह गए. लेकिन, जनता दल (यू) उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार की महत्वाकांक्षा को परवान चढ़ाने के अभियान में जुट गया है.
एक तऱफ जदयू उत्तर प्रदेश में पुराने जनता दल से जुड़े रहे नेताओं को अपने साथ जोड़ने के प्रयास में है, तो दूसरी तऱफ समाजवादी पार्टी पुरानी जनता पार्टी के अलावा चंद्रशेखर, देवीलाल एवं वीपी सिंह के साथ रहे लोगों के संपर्क में है और उन्हें अपने साथ लाने की तैयारी कर रही है. इसके पीछे सपा का उद्देश्य उत्तर प्रदेश में जदयू की पहचान न बनने देने के साथ-साथ महागठबंधन से अलग होने के कारण छवि पर आए दाग से उबरना भी है. उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में महागठबंधन को लेकर उतरने के प्रयास में जदयू अध्यक्ष शरद यादव के समक्ष नैतिक संकट है, क्योंकि उन पर मुलायम के कई एहसान हैं.
राजनीतिक निर्वासन की स्थिति से निकाल कर राज्यसभा तक पहुंचाने और राजनीतिक जीवन में फिर से ऑक्सीजन फूंकने के मुलायम के एहसान की बातें शरद यादव उत्तर प्रदेश में कई सार्वजनिक सभाओं में करते रहे हैं. समाजवादी पार्टी के पिछले राष्ट्रीय सम्मेलन में भी शरद यादव ने मुलायम के प्रति अपनी कृतज्ञता ज्ञापित की थी. अब उसी उत्तर प्रदेश में मुलायम के समक्ष खम ठोंकने में शरद के समक्ष नैतिक दिक्कत खड़ी होगी.
जदयू की उत्तर प्रदेश इकाई कुछ अतिरिक्त उत्साह में है. बिहार चुनाव परिणाम से उत्साहित जदयू के उत्तर प्रदेश अध्यक्ष सुरेश निरंजन भइया ने पिछले दिनों मीडिया से कहा कि जदयू 2017 में राज्य विधानसभा चुनाव मजबूती से लड़ेगा. राज्य इकाई बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का प्रदेश में स्वागत करने की तैयारी भी कर रही है. प्रदेश अध्यक्ष ने कहा कि जदयू कांग्रेस, रालोद एवं बसपा के साथ चुनावी गठबंधन करने के प्रयास में है. नीतीश के उत्तर प्रदेश आगमन से यहां हमारे पक्ष में माहौल बनना शुरू हो जाएगा. शरद यादव ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव अपने राष्ट्रीय एजेंडे में रखा है.
प्रदेश में संगठन को मजबूत करने का काम चल रहा है और 65 ज़िलों में संगठन का गठन हो गया है, लेकिन यह अभी स़िर्फ 30 ज़िलों में सक्रिय है. बुंदेलखंड, पूर्वांचल और पश्चिमी क्षेत्र समेत पूरे प्रदेश में मूल जनता दल के लोग जदयू से जुड़े हैं. जदयू की प्रदेश इकाई ने प्रदेश में खनन के ज़रिये प्राकृतिक संसाधनों की लूट, किसानों की बदहाली, बिजली की अनुपलब्धता और लगातार बिगड़ती क़ानून-व्यवस्था पर गहरा चोट किया. प्रदेश अध्यक्ष ने कहा कि जदयू मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करके विधानसभा चुनाव लड़ेगा और उसका मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार पिछड़े या दलित या मुस्लिम समुदाय से होगा.
इन राजनीतिक पतंगबाजियों से अलग उत्तर प्रदेश की ज़मीनी हक़ीक़त भी देखते चलें. बिहार में अकेले दम पर चुनाव लड़ने का जो हश्र समाजवादी पार्टी का होता रहा है, वही हाल जनता दल (यू) का भी उत्तर प्रदेश में हुआ है और भविष्य में भी ऐसा होता हुआ दिखता है. ये दल एक-दूसरे के राज्यों में अपनी जमानतें भी जब्त कराते रहे हैं. 2012 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में जदयू और राजद की बुरी गत हुई थी.
जदयू ने तब 219 उम्मीदवार खड़े किए थे, जबकि राजद के उम्मीदवारों की संख्या चार थी. इनमें से एक भी उम्मीदवार अपनी जमानत नहीं बचा पाया. चुनाव प्रचार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एवं राजद प्रमुख लालू प्रसाद भी खूब सक्रिय रहे थे. आंकड़े बताते हैं कि तब जदयू के 219 उम्मीदवारों ने मिलकर दो लाख 70 हज़ार 303 वोट हासिल किए थे और राजद के चार उम्मीदवारों के खाते में स़िर्फ 31 हज़ार 847 वोट आए थे.
