दिल्ली के आगोश में स्थित मेजर ध्यानचंद नेशनल स्टेडियम 8 से 10 दिसम्बर तक तीन दिवसीय जश्न-ए-रेख्ता का गवाह बना. इसमें कोई शक नहीं कि आज जश्न-ए-रेख्ता दिल्ली के तहजीबी कैलेंडर का एक महत्वपूर्ण आयोजन बन गया है. यूं तो उर्दू के नाम पर इस शहर में अलग-अलग संस्थानों द्वारा समय-समय पर सेमिनार और अन्य कार्यक्रम आयोजित होते रहते हैं, लेकिन उर्दू तहजीब का जो व्यापक स्वरूप जश्न-ए-रेख्ता में देखने को मिलता है, उसकी मिसाल कहीं और नहीं मिलती. यहां सूफियों की बैठक भी जमी और शायरों के कलाम भी सुने गए, दास्तान की महफिल भी सजी तो तरह-तरह के पकवानों का जायका भी लिया गया. उर्दू जुबान के अलग-अलग रंग थे तो हिंदी और दूसरी ज़ुबानों से इसके रिश्तों को भी ज़ेर-ए-बहस लाया गया.
दरअसल जश्न-ए-रेख्ता के आयोजनों ने उर्दू से सम्बंधित बहुत सारे मिथकों को ता़ेडा है. उनमें सबसे पहली यह है कि सियासत ने उर्दू को मुसलमानों से जोड़ दिया. मुसलमानों ने भी यह मान लिया कि उर्दू केवल उन्हीं की जुबान है. उन्हें ही इसे सहेजना है और इसकी तरक्की के लिए काम करना है. लेकिन जश्न-ए-रेख्ता में जुटी भीड़ और रेख्ता डॉट ऑर्ग पर विजिट करने वाले लोगों की संख्या बताती है कि उर्दू को किसी खास खाने में बंद करना ठीक नहीं है. इसी बात को जश्न-ए-रेख्ता के उद्घाटन समारोह को संबोधित करते हुए फिल्म अदाकारा वहीदा रहमान ने भी दुहराया. उन्होंने कहा, फिल्म इंडस्ट्री में हमारे दौर में 80 फीसद लोग उर्दू में लिखते और पढ़ते थे.
उनमें मनोज कुमार, धर्मेन्द्र, देवानंद शामिल हैं, मगर भारत विभाजन के बाद उर्दू को किसी खास मज़हब से जोड़ दिया गया. उन्होंने फिल्म और मुशायरों के सम्बन्ध पर भी रौशनी डाली और उम्मीद ज़ाहिर की कि संजीव सराफ इसका सिलसिला भी शुरू करेंगे. दरअसल वहीदा रहमान उर्दू की उस परम्परा का ज़िक्र कर रही थीं, जिसका हिस्सा पंडित दयाशंकर नसीम, पंडित रतननाथ सरशार, प्रेमचंद, जगन्नाथ आज़ाद, फ़िराक गोरखपुरी, आनंद नारायण मुल्ला, राजेन्द्र सिंह बेदी और कृष्ण चंद्र जैसे दिग्गज थे.
कार्यक्रम का उद्घाटन भारतीय शास्त्रीय संगीत के विश्वविख्यात गायक पंडित जसराज और वहीदा रहमान ने रेख्ता फाउंडेशन के संस्थापक संजीव सराफ की मौजूदगी में शमा रौशन कर किया. पंडित जसराज ने कहा कि मुझे इस बात की ज्यादा ख़ुशी है कि रेख्ता नामी एक तंजीम है, जिसका ताल्लुक उर्दू से है. दुनिया में बड़ी-बड़ी ज़ुबानें बोली जाती हैं और वक्त गुजरने के साथ मर जाती हैं, क्योंकि उनकी देख रेख करने वाला कोई नहीं होता. मगर मैं संजीव सराफ साहब को मुबारकबाद देता हूं कि उन्होंने यह सिलसिला शुरू किया. उन्होंने यह भी कहा कि हमें हर जगह उर्दू की कमी महसूस होती है. वहीं संजीव सराफ ने अपने संबोधन में कहा कि आज मेज़बान और मेहमान में कोई फर्क नहीं है.
2013 में रेख्ता की शमा रौशन की गई थी, देखते ही देखते दुनिया के करोड़ों लोग इस शमा पर निसार होने लगे. दरअसल संजीव सराफ की जुबान से निकले ये रस्मी अल्फाज नहीं थे, बल्कि वाकई इस कार्यक्रम में न केवल भारत बल्कि विदेशों से भी उर्दू से मोहब्बत करने वालों को अपनी ओर खींच लिया था. संजीव सराफ ने मेहमानों का शुक्रिया अदा करते हुए कहा कि 2015 में हमने रेख्ता का पहला जश्न मनाया था और साल दर साल लोगों के जुड़ने का सिलसिला जारी है. उन्होंने कहा कि उर्दू जुबान या शायरी एक मज़हब की नहीं, बल्कि ज़ज्बात की आवाज़ है, जो कभी खत्म नहीं होगी.
