तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता की आय से अधिक संपत्ति उनके लिए विपत्ति का कारण बनी और उन्हें जेल जाना पड़ा. जयललिता के ख़िलाफ़ अदालत के इस रुख से अब मायावती की जान आफत में है. मायावती की अकूत संपत्ति भी अदालत की निगाह में है, इसीलिए सीबीआई की टालमटोल के बावजूद मामला टलता नहीं दिख रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी कर ही रखा है. दूसरी तरफ़ मुलायम सिंह भी सीधे नहीं, तो घुमा-फिराकर इसकी परिधि में आ रहे हैं. जयललिता के आय से अधिक संपत्ति मामले में अदालत का फैसला न केवल मायावती, बल्कि देश भर के सियासतदानों को हतप्रभ और सतर्क करने वाला है.
जयललिता के ख़िलाफ़ अदालत का फैसला आने के बाद उत्तर प्रदेश में राजनीति के शीर्ष गलियारे में गंभीरता छाई हुई है. दूसरी तरफ़ आम लोगों में इस मसले पर चर्चा तेज हो गई है. सबको मालूम ही है कि मायावती के आय से अधिक संपत्ति मामले की जांच में सीबीआई ने किस तरह कोताही की और मामला राजनीतिक दबाव और क़ानूनी उपेक्षा के कारण ठोस शक्ल नहीं ले सका. लेकिन, पिछले दिनों से यह फिर से सुगबुगाने लगा. अब जयललिता प्रकरण में फैसला आ जाने के बाद इसका तेज होना सुनिश्चित है. जयललिता मसले पर फैसला आने से कुछ दिनों पहले ही मायावती और सीबीआई, दोनों के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट की तरफ़ से नोटिस जारी हो चुका था. सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका पर बसपा प्रमुख मायावती और सीबीआई को नोटिस जारी कर रखा है. याचिका में मायावती के आय से अधिक संपत्ति मामले में नए सिरे से एफआईआर दर्ज करने और इसकी जांच कराने का निर्देश देने का आग्रह किया गया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि तकनीकी आधार पर अदालत की ओर से एफआईआर रद्द किए जाने के बाद सीबीआई को अदालत से उपयुक्त सलाह लेनी चाहिए थी. तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश आर एम लोढ़ा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने कमलेश वर्मा की याचिका पर केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार को भी नोटिस जारी कर रखा है. पीठ ने पूर्व मुख्यमंत्री मायावती और सीबीआई सहित सभी पक्षकारों को चार हफ्ते में जवाब देने का निर्देश दे रखा है.
सुप्रीम कोर्ट ने मायावती की तरफ़ से बहस करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता एवं बसपा नेता सतीश चंद्र मिश्र की उन दलीलों को दरकिनार कर दिया, जिनमें कहा गया था कि यह राजनीति से प्रेरित है. पीठ ने परोक्ष रूप से अपने 2012 के फैसले का हवाला दिया, जिसमें तकनीकी आधार पर मायावती के ख़िलाफ़ आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने से जुड़ा मामला खारिज कर दिया गया था. उस फैसले में सीबीआई के समक्ष मायावती के ख़िलाफ़ ताजा मामला दर्ज करने का विकल्प खुला रखा गया था, लेकिन सीबीआई ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा भी कि अदालत का काम हरेक बिंदु पर आदेश जारी करना नहीं है. उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट ने जुलाई 2012 के फैसले में मायावती के ख़िलाफ़ नौ साल पुराने आय से अधिक संपत्ति मामले को इस आधार पर खारिज किया था कि सीबीआई ने 2003 के उसके आदेश को बिना ठीक ढंग से समझे ही आगे बढ़ा दिया और आय से अधिक संपत्ति की जांच को ताज कॉरिडोर प्रकरण से जुड़ा रखा, जो महज 17 करोड़ रुपये की अनियिमतता से जुड़ा है. सीबीआई ने आय से अधिक संपत्ति मामले की व्यापकता को संकुचित करते हुए अदालत की आड़ लेकर इसे ताज कॉरिडोर प्रकरण की जांच में शामिल कर दिया. जबकि दोनों मामले अलग-अलग हैं. इसीलिए सुप्रीम कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया था.
