5 जून 1974 की पटना की रैली में जयप्रकाश का उद्बोधन दूरगामी था उनका मानना था कि भारतीय लोकतंत्र को वास्तविक और सुदृढ़ बनाना, जनता का सच्चा राज्य स्थापित करना, समाज से शोषण आदि का अंत करना, एक नैतिक संस्कृति और शैक्षणिक क्रांति करना, नया बिहार बनाना और अंत में नया भारत बनाना यह संपूर्ण क्रांति है।”
जयप्रकाश जी के शब्दों में “समाज और व्यक्ति” के जीवन के हर पहलू में क्रांतिकारी परिवर्तन हो और व्यक्ति का और समाज का विकास हो, दोनों ऊंचे उठें, केवल शासन बदले इतना ही नहीं व्यक्ति और समाज भी बदले।
जयप्रकाश जी लोकतंत्र के लिए निम्नलिखित नैतिक गुण की सर्वाधिक आवश्यकता है-
1. सच्चाई के लिए चिंता
2. हिंसा से विमुखता
3. स्वतंत्रता- प्रेमी और उत्पीड़न एवं अत्याचार का प्रतिरोध करने का साहस
4. सहकार की भावना 5.अपने हित को बृहत्तर हित में समायोजन करने की तैयारी
5. दूसरों के विचारों के प्रति आदर एवं सहिष्णुता का भाव
6. दायित्व ग्रहण करने की तैयारी
7. मनुष्य की बुनियादी एकता में विश्वास
8. मानव स्वभाव की शिक्षणीयता में आस्था ।
जयप्रकाश जी लोकतंत्र की मजबूती के लिए उन्होंने जनता को अपने अधिकारों कर्तव्यों के प्रति सचेत रहने को कहा। उन्होंने लोगों के पास जाकर इस बारे में सजग करते हुए बताया था कि स्वतंत्र होने का क्या अर्थ है? उनका मानना था की जनतंत्र के मूल्यों के बारे में लोगों को जागृत करना चाहिए, मतलब की हम सब चाहे जिस किसी व्यवसाय में हो या समाज में किसी भी पद पर हो हमें इस लोक शिक्षण में कुछ ना कुछ योगदान करना चाहिए। लोग समितियां को समाज परिवर्तन का गतिशील माध्यम बनाने में नागरिकों का सहयोग जरूरी है।
आज जब देश में लोकतंत्र की चुनौतियाँ बढ़ती जा रही है ग्लोबल पावर और लोकल पॉलिटिक्स पर पूंजीवादियों और सांप्रदायिक शक्तियों, का वर्चस्व बढ़ रहा है, भ्रष्टाचार और जातिवाद जैसे दीमक देश को कमजोर कर रहे हैं तब जयप्रकाश जी के लोकतांत्रिक राष्ट्र निर्माण विचार पहले से कहीं ज्यादा प्रासंगिक हो गया है।