सारा देश विपक्ष विहीन है. विपक्षी दलों में कांग्रेस के पास लोकसभा में सबसे ज़्यादा सांसद हैं, लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और उपाध्यक्ष राहुल गांधी तय नहीं कर पा रहे हैं कि उनकी भूमिका क्या है. कभी-कभी तो ऐसा लगता है, जैसे अभी तक सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने मानसिक रूप से स्वीकार ही नहीं किया है कि वे चुनाव हार चुके हैं. और, शायद इसी मानसिकता का एक उदाहरण है कि राहुल गांधी के थिंक टैंक के एक सदस्य ने देश के सौ युवा कांग्रेस के सक्रिय सदस्यों की बैठक बुलाई और उसमें तीन घंटे तक उन्हें यह समझाया कि 2014 में कांग्रेस चुनाव नहीं हारी है, बल्कि कांग्रेस चुनाव जीती है. शायद यह दिमागी भ्रम का सबसे सटीक उदाहरण है. आशा थी कि नरेंद्र मोदी के कार्यकाल के छह महीने बीतने पर उनके क़दमों, उनके विचारों और सरकार द्वारा चिन्हित रास्ते के बारे में विपक्ष की ओर से एक सक्रिय संदेश देश को दिया जाएगा, पर ऐसा कुछ नहीं हुआ.
मार्क्सवादी पार्टी या दूसरे शब्दों में कहें, तो वामपंथी दल अपने सिमटे हुए जनाधार के धक्के से अभी तक नहीं उबर पाए हैं. और, दूसरी तरफ़ जयललिता हों, नवीन पटनायक हों या फिर ममता बनर्जी हों, वे इस स्थिति में ही नहीं हैं कि नरेंद्र मोदी का जवाब दे सकें. ममता बनर्जी ने अपनी पार्टी के एक सांसद की गिरफ्तारी को बदले की कार्रवाई बताया है. शायद यह ममता बनर्जी का विपक्ष के नेता के तौर पर अपनी भूमिका का सही आकलन न कर पाना माना जा सकता है. उनकी पार्टी के कई सारे लोग जिस सारदा चिटफंड घोटाले में फंसे दिखाई दे रहे हैं, उससे उन्हें बचाने की छटपटाहट तो मानी जा सकती है, पर यह विपक्षी नेता का रोल नहीं माना जा सकता. विपक्ष के नेता का रोल बहुत बड़ा होता है, उसे हर क़दम पर सत्ता पक्ष के क़दमों के ऊपर नज़र रखनी पड़ती है और उस नज़र का सैद्धांतिक व वैज्ञानिक विश्लेषण कर जनता को समझाना होता है. और, जब सालों के बाद चुनाव होते हैं, उस समय जनता विपक्ष के नेताओं को तौलती है और उन्हें सत्ता में आना है या नहीं, यह तय करती है.
इस विपक्ष विहीन देश की राजनीति में अगर कोई बड़ी हलचल मची है, तो वह जनता परिवार के एकजुट होने की संभावना को लेकर मची है. नीतीश कुमार और मुलायम सिंह यादव की पहल पर जनता परिवार के बिखरे हुए तमाम नेता दो बार एक साथ बैठ चुके हैं. इन नेताओं को एक साथ लाने में मुलायम सिंह यादव और नीतीश कुमार की बड़ी भूमिका है. मुलायम सिंह यादव देश की राजनीति में समाजवादी विकल्प देने के लिए बड़ी भूमिका निभाने की तैयारी कर रहे हैं और वह नीतीश कुमार को नरेंद्र मोदी के मुकाबले एक सार्थक हथियार के रूप में विकसित कर रहे हैं. पर वे सवाल अभी तक वहीं के वहीं हैं, जिनकी वजह से जनता परिवार बिखरा था. लेकिन, इस समय ऐसा लगने लगा है कि उन सवालों का हल जनता परिवार के नेता तलाशने में जुटे
हुए हैं.
नीतीश कुमार चाहते हैं कि जनता परिवार के तमाम बिखरे हुए लोग, जिनमें पहला नाम देवगौड़ा जी का है, दूसरा नाम मुलायम सिंह यादव का है, तीसरा नाम लालू यादव का है, चौथा नाम ओम प्रकाश चौटाला का है और पांचवीं उनकी स्वयं की पार्टी, जिसमें वह, शरद यादव और केसी त्यागी जैसे लोग शामिल हैं, सब मिलकर एक दल बनाएं. नीतीश कुमार का मानना है कि यदि एक दल नहीं बनता है, तो वे लोग नरेंद्र मोदी की राजनीति का मुकाबला नहीं कर सकते. नीतीश कुमार का यह भी मानना है कि यह परिवार उस कहानी को चरितार्थ कर रहा है, जिसमें एक किसान ने अपने पुत्र को समझाया था कि सात लकड़ियां अलग-अलग रहने पर आसानी से तोड़ी जा सकती हैं, लेकिन अगर वे एक साथ बंध जाएं, एक साथ मिल जाएं, तो उन्हें तोड़ना नामुमकिन हो जाता है. और, इसलिए वह जोर दे रहे हैं कि सब लोग मिलकर एक दल बनाएं और इस अभियान में उन्हें मुलायम सिंह यादव, देवगौड़ा जी और ओम प्रकाश चौटाला का खुला समर्थन प्राप्त है.