मई 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने जुलाई 2012 के फैसले की समीक्षा करने की याचिका पर निर्णय सुरक्षित रखते हुए स्पष्ट किया था कि उसके पिछले फैसले में आय से अधिक संपत्ति मामले में मायावती के ख़िलाफ़ आगे की कार्रवाई करने का अधिकार सीबीआई से वापस थोड़े ही ले लिया गया था! इसके बावजूद सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट के इस रुख पर कोई ध्यान नहीं दिया. स्पष्ट है कि सीबीआई मायावती के आय से अधिक संपत्ति मामले की जांच करने से टालमटोल कर रही थी. अब उसे इस टालमटोल का जवाब देना है. टालमटोल की पराकाष्ठा तो इसी से समझी जा सकती है कि सीबीआई के अनुसंधानकर्ता क्या रिपोर्ट फाइल करने वाले हैं, मायावती को यह भी पता रहता था. इस पर सीबीआई के तत्कालीन निदेशक विजय शंकर ने गहरी आपत्ति भी जताई थी. सनद रहे, मायावती के आय से अधिक संपत्ति मामले में ही सुप्रीम कोर्ट पहले भी कह चुका है कि सीबीआई बसपा अध्यक्ष मायावती के ख़िलाफ़ आय से अधिक संपत्ति के मामले की जांच करने के लिए पूरी तरह स्वतंत्र है. याद रहे कि सीबीआई ने मायावती की आय से अधिक संपत्ति की जांच में ढेर सारे सबूत हासिल किए थे, लेकिन बाद में हुए घालमेल के कारण असली मामले से ध्यान हट गया. सुप्रीम कोर्ट ने ताज कॉरिडोर प्रकरण से डीए (आय से अधिक संपत्ति) मामला जोड़े जाने की सीबीआई की कार्रवाई खारिज की थी, लेकिन सीबीआई को असली मामले की जांच से मना नहीं किया था! फिर भी सीबीआई चादर तानकर सो गई. अब उन सबूतों पर भी बात होगी, जो सीबीआई ने इकट्ठा किए थे. धीरे-धीरे परतें खुल रही हैं. कभी कोई बसपा नेता फंस रहा है, तो कभी कोई नौकरशाह. लेकिन किन नेताओं, कर्मचारियों, नौकरों एवं विश्वासपात्रों के नाम पर मायावती की बेनामी संपत्तियां हैं, अभी इसका खुलासा होना बाकी है. मायावती द्वारा रिश्तेदारों के नाम पर बनाई गई अनाप-शनाप संपत्तियों के सबूत सीबीआई के पास हैं.
सीबीआई की जांच-पड़ताल में मायावती और उनके कुनबे की कई सौ करोड़ से अधिक की चल-अचल संपत्तियों का पता चला था. ताज कॉरिडोर को लेकर मायावती के ख़िलाफ़ 18 जुलाई, 2003 को विभिन्न धाराओं में मामला दर्ज हुआ था. सीबीआई को जांच पड़ताल में मिले सबूतों के आधार पर 5 अक्टूबर, 2003 को आरसी नंबर 19-ए के तहत आय से अधिक संपत्ति के मामले में अभियोग दर्ज किया गया था. राजनीतिक सौदेबाजी और दबाव के चलते तब सीबीआई ऐसा कुछ खास नहीं जुटा पाई. सुप्रीम कोर्ट ने फिर भी 17 करोड़ रुपये पर सवाल उठाया, जिनका पता नहीं चला कि वे कहां चले गए.
बहरहाल, सुप्रीम कोर्ट के ताजा रुख से स्पष्ट है कि मायावती की आय से अधिक संपत्ति का मामला अलग है और ताज कॉरिडोर घोटाला मामला अलग. दोनों अलग-अलग विषय हैं और दोनों की अलग-अलग जांच हो सकती है. विधि विशेषज्ञों का भी कहना है कि ताज कॉरिडोर मामले से डीए मामला जोड़ दिए जाने को खारिज किया गया था. इससे आय से अधिक संपत्ति की जांच की संभावनाओं को ही ख़त्म नहीं माना जा सकता.
