मुफ्ती मोहम्मद सईद के निधन के तीन हफ्ते बाद भी पीडीपी यह फैसला नहीं कर पाई है कि उसे भाजपा के साथ अपना गठबंधन जारी रखना चाहिए या नहीं, बल्कि मुफ़्ती परिवार द्वारा जम्मू के वजारत रोड स्थित मुख्यमंत्री निवास खाली कर देने से इस धारणा को बल मिला है कि निकट भविष्य में पीडीपी का सरकार बनाने का कोई इरादा नहीं है. दूसरी तरफ पीडीपी भी यह ज़ाहिर नहीं कर रही है कि सरकार बनाने को लेकर उसके मन में क्या है.
पार्टी के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि मुफ़्ती मुहम्मद सईद के निधन के बाद उनकी बेटी और राजनीतिक उत्तराधिकारी महबूबा मुफ़्ती इसलिए उलझन में हैं, क्योंकि एक तरफ जहां भाजपा के साथ मिलने की सूरत में मुख्यमंत्री की कुर्सी उनका इंतज़ार कर रही है, तो वहीं दूसरी तरफ भाजपा के साथ गठबंधन सरकार के दस महीने के कामकाज से कश्मीर में लोग पीडीपी से नाराज़ हैं. इस सरकार को जारी रखने का अर्थ है जनता की और अधिक नाराज़गी मोल लेना और पीडीपी की लोकप्रियता में और अधिक कमी लाना.
सच तो यह है कि दस महीने की पीडीपी-भाजपा सरकार की वजह से कश्मीर घाटी में पीडीपी की लोकप्रियता का ग्राफ लगातार गिरा है. इसका कारण यह है कि पीडीपी ने वोट हासिल करने के लिए लोगों से जो वायदे किये थे, उन वायदों में से एक भी पूरा नहीं हुआ. 2014 के विधानसभा चुनाव में पीडीपी को मिली सभी 28 सीटें घाटी के मुस्लिम वोटरों के बदौलत मिली थीं, जबकि उसके उलट भाजपा को उसकी सभी 25 विधानसभा सीटें जम्मू के हिन्दू बहुल विधानसभा क्षेत्रों से मिली थीं. दोनों दलों ने अपने-अपने वोटरों को लुभाने के लिए एक-दूसरे के विपरीत वायदे किये थे.
मिसाल के तौर पर भाजपा ने उस वक़्त देश भर में चल रही मोदी लहर का भरपूर लाभ उठाते हुए धर्म के नाम पर वोट हासिल किए. भाजपा ने जम्मू के वोटरों से वायदा किया कि भाजपा जीती तो राज्य में पहली बार गैर-मुस्लिम और जम्मू से संबंध रखने वाला व्यक्ति मुख्यमंत्री बनेगा. भाजपा ने सत्ता में आते ही जम्मू और कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाली संविधान की धारा-370 को समाप्त करने की बात की थी.
दरअसल, भाजपा ने मुसलमानों की भावनाओं के ठीक विपरीत वायदे किए थे, लेकिन इसके उलट पीडीपी ने घाटी में अवाम से कहा था कि अगर यह पार्टी सत्ता में आई तो कश्मीर के राजनीतिक कैदियों को रिहा किया जाएगा, राज्य में लागू अफ्स्पा कानून खत्म किया जाएगा, नियंत्रण रेखा के दोनों तरफ सम्पर्क बढ़ाया जाएगा, कम के कम दो बिजली परियोजनाओं को नेशनल हाइड्रोइलेक्ट्रिक पॉवर कॉरपोरेशन (एनएचपीसी) के नियंत्रण से लेकर उनके मालिकाना अधिकार राज्य को वापस दिलाए जायेंगे, लेकिन दस महीने की गठबंधन सरकार में न तो भाजपा और न ही पीडीपी अपने वोटरों से किये गए वायदे को पूरा कर सकीं. दोनों पार्टियों ने सरकार बनाने के लिए जो एजेंडा ऑ़फ अलायन्स तैयार किया था, पिछले दस महीने की सरकार में उस पर कोई अमल नहीं हुआ.