पहले दिन के कार्यक्रम में उद्घाटन के बाद उस्ताद राशिद खां ने क्लासिकी गायकी से समां बांध दिया. खास तौर पर याद पिया की आए ने तो सुनने वालों को मन्त्रमुग्ध कर दिया. कार्यक्रम के उद्घाटन के बाद वहीदा रहमान और पंडित जसराज ने उर्दू के हवाले से अपने विचार व्यक्त किए और उर्दू से अपने संबंधों को उजागर किया. जश्न के दूसरे दिन महफिल-ए-खाना के तहत मशहूर सूफी संगीतकार और गायक मदन गोपाल सिंह ने बुल्ले शाह, रूमी, अमीर खुसरो आदि के कलाम से सुनने वालों पर अपना जादू बिखेरा.
बज़्म-ए-ख्याल में असलम मिर्ज़ा, हबीब निसार, नसीमुद्दीन और नाजिम रहमत युसूफ़जई ने दकिनी उर्दू के अलग-अलग गोशों को उजागर किया. उर्दू के मशहूर अफसाना निगार सआदत हसन मंटो की जिन्दगी पर बनने वाली फिल्म में मुख्य भूमिका निभा रहे फिल्म अभिनेता नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी भी नज़र आए और इस फिल्म के बारे में लोगों को बताया. उन्होंने अपनी विवादास्पद किताब का भी ज़िक्र किया. शाफे किदवई ने उर्दू के मशहूर आलोचक गोपीचंद नारंग से उर्दू भाषा और हिन्दुस्तान की धार्मिक परम्परा पर बातचीत की.
उसके बाद के सत्र में शुभा मुद्गल ने अपनी मधुर आवाज़ में उर्दू की बागीयाना रवायत से सुनने वालों को रुबरू कराया. निलेश मिसरा ने उर्दू से इश्क की दास्तान सुनाई और रात में महफिल-ए-मुशायरा का एहतमाम किया गया. इस मुशायरे में आलम खुर्शीद, जावेद अख्तर, राहत इन्दौरी, शारीक कैफ़ी आदि शायरों ने अपने कलाम से सुनने वालों को नवाज़ा.
तीसरे दिन के कार्यक्रम की शुरुआत सूफी संगीत से हुई. सुनने वालों से खचाखच भरे पंडाल में देवसी सहगल ने अपनी मधुर आवाज़ से समां बांध दिया. निजामी ब्रदर्स ने अपनी क़व्वाली सुनाई, नदीम शाह और शंकर मुसाफिर ने दास्तानगोई की महफिल सजाई, अनौपचारिक बातचीत के जरिए उर्दू तहजीब को समझने और समझाने की कोशिश की गई. दरअसल तीन दिनों तक चलने वाले इस जश्न में हजारों उर्दू दोस्तों ने शिरकत की. खास तौर पर मशहूर उद्योगपति और पूर्व केंद्रीय मंत्री कमल मोरारका, कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद, चौथी दुनिया के प्रधान संपादक संतोष भारतीय, फिल्म जगत की जानी-मानी हस्तियां जावेद अख्तर, नंदिता दास, मुजफ़्फर अली, अन्नू कपूर आदि ने शिरकत कर जश्न में चार चांद लगा दिया.
जश्न के समापन समारोह में संजीव सराफ ने जज्बाती अंदाज़ में सभी मेहमानों का शुक्रिया अदा किया. उन्होंने कहा कि आज तक की अपनी ज़िन्दगी में मैंने इतना सभ्य मजमा नहीं देखा. ये सब उर्दू का सदका है. उन्होंने अपनी तक़रीर में कहा कि उर्दू एक मज़हब की नहीं, बल्कि एक तहजीब की आवाज़ है. बहरहाल उर्दू तहजीब के अलग-अलग पहलुओं से अवगत करता जश्न-ए-रेख्ता इस बार दिल्ली वालों के दिलों पर अपनी छाप छोड़ गया.
रेख्ता फाउंडेशन की सरगर्मियां
हालांकि जश्न-ए-रेख्ता की कामयाबी अपनी जगह बरक़रार है, लेकिन रेख्ता फाउंडेशन की सबसे बड़ी उपलब्धि इसकी वेबसाइट है. वर्ष 2013 में अपनी स्थापना के बाद से अब तक रेख्ता फाउंडेशन ने हैरतअंगेज कारनामा कर दिखाया है. फाउंडेशन ने अपने जिम्मे वो काम लिया, जिसे उर्दू के नाम पर चलने वाली किसी बड़ी सरकारी संस्था या यूनिवर्सिटी को करना चाहिए था.
