यूंतो रत्नागिरी अपनी अप्रतिम प्राकृतिक सुंदरता, जैव-विविधता, अल्फांसो आम के लिए मशहूर है, लेकिन बीते कुछ वर्षों से कोंकण का यह खूबसूरत जिला प्रस्तावित जैतापुर न्यूक्लियर पावर प्लांट के विरोध में जारी जनांदोलन से सुर्खियों में है. रत्नागिरी शहर से जैतापुर की दूरी साठ किलोमीटर है.
राजापुर तहसील में जहां न्यूक्लियर प्लांट प्रस्तावित है, वहां जैतापुर गांव की एक इंच जमीन भी नहीं गई है. वहीं साखरी नाटे गांव में भी प्लांट और टाउनशिप के लिए कोई जमीन नहीं ली गई है, लेकिन अणु ऊर्जा प्रकल्प का सर्वाधिक विरोध यहीं हो रहा है.
साखरी नाटे मछुआरों की एक बस्ती है, जहां की कुल आबादी दस हजार है. अरब सागर की खाड़ी में बसे इस गांव के मछुआरे मछली पकड़ने समुद्र में जाते हैं, लेकिन प्लांट बनने के बाद उन्हें दस किलोमीटर के दायरे में जाने से प्रतिबंधित कर दिया जाएगा. इसका असर यहां के छोटे मछुआरों पर पड़ेगा, क्योंकि छोटी नाव से वे गहरे समुद्र में नहीं जा सकते और बड़ी नाव खरीदने के लिए उनके पास पर्याप्त धन नहीं है.
महाराष्ट्र मच्छीमार कृति समिति के उपाध्यक्ष अमजद बोरकर प्रस्तावित जैतापुर प्लांट को कोंकण का शाप बताते हैं. बकौल अमजद, साखरी नाटे में मत्स्य उत्पादन का सालाना कारोबार 100 करोड़ रुपये से अधिक का है. ऐसे में जैतापुर न्यूक्लियर प्लांट बनने से न सिर्फ मछुआरे, बल्कि हजारों काश्तकारों की जीविका खतरे में पड़ जाएगी. उनके मुताबिक, परमाणु ऊजार्र् विभाग की दलील है कि जैतापुर में प्रस्तावित न्यूक्लियर पावर प्लांट पूरी तरह से सुरक्षित हैै. लेकिन इस बात की गारंटी तो रूस के चेर्नोविल और जापान के फुकुशिमा परमाणु हादसे से पहले भी दिए गए थे.
जैतापुर न्यूक्लियर पावर प्लांट से प्रतिदिन 5,200 लीटर गर्म पानी समुद्र में छोड़ा जाएगा. जाहिर है इस पानी में परमाणु कचरे भी मौजूद होंगे, जिसका असर मछलियों एवं अन्य समुद्री जीवों समेत मानवीय स्वास्थ्य पर भी पड़ेगा. समुद्री जल के तापमान में अचानक वृद्धि होने से न सिर्फ मछलियों के प्रजनन पर असर होगा, बल्कि संभव है कि पांपलेट, सुरमई, सार्डिल और बांगड़ा जैसी स्थानीय स्वादिष्ट मछलियां यहां से पलायन कर जाएं.
इसके अलावा न्यूक्लियर प्लांट से जुड़ी कई समस्याएं हैं, जिसका मुकम्मल जवाब परमाणु ऊर्जा विभाग और सरकार के पास नहीं है. मसलन, न्यूक्लियर पावर कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (एनपीसीआईएल) सुरक्षा के मद्देेनजर प्लांट एरिया के दस किलोमीटर के दायरे को प्रतिबंधित क्षेत्र घोषित करेगा. इसका उल्लंघन करने पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत उन्हें गिरफ्तार भी किया जा सकता है. ऐसे में यहां के मछुआरों की हालत कमोबेश वैसी हो जाएगी, जिस तरह समुद्री सीमा रेखा के उल्लंघन के आरोप में भारतीय मछुआरों को पाकिस्तान और श्रीलंका की जेलों में बंद रहना पड़ता है.
