जम्मू-कश्मीर विशेषकर कश्मीर घाटी में पिछले 27 वर्षों से जारी हिंसक घटनाओं से सबसे ज्यादा यहां की महिलाएं प्रभावित हुई हैं. पिछले ढाई दशकों के दौरान कई स्वयंसेवक संगठनों और विश्वसनीय संगठनों की तरफ से जारी की गई रिपोर्टों में साबित किया जा चुका है कि कश्मीर के हालात में यहां की महिलाओं की एक बड़ी संख्या तरह-तरह की परेशानियों और दुखों से पीड़ित हैं. महिलाओं के साथ बलात्कार भी होता है और उनके संबंधियों की हत्याएं भी हुई हैंै, टॉर्चर भी हुआ है और उन्हें मनोवैज्ञानिक आघात भी पहुंचा है. कश्मीर की हिंसक स्थिति के नतीजे में यहां हजारों महिलाओं के बच्चे मारे जा चुके हैं.
उनके सुहाग लुट गए हैं. शायद सबसे ज्यादा भयानक स्थिति का सामना उन महिलाओं को करना पड़ा है, जिनके पति वर्षों से लापता हैं. मानव अधिकारों के लिए काम करने वाले तटस्थ संगठनों का कहना है कि पिछले 27 साल की अवधि में आठ से दस हजार तक कश्मीरी लापता हुए हैं. सरकारी स्तर पर मात्र चार लोगों के लापता होने की पुष्टि की गई है. इन लापता लोगों के घरवालों का आरोप है कि इन्हें फोर्स ने उठाकर गायब कर दिया है. उन महिलाओं के लिए, जिनके पति लापता हुए हैं, कश्मीर में अर्धविधवा कहा जाता है. धार्मिक आधार पर उन्हें तुरंत दूसरी शादी करने की अनुमति नहीं है.
जबतक की धार्मिक या कानूनी तौर से संबंधित संस्थान उनके पतियों को मृत घोषित न कर दें, तबतक उन्हें विधवा नहीं कहा जा सकता है. अपने पति की वापसी या उन्हें किसी न्यायालय की तरफ से मृत घोषित करने की प्रतीक्षा में सैकड़ों अर्धविधवाएं अधेड़ उम्र को पार कर जाती हैं. ऐसी महिलाओं को ससुराल में संपति से हिस्सा भी नहीं मिलता है, क्योंकि जबतक ये तय न हो जाए कि उनके पति अब इस दुनिया में नहीं हैं और वो विधवा हो चुकी हैं, तबतक उन्हें पति की सम्पति में हिस्सा नहीं मिल सकता है. केवल ये एक पहलू नहीं है, जिससे पता चलता है कि कश्मीर की हिंसक परिस्थितियों के कारण कश्मीरी महिलाओं को किस कदर परेशानियों का सामना करना पड़ता है. वो महिलाएं भी जीते जी मर गई हैं, जिनके बच्चे, पति या माता-पिता हिंसक हालात की भेंट चढ़ चुके हैं.
हर नरसंहार के नतीजे में महिलाओं को ही आहत होना पड़ता है. ये सिलसिला बिना किसी रोट-टोक के जारी है. डेढ़ वर्ष पहले विश्व स्वयंसेवी संगठन डॉक्टर्स विदाउट बॉर्डर्स ने एक रिपोर्ट जारी करते हुए ये सनसनीखेज खुलासा किया कि कश्मीर में 50 फीसदी महिलाएं डिप्रेशन की शिकार हैं. कश्मीर यूनिवर्सिटी के डिपार्टमेंट ऑफ साइकोलॉजी और मेंटल हेल्थ न्यूरो साइंस के सहयोग से कश्मीर घाटी के तमाम दस जिलों के 399 गांवों में 5428 घरों में कराए गए इस सर्वे की रिपोर्ट दिसंबर 2015 में जारी की गई थी. किसी अंतरराष्ट्रीय स्वयंसेवी संगठन की तरफ से कराया गया ये पहला सर्वे नहीं है. पिछले डेढ़ दशक के दौरान इस तरह के दर्जनों सर्वे कराए गए, जिनसे साबित होता है कि हिंसक हालात में महिलाओं की एक बड़ी संख्या शारीरिक और भावनात्मक रूप से प्रभावित हो चुकी हैं.
विडंबना ये है कि न तो कश्मीर के हिंसक हालात बदलते हैं और न ही महिलाओं की दुर्दशा में कोई बेहतरी नजर आती है. इन दिनों कश्मीर घाटी में महिलाओं की चोटियां काटे जाने की रहस्यमय वारदातें हो रही हैं. पुलिस खुद स्वीकार कर चुकी है कि घाटी के विभिन्न क्षेत्रों में 100 से अधिक महिलाओं के बाल कतरे गए हैं. सार्वजनिक क्षेत्रों में एक धारणा है कि सरकारी एजेंसियों ने महिलाओं की चोटियां काटे जाने का ये रहस्यमय सिलसिला शुरू किया है. एक थ्योरी ये भी फैल रही है कि सेना ने घाटी में मिलिटेंट्स को खत्म करने के लिए जो ऑपरेशन ऑल आउट शुरू किए हैं, उसे कामयाब बनाने के लिए प्रयोग किए जा रहे रणनीतियों में यह भी एक रणनीति का हिस्सा है.
इसका मकसद जनता में रहस्यमय वारदातों का इस कदर डर बिठाना है कि वो किसी अजनबी यानी मिलिटेंट को अपने घरों में पनाह देने से इनकार कर दें. दूसरी तरफ पुलिस चोटियां काटे जाने की घटनाओं को झूठ समझती है. इंसपेक्ट जनरल ऑफ पुलिस ने हाल में यहां तक कहा है कि जिन महिलाओं ने चोटियां काटे जाने की शिकायत की है, उनका नार्को टेस्ट होगा, यानी पुलिस को उनके दावे पर भरोसा नहीं है. हालांकि चोटियां काटे जाने की घटनाएं घाटी के लगभग सारे जिलों में हुई हैं.
इन सारी घटनाओं को झुठलाना एक बड़ी हिमाकत है. कुछ तो हो रहा है, ये अलग सवाल है कि ये सब कौन करवा रहा है और क्यों करवा रहा है? लेकिन ये बात निर्विवाद है कि चोटियां काटे जाने की वारदातें अब प्रतिदिन घटित हो रही हैं. इससे कश्मीरी महिलाएं सहमी हुई हैं. महिलाओं का घरों से बाहर निकलना मुश्किल हो गया है. छोटी-छोटी बच्चियां तक सहमी हुई हैं. सुबह सवेरे ट्यूशन के लिए जाने वाली लड़कियां अब अकेले घरों से बाहर निकलने में खौफ खा रही हैं. जाहिर है कि ये दहशत कश्मीरी महिलाओं को भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक तौर पर और भी कमजोर कर रही हैं.
हालांकि चोटियां काटे जाने के इस रहस्यमय सिलसिले के कारण पूरी कौम भयभीत और प्रभावित हो चुकी है. लेकिन सच यही है कि सबसे अधिक असर महिलाओं पर हो रहा है. पता नहीं, कश्मीर के हालात के नतीजे में यहां की महिलाओं को कब तक परेशानियों का सामना करना पड़ेगा? कब हालात बदलेंगे और कब यहां की महिलाएं इस दुविधा से बाहर आएंगी. सवाल ये भी है कि अगर कश्मीरी महिलाओं को इसी तरह लगातार खौफ और दहशत के और दिन गुजारने पड़ेंगे तो इसका कश्मीरियों की आने वाले नस्लों पर क्या असर पड़ेगा.