जल अनेक अर्थों में जीवनदाता है, लेकिन अगर जल के दूषित रूप को हम प्रयोग में लाएं, तो ये हमारे लिए बीमारियों के कारक के साथ-साथ जीवनघातक भी हो सकता है. रोगाणुओं, जहरीले पदार्थों एवं अनावश्यक मात्रा में लवणों से युक्त पानी अनेक रोगों को जन्म देता है. विश्व भर में 80 फीसदी से अधिक बीमारियों में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से प्रदूषित पानी का ही हाथ होता है. प्रति घंटे 1000 बच्चों की मृत्यु प्रदूषित जल जनित रोग, अतिसार के कारण हो जाती है.
वर्तमान समय में जल प्रदूषण की स्थिति बेहद
चिंताजनक है. शहरों में बढ़ती हुई आबादी के द्वारा उत्पन्न किए जाने वाले मल-मत्र, कूड़े-करकट को पाइप लाइन अथवा नालों के जरिए नदियों में प्रवाहित किया जाता है. इसी प्रकार विकास के नाम पर कल कारखानों और छोटे-बड़े उद्योगों के अवशिष्टों को भी नदियों में बहा दिया जाता है, जो मानव स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक होते हैं.
रोग उत्पन्न करने वाले जीवों के अतिरिक्त अनेकों प्रकार के विषैले तत्व भी पानी के माध्यम से हमारे शरीर में पहुंचकर स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं. इन विषैले तत्वों में प्रमुख हैं, कैडमियम, लेड, भरकरी, निकल, सिल्वर, आर्सेनिक आदि. जल में लोहा, मैंगनीज, कैल्सीयम, बेरियम, क्रोमियम कापर, सीलीयम, यूनेनियम, बोरान, तथा अन्य लवणों जैसे नाइट्रेट, सल्फेट, बोरेट, कार्बोनेट, आदि की अधिकता से भी मानव स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. जल में मैग्नीशियम व सल्फेट की अधिकता से आंतों में जलन पैदा होती है. नाइट्रेट की अधिकता से बच्चों में मेटाहीमोग्लाबिनेमिया नामक बीमारी हो जाती है, जो आंतों में पहुंचकर पेट के कैंसर का कारण बन जाता है. फ्लोरीन की अधिकता से फ्लोरोसिस नामक बीमारी हो जाती है. इसी प्रकार कृषि क्षेत्र में प्रयोग की जाने वाली कीटनाशक दवाईयों एवं उर्वरकों के विषैले अंष जल स्रोतों में पहुंचकर स्वास्थ्य की समस्या को भयावह बना देते हैं. प्रदूषित गैस जैसे, कार्बन डाइआक्साइड तथा सल्फर डाइआक्साइड जल में घुलकर जलस्रोत को अम्लीय बना देते हैं.
बचाव
जल प्रदूषण से बचने के लिए आवश्र्यक है कि पूरे जल प्रबंधन में जल दोहन, उनके वितरण तथा प्रयोग के बाद जल प्रवाहन की समुचित व्यवस्था हो. सभी विकास योजनाएं सुविचरित और सुनियोजित हो. कल-कारखानें आबादी से दूर हों. जानवरों-मवेशियों के लिए अलग-अलग टैंक और तालाब की व्यवस्था हो. नदियों, झरनों और नहरों के पानी को दूषित होने से बचाया जाए. इसके लिए घरेलू और कल-कारखानों के अवशिष्ट पदार्थों को जल स्रोत में मिलने से पहले भली-भांति नष्ट कर देना जरूरी है. घरेलू उपयोग में पानी का प्रयोग करने से पहले आश्र्वस्त हो जाना चाहिए कि वह शुद्ध है या नहीं? यदि संदेह हो कि यह शुद्ध नहीं है, तो निम्न तरीकों से इसे शुद्ध कर लेना चाहिए.
- पानी को उबाल कर छानने के बाद अच्छी तरह हिलाकर वायु संयुक्त करके ही प्रयोग करना चाहिए, अथवा फिल्टर का प्रयोग करना चाहिए.
- कुएं, तालाब या नदी के पानी को कीटाणु रहित करने के लिए उचित मात्रा में ब्लीचिंग पाउडर का उपयोग करना चाहिए. ऐसे जल स्त्रोतों में समय-समय पर लाल दवा डालते रहना चाहिए.
- पीने के पानी को धूप में, प्रकाश में रखना चाहिए. तांबे के बर्तन में रखें, तो यह अन्य बर्तनों की अपेक्षा सर्वाधिक शुद्ध रहता है. एक गैलेन पानी को दो ग्राम फिटकरी या बीस बूंद टिंचर आयोडीन या ब्लीचिंग पाउडर मिलाकर शुद्ध किया जा सकता है.