रत्नागिरी में मछली पैकेजिंग फैक्ट्री में काम करने वाले फकीर मोहम्मद हमजा कहते हैं, राजापुर तहसील में 30 किलोमीटर अरब सागरीय खाड़ी क्षेत्र है. समुद्र की गहराई कम होने की वजह से साखरी नाटे के मछुआरे छोटी नौकाओं से मछली मारने का काम करते हैं. ऐसे में दस किलोमीटर क्षेत्र को प्रतिबंधित किए जाने से यहां के हजारों मछुआरे बेरोजगार हो जाएंगे. हमजा के मुताबिक, हकीकत में यह तरक्की नहीं, बल्कि कोंकण की बर्बादी का फ्रांस के साथ करार है.
गौरतलब है कि जैतापुर न्यूक्लियर पावर प्लांट फ्रांस की विवादास्पद कंपनी अरेवा (अब ईडीएफ) के सहयोग से बनने वाली है. प्रस्तावित 9900 मेगावाट की यह परमाणु परियोजना विश्व के सबसे बड़े प्रोजेक्ट में शुमार है. इस प्लांट के लिए राजापुर तहसील के 5 गांवों में 938 हेक्टेयर जमीन अधिग्रहीत की गई है. इनमें सर्वाधिक 690 हेक्टेयर जमीन अकेले माड़बन गांव की है. इसके अलावा, मिठगवाणे में 102 हेक्टेयर, निवेली में 72.61, करेल में 70.68 और वरिलवाड़ा में 1.91 हेक्टेयर जमीन अधिग्रहीत की गई है. भूमि अधिग्रहण का सर्वाधिक विरोध माडबन में हो रहा है. हालांकि, इस गांव में करीब नब्बे फीसद लोगों ने जमीन का मुआवजा ले लिया है, मुआवजा नहीं लेने वाले वैसे छोटे किसान हैं, जो किसी भी हालत में अपनी जमीन नहीं छोड़ना चाहते.
चार एकड़ जमीन के काश्तकार विजय गवानकर माडबन उन्हीं लोगों में से एक हैं. वर्ष 2013 के बाद न्यूक्लियर पावर कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड और रत्नागिरी जिला प्रशासन ने विजय और माडबन के बाकी किसानों को खेती करने से मना कर दिया. माडबन गांव में विजय समेत करीब डेढ़ सौ किसानों ने कोई मुआवजा नहीं लिया है. विजय बताते हैं, गांव में कई ऐसे किसान हैं, जिन्होंने लालचवश मुआवजा तो ले लिया, लेकिन अब उनके पास न तो पैसे बचे हैं और न ही जमीन. वरिलवाड़ा गांव निवासी प्रेमानंद तिबड़कर के पास पांच एकड़ जमीन है. उनका कहना है कि अणु ऊर्जा प्रकल्प बनने से आज नहीं तो कल लोगों को गांव छोड़ना ही पड़ेगा. सरकार लाख दावा करे, लेकिन रेडिएशन के दुष्प्रभाव से कोई कब तक सुरक्षित रहेगा?
मिठगवाणे निवासी मनोज बालकृष्ण लिंगायत की 12 एकड़ जमीन अधिग्रहीत कर ली गई है. उसे यकीन है कि परमाणु प्रकल्प के खिलाफ जारी आंदोलन का व्यापक असर होगा और एक दिन वह अपनी जमीन पर पहले की तरह खेती कर सकेगा. उसके मुताबिक, जिन बड़े किसानों ने मुआवजा लिया है, उनमें ज्यादातर लोग मुंबई, पुणे या विदेशों में रहते हैं. इसलिए उन्हें अपनी जमीन से भला क्यों मोह होगा! उन्होंने स्थानीय किसानों के हितों की परवाह किए बगैर जमीनें बेच दीं और करोड़ों रुपये का मुआवजा ले लिया. निवेली गांव के किसान संदेश करनगूटकर कहते हैं, न्यूक्लियर प्लांट से स्थानीय लोगों को कितना रोजगार मिलेगा यह कोई नहीं जानता, लेकिन फलोत्पादन और मछली व्यवसाय जैसे परंपरागत पेशे पर इसका बुरा असर पड़ेगा. वैसे तो रत्नागिरी जिले में बिजली की कोई समस्या नहीं है, लेकिन अगर इससे अधिक बिजली चाहिए तो जैतापुर में सौर और पवन चक्की जैसे वैकल्पिक ऊर्जा संयंत्र लगाने चाहिए.