घाटी में लोग पीडीपी से केवल इसलिए ही नाराज़ नहीं हैं कि वह अवाम से किये गए अपने वायदे पूरा करने में असफल रही, बल्कि लोग इसलिए भी नाराज़ हैं, क्योंकि उसने भाजपा के साथ गठबंधन करके राज्य में भाजपा को अपने एजेंडे के क्रियान्वयन का अवसर दिया. भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाने की वजह से पीडीपी की लोकप्रियता में आई कमी का अंदाज़ा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि मुफ़्ती मोहम्मद सईद के जनाज़े की नमाज़ में केवल दो हज़ार लोग शामिल हुए. हालांकि केवल एक साल पहले बड़ी संख्या में लोग उन्हें वोट देने के लिए निकले थे.
पीडीपी के एक वरिष्ठ नेता ने चौथी दुनिया से बातचीत करते हुए कहा कि हमें इस बात का एहसास है कि लोग हम से नाराज़ हैं. इसीलिए महबूबा जी चाहती हैं कि भाजपा के साथ मिलकर फिर से सरकार बनाने से पहले हमें यह आश्वासन मिले कि भाजपा जनता के साथ किये गए हमारे वादों को पूरा करने से नहीं रोकेगी. उनका कहना था कि हम कश्मीर में अपनी साख के साथ अब और अधिक खिलवाड़ नहीं कर सकते. पिछले एक साल के दौरान हम सितम्बर 2014 के बाढ़ पीड़ितों का पुनर्वास भी नहीं कर सके. लोग हमसे नाराज़ हैं. हमारे पास इसके सिवा कोई और चारा नहीं कि हम या तो जनता की उम्मीदों पर खरा उतरें या फिर सरकार छोड़ दें.
दूसरी तरफ भाजपा की मजबूरी यह है कि वह खुले तौर पर पीडीपी के एजेंडे के कार्यान्वयन की इजाज़त नहीं दे सकती है, क्योंकि दिल्ली और बिहार में पराजय के बाद यह बात सा़फ हो गई है कि पूरे देश में जो मोदी लहर चल रही थी, वह अब समाप्त हो गई है. जनता उससे नाराज़ है. जम्मू के लोग भाजपा से इस वजह से भी नाराज़ हैं, क्योंकि यह पार्टी चुनाव के दौरान उनसे किए गए वादे पूरे नहीं कर पाई है.
इन्हीं कारणों की वजह से जम्मू और कश्मीर में सरकार बनाने का मामला लगातार खटाई में पड़ा हुआ है. इस बीच राज्य में सरकार बनाने में हो रही देरी के कारण राजनीतिक समीक्षक यह अटकलें लगाने लगे हैं कि यदि भाजपा और पीडीपी ने साथ मिलकर सरकार न बनाने का फैसला किया तो ऐसी स्थिति में क्या होगा? चूंकि कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस ने पहले से ही ज़ाहिर कर दिया है कि वे पीडीपी को अपना समर्थन नहीं देंगे. इससे सा़फ ज़ाहिर है कि अगर भाजपा और पीडीपी की सरकार नहीं बनती है तो विधानसभा भंग होगी और राज्य में नए चुनाव की तैयारियां होंगी.
अधिकतर समीक्षकों को यकीन है कि नए चुनाव की स्थिति में नेशनल कॉन्फ्रेंस फायदे में रहेगी, क्योंकि पिछले दस महीने की सरकार में पीडीपी की असफलताओं की याद लोगों के मन में ताज़ा रहेगी. उसी तरह जम्मू में पिछले चुनाव में भाजपा को मिलने वाली अधिकतर सीटें कांग्रेस के खाते में जा सकती हैं. लिहाज़ा, यह कहा जा सकता है कि नए चुनाव की स्थिति में कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस को फायदा होगा.