दिसंबर में जनता परिवार की होने वाली तीसरी बैठक में इस बात की संभावना है कि मुलायम सिंह यादव को नए बनने वाले दल का अध्यक्ष मान लिया जाए और उनके ऊपर यह ज़िम्मेदारी छोड़ दी जाए कि वह बाकी सारे लोगों से बातचीत कर नए दल का नाम, उसका झंडा और विलय की प्रक्रिया तय करें. मुलायम सिंह यादव उस पार्टी में सबका रोल देखते हैं, क्योंकि उनका मानना है कि देश बहुत बड़ा है, लेकिन उसमें नीतीश कुमार का रोल ज़्यादा देखते हैं. नीतीश कुमार का ज़्यादा रोल देखने का मतलब यह नहीं है कि लालू यादव या शरद यादव या ओम प्रकाश चौटाला की हैसियत कम होगी, बल्कि इसका मतलब यह है कि वह एक पूर्ण रूप से काम करने वाले संगठन का नक्शा बनाना चाहते हैं. संभावना इस बात की भी है कि अगर मुलायम सिंह की अध्यक्षता में एक पार्टी का निर्माण हो जाता है, जिसके बारे में नीतीश कुमार का मानना है कि उसका कुछ भी नाम रखा जा सकता है, बल्कि नीतीश कुमार ने अपने कुछ दोस्तों से यह भी कहा कि समाजवादी पार्टी का भी नाम हम सब स्वीकार कर सकते हैं, क्योंकि नाम से जीत हासिल नहीं होती है, काम से जीत हासिल होती है.
तो फिर, देश की राजनीति में विपक्ष का एक सार्थक रोल निभाने वाला दल पैदा हो जाएगा और वह दल सत्ता का माकूल जवाब दे सकता है. देवगौड़ा का यह मानना है कि यदि जनता परिवार एक होकर एक पार्टी बना लेता है, तो फिर नवीन पटनायक, ममता बनर्जी और जयललिता से बात की जा सकती है. और, संसद में लगभग 100 सांसदों का एक ठोस समूह देश की समस्याओं के ऊपर एक राय रख सकता है.
इस सारी स्थिति में मुलायम सिंह यादव का रोल और नीतीश कुमार का आत्मविश्वास एक सार्थक भूमिका निभा रहा है. नीतीश कुमार ने देश में पिछले तीस सालों में नैतिकता का अद्भुत उदाहरण पेश किया है. उन्होंने हार की नैतिक ज़िम्मेदारी लेते हुए मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा दे दिया. इसने नीतीश कुमार को बाकी नेताओं से अलग कर दिया है. नीतीश कुमार ने इस्तीफ़ा देने के बाद एक हज़ार से ज़्यादा कार्यकर्ताओं से बात की और अपनी हार के कारणों को जानने की कोशिश की. और, जैसा नीतीश कुमार अपने दोस्तों को बताते हैं कि उन्हीं कारणों को जानने के लिए उन्होंने बिहार में संपर्क यात्रा शुरू की है. नीतीश कुमार इस संपर्क यात्रा में अपनी उस कमी को स्वीकार करते हैं, जिसकी वजह से उन्हें कार्यकर्ताओं से दूर हो जाना पड़ा. उस कमी को स्वीकार करने की वजह से कार्यकर्ता दोबारा नीतीश कुमार की तरफ़ आकर्षित हो रहे हैं. पूरी संपर्क यात्रा के दौरान जैसा प्रत्युत्तर नीतीश कुमार को कार्यकर्ताओं की तरफ़ से मिला, उसने एक नए नीतीश कुमार को जन्म दिया है. इस समय नीतीश कुमार आत्मविश्वासी हैं, जोख़िम लेना चाहते हैं और देश में जनता परिवार को एक करने में अपनी भूमिका की महत्ता को भी समझ रहे हैं. नीतीश कुमार उस पूरे संगठन में अपना नाम न रखने का जुआ भी खेल सकते हैं, पर सारे विपक्ष के लोग जानते हैं कि नीतीश कुमार के अग्रणी नाम के बिना आज की तारीख में नया बनने वाला दल वह साख हासिल नहीं कर पाएगा, जो साख उसे मिलनी चाहिए.
इसलिए मानना चाहिए कि मुलायम सिंह यादव और नीतीश कुमार की कोशिशों के फलस्वरूप देश में एक नए विपक्षी दल का प्रादुर्भाव होगा, पर इसमें सबसे बड़ा ख़तरा यह है कि तीन बड़े दलों के अध्यक्ष एक समुदाय से आते हैं. इन दलों के नेताओं को देश को यह भी एहसास दिलाना पड़ेगा कि यह नया दल सभी वर्गों और सभी समूहों का प्रतिनिधित्व करता है, तभी इसे जनता के सभी वर्गों का साथ मिलेगा. अभी तक की उपलब्ध नेतृत्व सूची में किसी दलित नेता का नाम नहीं है. इन सारी चुनौतियों को मुलायम सिंह यादव, नीतीश कुमार और बाकी जनता परिवार के लोग समझेंगे और इसका कोई न कोई ऐसा समाधान निकालेंगे, जो उन्हें भविष्य में या तो भारतीय जनता पार्टी या कांग्रेस के साथ जाकर उनके पिछलग्गू का रोल निभाने के लिए मजबूर न करे. यही चुनौती है और इसी का जवाब अगले एक महीने में अगर नहीं मिलता है, तो फिर उसके बाद उस जवाब के मिलने से भी कोई फ़़र्क नहीं पड़ने वाला है.
जनता परिवार की एकजुटता बहुत ज़रूरी है
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