जैतापुर न्यूक्लियर पावर प्लांट में भूमि अधिग्रहण से प्रभावित होने वाले किसानों को फिलहाल 22.50 लाख प्रति हेक्टेयर मुआवजा देने का प्रावधान है, जबकि शुरू में महज 70 हजार रुपये प्रति हेक्टेयर मुआवजा देने की बात कही गई थी. वर्ष 2009 में हुए जबरदस्त किसान आंदोलन की वजह से सरकार ने मुआवजा राशि में कई गुना वृद्धि कर दी.
राजापुर तहसील के उप विभागीय अधिकारी (एसडीएम) सुशांत खांडेकर ने बताया कि मुआवजा राशि से किसानों को काफी फायदा पहुंचा और शायद यही वजह है कि इलाके में भूमि अधिग्रहण के खिलाफ जारी आंदोलन लगभग थम सा गया है. उनके अनुसार, न्यूक्लियर पावर प्लांट में राजापुर तहसील के पांच गांव क्रमशः माडबन, मिठगवाणे, निवेली, करेल और वरिलवाड़ा में 2,336 किसानों की 938 हेक्टेयर जमीन अधिग्रहीत की गई है.
जैतापुर न्यूक्लियर प्लांट के लिए वर्ष 2006 में अधिसूचना जारी हुई थी. साल 2007-08 तक भू-सर्वेक्षण का काम पूरा हुआ और साल के अंत तक भूमि अधिग्रहण का काम भी लगभग पूरा हो गया. वर्ष 2010 में अधिकतर जमीनों की सुपुर्दगी के दस्तावेज राज्य सरकार ने भारत परमाणु ऊर्जा विभाग को सौंप दिए. सरकारी भू-अभिलेखों के मुताबिक, नब्बे फीसद किसानों ने मुआवजा लेकर उक्त जमीनों पर अपना दावा छोड़ दिया है. भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया तेज करने के लिए तत्कालीन कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन सरकार में मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने रत्नागिरी में सर्किल रेट से कई गुना ज्यादा मुआवजा देने का ऐलान कर किसानों को खुश करने का प्रयास किया. तत्कालीन राज्य सरकार ने भूमि अधिग्रहण से प्रभावित होने वाले सभी किसान परिवारों के एक व्यस्क सदस्य को नौकरी देने का भी ऐलान किया था. इसके अलावा, न्यूक्लियर कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (एनपीसीआईएल) की ओर से माड़बन, मिठगवाणे, निवेली, करेल और वरिलवाड़ा गांवों के विकास के लिए दो-दो करोड़ रुपये देने की घोषणा की गई थी. प्लांट के तहत आने वाले हर ग्राम पंचायत को बुनियादी सुविधाएं मुहैया कराने के लिए सालाना 25 लाख रुपये (हर तीन साल में 10 फीसद इजाफे के साथ) देने की बात कही गई थी. लेकिन इन गांवों की तरक्की के नाम पर न तो एक रुपया खर्च हुआ और न ही ग्रामीणों की जिंदगी में कोई बदलाव दिख रहा है.