सूत्र कहते हैं कि सीबीआई की फाइल में कई शहरों में मायावती के नामी-बेनामी बंगले, हीरे-जवाहरात के आभूषण और कई फार्म हाऊसों का जिक्र है. दिल्ली स्थित मायावती के दो बैंक खातों से मिले 2.5 करोड़ रुपये से ज़्यादा की धनराशि के ब्यौरे के साथ ही इन खातों से निकाले गए रुपये ठिकाने लगाने का विवरण भी सीबीआई की फाइलों में दर्ज है. सबूत मिटाने की भी कोशिशें खूब हुईं. फाइलों से छेड़छाड़ करने की केंद्रीय फॉरेंसिक जांच प्रयोगशाला और विज्ञान प्रयोगशाला द्वारा भी पुष्टि की जा चुकी है. अब जब फिर से (निष्पक्षता से) जांच होगी, तो सीबीआई अपनी ही फाइल फिर से खोलेगी. तब बसपा के राष्ट्रीय महासचिव एवं मायावती के खास क़ानूनी सलाहकार सतीश चंद्र मिश्र और उनकी बहन आभा अग्निहोत्री के देहरादून स्थित उन भूखंडों का भी जिक्र आएगा, जिन्हें बढ़ी हुई क़ीमतों पर बसपा कर्मचारी महेश टमटा को बेचा दिखाया गया. महेश टमटा जैसे कई कर्मचारी हैं, जिनके नाम ऐसी संपत्तियां दर्ज हैं. ऐसा ही नैनीताल या अन्य स्थानों में भी हुआ. देहरादून में कई अचल संपत्तियां मायावती के भाई एवं भाभियों के नाम हैं. मसूरी के विधायक रहे राजेंद्र शाह के देहरादून के नेहरू नगर स्थित विशाल भवन की खरीदारी मायावती के भाई के नाम हुई थी. यह संपत्ति आज करोड़ों रुपये की है. ऐसे अनगिनत मामले सीबीआई की पकड़ में हैं. सीबीआई के सूत्र बताते हैं कि आयकर विभाग की आंख में धूल झोंकने के इरादे से मायावती ने अपने भाई-भतीजों, मां-बाप और रिश्तेदारों के नाम बैंक खातों में बड़ा धन जमा किया. उनके नाम से भवन-भूखंड भी खरीदे. मायावती के चपरासियों एवं रसोइयों तक के नाम भारी बैंक बैलेंस एवं भूखंडों की जानकारी सीबीआई के पास है. मायावती ने अपने गांव बादलपुर में जो आलीशान महल बनवाया, उसकी खूबसूरती के लिए ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी ने 35 एकड़ ज़मीन पर लगभग 140 करोड़ रुपये की लागत से दो पार्क बनाए थे.
मायावती सारा धन बसपा और बसपा फाउंडेशन का बताती हैं, लेकिन यह नहीं बतातीं कि फिर उस धन को दूसरों के बैंक खातों में क्यों जमा कराया गया? मायावती को बिजनौर के लोगों ने रावली रोड पर एक शानदार कोठी खरीद कर दी थी. उस कोठी को भी बेच डाला गया और उसकी रकम का पता नहीं चला. याद रहे कि मायावती ने बिजनौर में बिरादरी के लोगों के छप्परों के नीचे बैठकर अपनी राजनीति शुरू की थी. तब फूल सिंह कबाड़ वाले और उनके कुछ सहयोगी अपनी साइकिल के पीछे बैठाकर मायावती को गांव-गांव ले जाते थे. फूल सिंह कबाड़ वाले तो ज़िंदा नहीं हैं, लेकिन यह सच्चाई तो अब भी ज़िंदा है.
मुलायम तक पहुंच सकती है आंच
उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एवं देश के पूर्व रक्षा मंत्री मुलायम सिंह यादव के आय से अधिक संपत्ति मामले की जांच का प्रकरण तो समाप्त हो गया है, लेकिन जांच के दायरे में उनकी पत्नी साधना गुप्ता एवं उनके छोटे बेटे प्रतीक यादव तो हैं ही. लिहाजा, यह जांच कभी न कभी मुलायम तक आंच पहुंचा सकती है. याद करते चलें कि मुलायम सिंह के ख़िलाफ़ आय से अधिक संपत्ति मामले की जांच बंद करने के बाद सीबीआई ने आयकर विभाग से कहा था कि वह साधना गुप्ता द्वारा अपने बेटे प्रतीक यादव के नाम पर अर्जित कथित बेनामी संपत्तियों की जांच करे. सीबीआई ने आयकर विभाग को लिखे पत्र में करोड़ों रुपये मूल्य की चार संपत्तियां लखनऊ में होने का जिक्र किया था. सीबीआई ने 2007 की अपनी रिपोर्ट में इन संपत्तियों को मुलायम सिंह की संपत्ति में शामिल कर लिया था, लेकिन बाद में हटा दिया. सीबीआई ने मुलायम के ख़िलाफ़ आय के ज्ञात स्रोत से अधिक संपत्ति से जुड़ा पुराना मामला साक्ष्य के अभाव में बंद कर दिया था. इसके लिए उसने सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश का हवाला दिया था, जिसमें कहा गया था कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव की आय, संपत्ति और व्यय को परिवार के अन्य सदस्यों से अलग किया जाना चाहिए. सीबीआई ने कहा, जांच के दौरान दस्तावेजों, गवाहों के बयानों और संदिग्धों के बयान की सावधानीपूर्वक जांच में मुलायम सिंह एवं उनके परिवार के सदस्यों के ख़िलाफ़ संयुक्त रूप से या निजी तौर पर आय के ज्ञात स्रोत से अधिक संपत्ति रखने के आरोप के समर्थन में पर्याप्त साक्ष्य नहीं सामने आए हैं.