चुनावों में हार के बाद अक्सर कुछ न कुछ होता है. कुछ संकेत होते हैं, कुछ शिक्षाएं होती हैं. 13 सितंबर को देश के तीन राज्यों में विधानसभा के उपचुनाव हुए. उत्तर प्रदेश, राजस्थान एवं गुजरात. और, जब 16 सितंबर को नतीजे आए, तो दृश्य कुछ इस तरह का था, जिसमें भारतीय जनता पार्टी इन उपचुनावों की अहमियत मान ही नहीं रही थी और जो जीते थे, वे इन्हें भविष्य का संकेत बता रहे थे. परिणाम आने से पहले भाजपा सारी सीटें जीतने का दावा कर रही थी, क्योंकि उसने पूरा चुनाव नरेंद्र मोदी के नाम पर लड़ा था.
उत्तर प्रदेश का डिजाइन तो कमाल का था. यहां पर भारतीय जनता पार्टी ने सारे मुद्दे बदल कर सांप्रदायिक धु्रवीकरण की रणनीति अपना ली और योगी आदित्य नाथ को चुनाव की कमान सौंप दी. योगी आदित्य नाथ ने हिंदू महासभा के एजेंडे को आरएसएस की तर्ज पर आगे बढ़ाया और उत्तर प्रदेश के हिंदुओं को एकजुट करने का नारा लगाने लगे. उनके द्वारा मुस्लिम समाज पर हुए हमलों ने तनाव बढ़ाया. उनका कहना था कि जहां मुसलमान दस प्रतिशत से ज़्यादा होते हैं, वहीं पर सांप्रदायिक दंगे होते हैं. इसके बाद तो लव जिहाद, जिसका प्रचार उन्होंने बिना किसी संकोच के किया और यह संकेत दिया कि हिंदू समाज अपनी किसी भी लड़की का किसी भी मुस्लिम लड़के के साथ संबंध स्वीकार करेगा ही नहीं.
अब सुशील कुमार मोदी ने कहा है कि योगी आदित्य नाथ भाजपा का चेहरा नहीं हैं. हालांकि, सुशील कुमार मोदी बिहार में भी चुनाव हार चुके थे और उनके ख़िलाफ़ भी भाजपा में ही आवाज़ें तेज हुई हैं, जबकि उत्तर प्रदेश में भाजपा के भीतर वरुण गांधी को प्रदेश का नेतृत्व सौंपने की मांग उठने लगी है, ताकि उन्हें उत्तर प्रदेश के भावी मुख्यमंत्री के तौर पर पेश किया जा सके. विधानसभाओं के उपचुनाव कई संकेत देते हैं. पहला संकेत यह है कि उत्तर प्रदेश ने देश की जनता की इस मानसिकता को दर्शाया है कि हिंदू समाज किसी भी प्रकार की घृणा के अभियान और सांप्रदायिक धु्रवीकरण को पसंद नहीं करता. उसने यह भी बताया है कि वोट नरेंद्र मोदी के भ्रष्टाचार, महंगाई एवं बेरा़ेजगारी के मुद्दे को मिला था, न कि देश को हिंदू और मुसलमानों में बांटने के एजेंडे पर. इससे शायद संघ और भाजपा को धारा 370, कॉमन सिविल कोड और राम मंदिर के मुद्दे पर पुनर्विचार करने का संकेत मिल गया होगा. देश की जनता अपनी समस्याओं से छुटकारा चाहती है, झगड़ा नहीं चाहती है. शायद भाजपा एवं नरेंद्र मोदी एक और तथ्य को समझना नहीं चाहते. वह तथ्य है कि लोकसभा चुनाव में स़िर्फ दो धु्रव थे, एक तरफ़ नरेंद्र मोदी और दूसरी तरफ़ टूटी-फूटी, अनिच्छुक चुनाव लड़ रही कांग्रेस और उसके नेता राहुल गांधी. कोई तीसरा विकल्प था ही नहीं. विधानसभा के इन उपचुनावों में लोगों को तीसरा विकल्प मिला.
उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव ने इस बात को दर्शाया कि बिहार में मिली जीत कोई गलती से मिली जीत नहीं है और शायद इसीलिए 14 सितंबर को दिल्ली में एक क्लोज डोर बैठक हुई, जिसका पता मीडिया में किसी को नहीं चला. उस बंद दरवाजे वाली बैठक में स्वयं नीतीश कुमार, मुलायम सिंह यादव, शरद यादव, ओम प्रकाश चौटाला, कमल मोरारका, शिवपाल सिंह यादव और के सी त्यागी मौजूद थे. इस बैठक में इस बात पर गहन विचार हुआ कि क्या जनता परिवार को एक साथ लाने की कोशिश करनी चाहिए. लगभग सभी इस बात पर सहमत थे कि अगर जनता परिवार एक होता, तो देश में न सांप्रदायिक धु्रवीकरण होता और न भाजपा इतनी आसानी से 282 सीटें पाकर देश पर राज करती. उस बैठक में एक तथ्य सामने आया कि लगभग 155 ऐसे सांसद हैं, जो भाजपा से कभी जुड़े नहीं रहे. वे इस चुनाव में ही भाजपा से जुड़े. इसका मतलब 282 में से आधे सांसद ऐसे हैं, जिनका रिश्ता भाजपा से नहीं रहा. इस बैठक की सबसे प्रमुख घटना मानी जानी चाहिए कि यह तय हुआ कि पुराने जनता परिवार को इकट्ठा किया जाए और सब एक दूसरे की मदद करें.
इसी बैठक में ओम प्रकाश चौटाला ने चौधरी देवीलाल की सौंवी पुण्य तिथि पर जींद में एक आमसभा में सबको आमंत्रित किया. सभी लोग उस आमसभा में जाने वाले हैं. शायद जनता परिवार के नज़दीक आने का यह पहला क़दम होगा और यह संयोग है कि जब सन् 1987 में जनता परिवार की नींव पड़ी थी, तो तत्कालीन मुख्यमंत्री एवं हरियाणा के सबसे बड़े नेता चौधरी देवीलाल मुहिम के अगुवा थे. आज इस मुहिम को आगे बढ़ाने का काम हरियाणा के भूतपूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला कर रहे हैं. इस बैठक में नीतीश कुमार ने सबसे यह सवाल पूछा कि अगर हम एक नहीं होंगे, तो इसका विकल्प क्या है? और, इसका जवाब किसी के पास नहीं था. लगभग सभी नीतीश की इस बात से सहमत थे कि जनता परिवार के लोगों को नज़दीक आना चाहिए और एक दूसरे का साथ उनके प्रदेश में देना चाहिए. 14 सितंबर को जब यह बैठक हो रही थी, तो सबके दिमाग में था कि उत्तर प्रदेश के उपचुनाव में क्या होगा. इस सवाल को खुद नीतीश कुमार ने मुलायम सिंह से पूछा कि परसों यानी 16 सितंबर को जब नतीजे आएंगे, तो क्या मैनपुरी में होगा और क्या बाकी 11 जगहों पर?
मुलायम सिंह ने शिवपाल सिंह की तरफ़ देखकर कहा कि इसका जवाब तो शिवपाल देंगे. शिवपाल सिंह ने अपने सहज अंदाज में कहा कि मैनपुरी में तो हम उसी तरह जीतेंगे, जैसे मुलायम सिंह जी के उम्मीदवार रहते जीते थे और बाकी जगह भी हम कम से कम 6 सीटें जीतेंगे. नीतीश कुमार सहित सबकी राय थी कि अगर आप 2 सीटें भी जीत जाते हैं, तो फिर लोग यह मानेंगे कि आपको भाजपा पर विजय मिली. कारण सबने एक ही बताया कि ये ग्यारह की ग्यारहों सीटें भाजपा के जीते हुए विधायकों की सीटें थीं. इस पर शिवपाल सिंह का जवाब था कि हम शायद 6 सीटों से ज़्यादा भी जीत जाएं और, जब 16 सितंबर को परिणाम आया, तो समाजवादी पार्टी आठ विधानसभा सीटें और एक लोकसभा सीट जीत चुकी थी.