यहां एक बड़ा मामला विवादित जमीनों के अधिग्रहण का भी है. जिला प्रशासन न्यायिक आदेश की प्रतीक्षा किए बगैर उन जमीनों का भी अधिग्रहण कर रही है, जिन पर दो पक्षकारों या उससे अधिक लोगों के बीच वर्षों से मुकदमा चल रहा है. ऐसे सैकड़ों मामले जिला एवं सत्र न्यायालय, हाईकोर्ट एवं सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं. इस मुद्दे पर एसडीएम खांडेकर कहते हैं, राज्य सरकार के आदेशानुसार भूमि अधिग्रहण अधिनियम की धारा 6 के तहत तकरारी जमीनों का भी अधिग्रहण किया जा रहा है. न्यायालय का अंतिम फैसला जिन पक्षकारों के हक में सुनाया जाएगा, उन्हें मौजूदा दर से उचित मुआवजा दिया जाएगा. स्थानीय किसानों के अनुसार, मुकदमे का फैसला कब आएगा पता नहीं, फैसले के बाद असंतुष्ट पक्षकार सक्षम न्यायालय में अपील करने को स्वतंत्र है, लेकिन इस तरह के नियम बनाकर सरकार ने किसानों को दोहरी मुसीबत में डाल दिया है. रत्नागिरी-सिंधुदुर्ग संसदीय क्षेत्र से शिवसेना के सांसद विनायक राउत ने कहा कि जैतापुर भूकंप के लिहाज से काफी संवेदनशील है, क्योंकि यह इलाका जोन चार में स्थित है. यह जानते हुए भी केंद्र और राज्य सरकारें कोंकण को तबाही के रास्ते पर ले जाना चाहती हैं. उन्होंने अरेवा कंपनी (अब ईडीएफ) पर सवाल उठाते हुए कहा कि जिन देशों में इस कंपनी ने न्यूक्लियर रिएक्टर लगाए हैं, उनकी सुरक्षा पर गंभीर सवाल भी खड़े हुए हैं. इतना ही नहीं, भविष्य में होने वाले परमाणु हादसे पर न तो कोई बीमा राशि का प्रावधान है और न ही क्षतिपूर्ति की कोई शर्त. ऐसे में लाजिमी है कि भोपाल गैस त्रासदी के लिए जिम्मेदार कंपनी की तरह अरेवा भी मानवीय त्रासदी पैदा कर फरार हो जाएगी.
जिला परिषद सदस्य अजीत जयवंत नारकर का कहना है, भारत जैसे देश में जहां सड़कों की सफाई नियमित ढंग से नहीं हो पाती, वहां परमाणु कचरे की सफाई और उससे सुरक्षा की बात करना बेमानी है. परमाणु कचरा सैकड़ों साल बाद भी नष्ट नहीं होते, इसके बावजूद केंद्र सरकार भारत को परमाणु कचरे के ढेर पर बिठाना चाहती है. राजापुर विधानसभा क्षेत्र से शिवसेना विधायक राजन साल्वी का कहना है कि उनकी पार्टी जैतापुर न्यूक्लियर प्लांट का विरोध वर्ष 2000 से कर रही है. शुरुआत में भारतीय जनता पार्टी भी उनके साथ थी, लेकिन केंद्र में एनडीए की सरकार बनने के बाद भाजपा इस मुद्दे पर खामोश है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना करते हुए उन्होंने कहा, जिस समय यहां की जनता जैतापुर अणु प्रकल्प के विरोध में नारे लगा रही थी, उस वक्त प्रधानमंत्री मोदी फ्रांस के राष्ट्रपति के साथ न्यूक्लियर रिएक्टरों की सौदेबाजी कर रहे थे. बकौल साल्वी शिवसेना किसी भी कीमत पर प्लांट नहीं लगने देगी.
न्यूक्लियर प्लांट और कोंकण की राजनीति : कोंकण क्षेत्र शिवसेना का मजबूत गढ़ रहा है. कोंकण रीजन में रत्नागिरि, सिंधुदुर्ग, पालघर, रायगढ़ और ठाणे जिले आते हैं. यहां की करीब साठ फीसद विधानसभा सीटों पर शिवसेना का कब्जा है. हालांकि, रत्नागिरी की राजनीति में एक समय समाजवादी नेता मधु दंडवते का खास असर था.