राजग में शामिल लोजपा ने भी 212 उम्मीदवार मैदान में उतारे थे, लेकिन सबके सब अपनी जमानत जब्त करा बैठे. लोजपा के सभी उम्मीदवारों को मिलाकर एक लाख 73 हज़ार 458 वोट मिले थे. अब जरा बिहार विधानसभा चुनाव में सपा एवं बसपा का हाल देखते चलें. 2015 के विधानसभा चुनाव में महागठबंधन से अलग होने के बाद समाजवादी पार्टी ने कुल 80 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे, लेकिन उसका केवल एक उम्मीदवार बाबू बरही सीट पर अपनी जमानत बचा सका, अन्य सारे उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई.
सपा को मात्र एक प्रतिशत यानी कुल तीन लाख 85 हज़ार 511 वोट हासिल हुए. बहुजन समाज पार्टी ने खूब आगे बढ़कर अपने 228 उम्मीदवार मैदान में उतारे, लेकिन चैनपुर, भभुआ एवं रामगढ़ सीटों पर ही उसके उम्मीदवारों की जमानत बच सकी, बाकी 225 सीटों पर जमानत जब्त हो गई. बसपा को 2.1 प्रतिशत यानी कुल सात लाख 88 हज़ार 24 वोट मिले. उत्तर प्रदेश की सियासी ज़मीन में दखल जमा रहे असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लमीन ने बिहार में पहली बार छह विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ा, जहां उसे मात्र 0.2 प्रतिशत यानी 80 हज़ार 248 वोट हासिल हुए.
लब्बोलुबाव यह कि इसी पोपली राजनीतिक ज़मीन पर जदयू-राजद और सपा-बसपा एक-दूसरे के राज्यों में चुनाव लड़ते रहे हैं. समाजवादी पार्टी ने 2010 के बिहार विधानसभा चुनाव में भी अपने 146 उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन उसका एक भी उम्मीदवार अपनी जमानत नहीं बचा सका था. समाजवादी पार्टी ने इसके पहले तीन-चार सीटें जीती भी हैं, लेकिन दलबदलुओं के कारण उसकी बिहार में फजीहत होती रही है.
1995 के चुनाव में सपा ने 176 उम्मीदवार उतारे थे, जिनमें से दो जीते थे और एक अपनी जमानत बचाने में सफल रहा था. शेष 173 उम्मीदवार जमानत नहीं बचा सके थे. 2000 के चुनाव में सपा ने केवल छह उम्मीदवार मैदान में उतारे, जिनमें से दो जीत गए, लेकिन चार अपनी जमानत गंवा बैठे. 2005 के चुनाव में सपा ने 142 उम्मीदवार खड़े किए थे, जिनमें से चार को विजयश्री हासिल हुई, सात अपनी जमानत बचाने में कामयाब रहे, जबकि 131 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई.
अब वर्ष 2017 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव होना है. ऐसे में, फिर से सभी राजनीतिक दल अपनी-अपनी तैयारियों में जुट गए हैं. राजनीतिक समीक्षकों का भी मानना है कि राष्ट्रीय दल के रूप में अपनी शिनाख्त दर्ज कराने के लिए जब सपा एवं बसपा या एमआईएम जैसी पार्टियां बिहार या अन्य राज्यों में चुनाव लड़ सकती हैं, तो जदयू या राजद क्यों नहीं? बिहार के चुनाव परिणाम ने जदयू और राजद को अन्य राज्यों की ओर रुख करने का मौक़ा भी दिया है. इसी इरादे से जदयू उत्तर प्रदेश में भी कुछ सीटें जीतने की जुगत में है. जदयू को उम्मीद है कि उसे नीतीश कुमार के चेहरे का फायदा मिलेगा.
यह अलग बात है कि अब राजनीतिक परिदृश्य अलग होगा. महागठबंधन को ठोस शक्ल तक पहुंचाने वाले नेता मुलायम सिंह यादव आज महागठबंधन से अलग हैं और वह प्रतिद्वंद्वी की तरह सामने खड़े होंगे. जदयू ने कहा है कि वह अपना मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करके चुनाव में उतरेगा, लिहाजा अब आम लोगों के साथ-साथ राजनीतिक दलों की भी नज़रें इस बात पर टिकी हैं कि जदयू उत्तर प्रदेश में किस चेहरे को अपना नेता घोषित करता है.