अब ऐसा लगता है कि जींद से एक नया विकल्प बनने की तैयारी शुरू होगी, जिसमें एक पार्टी नहीं होगी, लेकिन एक फ्रंट होगा और इस फ्रंट का बुनियादी सिद्धांत होगा कि कोई किसी दूसरे के राज्य में दखल नहीं देगा. दरअसल, जनता परिवार के ये सारे पुराने लोग इस बात से सीख ले चुके हैं कि उनकी कोशिश हमेशा यह रही कि कभी अपने दोस्त रहे शख्स को डिस्टर्ब करके अपना पैर कैसे उसके प्रदेश में जमाया जाए. लेकिन, कोई इसमें सफल हो नहीं पाया. मुलायम सिंह ने बहुत कोशिश बिहार में की और नीतीश कुमार एवं शरद यादव ने बहुत कोशिश उत्तर प्रदेश में की, पर कोई किसी के यहां दखलअंदाजी नहीं कर पाया. उसी तरह ओम प्रकाश चौटाला के राज्य में भी कुछ लोगों ने कोशिश की, पर वे सफल नहीं हो पाए. अब शायद सभी को इसका एहसास हो गया है कि हम सब अगर मिल जाएं, तो हम ताकत हैं और अगर हम बिखरे रहे, तो हर कोई आकर हमें एक चपत लगाकर चला जाएगा. उत्तर प्रदेश के परिणामों ने इन सभी नेताओं को एक नया उत्साह दिया है और अगर कहीं यह जनता फ्रंट बन जाता है, तो यह निश्चित मानना होगा कि इस समय देश की सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा के लिए एक बड़ी चुनौती तैयार हो जाएगी.
संभावना इस बात की है कि भाजपा इस बनने वाले जनता फ्रंट को तोड़ने की भरपूर कोशिश करे और इनमें से किन्हीं एक या दो नेताओं को अपने साथ लाने की रणनीति बनाए. सत्ता के एक
छोटे-से अंगूर को चखने के लिए अपनी सारी कमाई स्वाहा कर देना, शायद इस बार कोई न चाहेगा. इन उपचुनावों ने जनता परिवार के लोगों को यह भी बता दिया है कि वे अब मध्य प्रदेश और राजस्थान में भी अपने क़दम बढ़ा सकते हैं, पर शर्त एक ही है कि सारे लोग ईमानदारी से एक हों और आने वाले हरियााणा विधानसभा चुनाव में ओम प्रकाश चौटाला का समर्थन करें. उसके बाद बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार का समर्थन करें और फिर सबसे महत्वपूर्ण राज्य उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में मुलायम सिंह यादव का समर्थन करें. इतिहास राजनीति के इस पृष्ठ में कौन-सी लाइन लिखने वाला है, अभी किसी को पता नहीं, पर वे लाइनें अगर नेताओं ने ईमानदारी का परिचय दिया, तो अद्भुत हो सकती हैं. सावधानी इतनी ही रखनी है कि कोई भी षड्यंत्र कर दूसरे की टांग खींचने की कोशिश न करें, क्योंकि देखा गया है कि जब साथ होते हैं, तो हर आदमी बड़ा बनने की कोशिश करता है और जब वही कांग्रेस या भाजपा के खेमे में जाता है, तो दबकर, मुंह बंद किए हुए हर चीज हंसते-हंसते सहता है और उसे सही करने के तर्क भी देता है. देखना है, इस बार जनता परिवार के लोग कैसा व्यवहार करते हैं. एक दूसरे का साथ देते हैं या एक दूसरे की आंख में धूल झोंकते हैं.
जनता परिवार का एकजुट होना ज़रूरी
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