बहरहाल, रेख्ता डॉट ऑर्ग की कामयाबी का स़फर लगातार जारी है. इसकी डिजिटल सामग्री में दिन प्रतिदिन इजा़फा होता जा रहा है. पिछले साल इस वेबसाइट पर शायरों की संख्या लगभग 2,300 थी, जो अब बढ़कर 3000 हो गई है. रेख्ता डॉट ऑर्ग ने इन शायरों की 30 हज़ार ग़ज़लें, 5 हज़ार नज्में, 5 हज़ार ऑडियो और 5 हज़ार विडियो को ऑनलाइन दस्तयाब कराया है.
फाउंडेशन ने पुरानी और नायाब किताबों के डिजिटाइ़जेशन का ज़िम्मा भी उठा रखा है. इसके लिए देश भर की लाइब्रेरियों और लोगों के निजी संग्रह से भी मदद ली जा रही है. पिछले साल रेख्ता डॉट ऑर्ग के ई-बुक सेक्शन में किताबों की संख्या 23,000 थी, जो अब बढ़ कर 34 हज़ार तक पहुंच गई है और हर महीने इसमें एक हज़ार किताबों का इजाफा हो रहा है. सबसे बड़ी बात यह है कि इतने बड़े ज़खीरे से फायदा उठाने के लिए किसी तरह का कोई शुल्क नहीं लगाया गया है. यहां उर्दू लिपि नहीं जानने वाले लोगों के लिए उर्दू के साथ-साथ रोमन और देवनागरी लिपि में ग़ज़लों और नज्मों का एहतमाम किया गया है.
उर्दू लिपि सिखाने के लिए इस वर्ष फ़रवरी में ‘आमो़िजश’ नाम से एक प्रोग्राम शुरू किया गया था. इस प्रोग्राम के तहत अब तक 13 लोगों ने उर्दू लिपि शनासाई हासिल की है. इसके अलावा उर्दू लर्निंग प्रोग्राम के तहत उर्दू लिपि, उर्दू तहजीब और उर्दू अदब से उर्दू न जाने वाले लोगों को रूबरू करवाने के लिए जो क्लासेज शुरू किए गए थे, अब तक उसके पांच बैच निकल चुके हैं. पब्लिशिंग के शोबे में ‘ग़ज़ल उसने छ़ेडी’ की तीन जिल्दें प्रकाशित हो चुकी थीं. अब उसकी चौथी जिल्द भी मंज़र-ए-आम पर आ चुकी है. इस जिल्द में पाठकों को 19वीं सदी के दूसरे भाग के उर्दू शायरी के अहम पड़ावों से अवगत कराया गया है.
हर्फ़-ए-ताज़ा सीरिज के तहत नौजवान शायरों की किताबों के प्रकाशन का ज़िम्मा उठाया गया है. इसके तहत सालिम सलीम और जुल्फिकार आदिल की किताबें छप चुकी हैं. देवनागरी लिपि में मशहूर शायरों के चुनिन्दा कलाम प्रकाशित करने का प्रोग्राम बनाया गया है, जिसके तहत अनवर शउर और शारिब कैफ़ी की प्रतिनिधि शायरी प्रकाशित की गई है. इसके अलावा फाउंडेशन ने सूफीनामा के तहत सूफियाना कलाम और भक्ति दौर की कविताओं को एक जगह जमा करने का प्रोग्राम बना रखा है.
जैसा कि संजीव सराफ ने कहा कि अंग्रेजों ने देश में उर्दू और हिंदी के दरम्यान दीवार खड़ी कर हमारी तहजीबी विरासत को भी बांट दिया. इसी विभाजन को ख़त्म करने के लिए रेख्ता डॉट ऑर्ग ने ऐसा वेबसाइट तैयार किया है, जिसमें एक साथ उर्दू, हिंदी और रोमन लिपि में सामग्रियां मौजूद हैं. इस वेबसाइट की एक खास बात यह भी है कि उर्दू के मुश्किल शब्दों का अर्थ महज़ एक क्लिक में मालूम हो जाता है. बहरहाल, इस वेबसाइट पर वे नायाब किताबें भी दस्तयाब हैं, जो वर्षों पहले आउट ऑ़फ प्रिंट हो चुकी थीं. उर्दू शोधकर्ताओं के लिए भी यह एक बड़ी लाइब्रेरी की तरह है.