जैतापुर न्यूक्लियर पावर प्लांट का सबसे ज्यादा विरोध साखरी नाटे और माडबन में हो रहा है. साखरी नाटे की 95 फीसद आबादी मुसलमानों की है. अपनी जिंदगी और रोजगार बचाने की खातिर यहां के मुसलमान शिवसेना के साथ खड़े हैं. विधानसभा चुनाव में राजापुर से शिवसेना उम्मीदवार राजन साल्वी को साखरी नाटे, माड़बन, निवेली, करेल और मिठगवाणे के मतदाताओं ने एकमुश्त वोट दिया था. इसकी वजह अप्रैल 2011 में जैतापुर न्यूक्लियर पावर प्लांट के विरोध में घटित वह हिंसक प्रदर्शन था, जिसमें तबरेज की पुलिस फायरिंग में मौत हो गई. तबरेज की मौत के बाद साखरी नाटे और माडबन कई दिनों तक अशांत रहा. राजन साल्वी समेत 51 प्रदर्शनकारी कई दिनों तक जेल में बंद रहे.
कभी शिवसेना के कद्दावर नेता रहे नारायण राणे जब साल 2006 में कांग्रेस में शामिल हुए तो कोंकण की राजनीति में सरगर्मी पैदा हो गई. यहां चर्चा है कि नारायण राणे जैतापुर न्यूक्लियर प्लांट के पक्षधर रहे हैं. स्थानीय लोग बताते हैं कि नारायण राणे को काफी पहले यह पता था कि जैतापुर में न्यूक्लियर पावर प्लांट लगने वाला है. लिहाजा मूलतःसिंधुदुर्ग निवासी राणे ने बिना वक्त गंवाए राजापुर तहसील के उन गांवों में जमीन खरीदी, जो प्लांट एरिया में शामिल होने वाला था. उनकी मंशा थी कि किसी तरह उनकी जमीन भी अधिग्रहीत हो जाए, ताकि उन्हें अरबों रुपये का मुआवजा मिल सके.
शिवसेना बेशक जैतापुर प्लांट का विरोध कर रही है, जबकि रत्नागिरी और चिपलूण में कैमिकल फैक्ट्रियों पर पाबंदी लगाने के सवाल पर वह मौन साध लेती है. रत्नागिरी जिले में करीब दो लाख मछुआरे हैं. जिले में सालाना 500 करोड़ रुपये का मछली व्यवसाय होता है. इन कैमिकल फैक्ट्रियों से निकलने वाले जहरीले रसायनों से समुद्रीय जल प्रदूषित हो रहा है. ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि मछुआरों और किसानों की लड़ाई लड़ने वाली शिवसेना कैमिकल फैक्ट्रियों का विरोध क्यों नहीं करती?
साखरी नाटे के मछुआरों की एक चिंता प्रस्तावित मुसाकाजी बंदरगाह को लेकर भी है. जन हक सेवा समिति से जुड़े मंसूर भाई के मुताबिक, मुसाकाजी बंदरगाह बनाने की एकमात्र वजह है, फ्रांस से न्यूक्लियर रिएक्टरों की ढुलाई करना. अकरम सोलकर के अनुसार, जिस तरह प्लांट एरिया में मछुआरों को प्रवेश की अनुमति नहीं होगी, उसी तरह सुरक्षा के नाम पर मुसाकाजी बंदरगाह के आस-पास का क्षेत्र भी मछुआरों के लिए प्रतिबंधित होगा. बहरहाल, कोंकण इलाके में लाखों लोगों की सुरक्षा, रोजगार एवं जैव-विविधता को खतरे में डालकर केंद्र व राज्य सरकार 9900 मेगावाट बिजली पैदा करना चाहती है. यह जानते हुए कि ज्यादातर विकसित देश न्यूक्लियर एनर्जी को ना कह रहे हैं और वैकल्पिक ऊर्जा के नए विकल्प की तलाश में हैं.