भाजपा के नरेंद्र मोदी और कांग्रेस के राहुल गांधी, दोनों के बारे में बातचीत करनी चाहिए और ये जानना चाहिए कि इन दोनों का नज़रिया देश को लेकर क्या है. नरेंद्र मोदी ने अभी तक कहीं ये भाषण नहीं दिया कि वो जब प्रधानमंत्री बनेंगे और अगर भाजपा के सपने के हिसाब से वो प्रधानमंत्री बन गए, तो क्या करेंगे. न राहुल गांधी ने साफ़ किया है कि वो अगर प्रधानमंत्री बने या उनकी पार्टी सत्ता में आई, तो वो देश के लिए किस तरह की योजनाओं का ख़ाका ज़मीन पर उतारेगी. श्री नरेंद्र मोदी और श्री राहुल गांधी हवा में तलवारें चला रहे हैं और लोगों को उसी तरह उकसाते हैं, जैसे कोई आदमी हवा में गाली देकर दूसरों को उकसाए.
दो अक्टूबर भी बीत गया. यह दो अक्टूबर हिंदुस्तान के दुख, तकलीफ़, परेशानी और निराशा का दो अक्टूबर है. दो अक्टूबर उस इंसान का जन्मदिन है, जिस इंसान ने न केवल देश को आज़ादी दिलाई, बल्कि आज़ादी के बाद का देश कैसा होगा, इसका सपना भी देखा. महात्मा गांधी संपूर्ण व्यक्तित्व थे, इसलिए उन्होंने एक संपूर्ण सपना देखा. गांधी कैसा समाज चाहते थे, कैसी सरकार चाहते थे, कैसी व्यवस्था चाहते थे, उसका उन्होंने विशुद्ध रूप से वर्णन किया है. गांधी गांवों को अर्थव्यवस्था का केंद्र बनाना चाहते थे. फैसलों का केंद्र भी वो गांवों को बनाना चाहते थे, लेकिन ये दो अक्टूबर गांधी के सपनों की राख़ के ढेर पर आया हुआ दो अक्टूबर है. आने वाला दो अक्टूबर-2014 हमें फिर से याद दिलाएगा कि हम गांधी के सपनों से कितनी दूर चले गए हैं या दो क़दम भी हम नज़दीक आ पाए हैं.
गांधी के इस देश में गांधी की आलोचना करने वाली एक ब़डी जमात तो है ही, लेकिन ऐसे लोग, जिन्होंने गांधी की विचारधारा का हमेशा विरोध किया, आज वो भी गांधी का नाम लेकर सत्ता में आने की बात कर रहे हैं. उन लोगों ने गांधी को एक प्रदेश का व्यक्ति बना दिया. बापू के गुजरात के नरेंद्र मोदी. शब्द सुनने में अजीब इसलिए लगता है कि आज का गुजरात बापू का गुजरात नहीं है और आज का देश बापू का देश नहीं है. आज गुजरात नरेंद्र मोदी का गुजरात है और नरेंद्र मोदी के गुजरात में प्रचार की भाषा चलती है. आज के गुजरात में गांव को तो़डने वाली अर्थव्यवस्था चलती है और आज के गुजरात में गांधी के सपनों को खंडित करने वाली विचारधारा चारों तरफ बिखरी दिखाई दे रही है. नरेंद्र मोदी गुजरात के हैं ज़रूर, लेकिन नरेंद्र मोदी गांधी के कहीं से भी क़रीब नहीं हैं. नरेंद्र मोदी की संपूर्ण विचारधारा, नरेंद्र मोदी की संपूर्ण भाषा और नरेंद्र मोदी का संपूर्ण विचार गांधी के विपरीत ख़डा है.
गांधी के विपरीत ख़डा होना कोई बुरी बात नहीं है, लेकिन हम गांधी द्वारा देखे गए उस सपने के ख़िलाफ़ ख़डे हो जाएं, जहां पर गांवों का कोई अस्तित्व न हो, जहां पर गांव आधारित अर्थव्यवस्था से कोसों दूरी रखी जाए और जहां पर गांधी के सहअस्तित्व, प्यार और भाईचारे के सिद्धांत के ख़िलाफ़ काम किए जाएं, तो वह चीज़ खटकती है. नरेंद्र मोदी का प्रचार अभियान चलाने वाले नरेंद्र मोदी को गांधी का वारिस बताने की योजना बना रहे हैं. उन लोगों का मानना है कि लोग अब गांधी को भूल चुके हैं, गांधी की विचारधारा को भूल चुके हैं, इसलिए गांधी के नाम पर नरेंद्र मोदी वैसे ही चल सकते हैं, जैसे सरदार पटेल के नाम पर चल रहे हैं. नरेंद्र मोदी सरदार पटेल को गुजरात का बता रहे हैं और इस तरह सरदार पटेल के देशव्यापी व्यक्तित्व को बौना कर रहे हैं. सरदार पटेल देश की महान विभूति थे और उन्होंने देश को एक करने में अपनी संपूर्ण समझ और अपनी संपूर्ण कुशलता लगा दी. सरदार पटेल ऐसे व्यक्ति थे, जिन्हें इस देश के लोगों ने संवैधानिक तौर पर प्रधानमंत्री पद के लिए चुना था. अगर महात्मा गांधी का अतिशय जवाहरलाल नेहरू प्रेम नहीं हुआ होता, तो इस देश के पहले प्रधानमंत्री सरदार पटेल बने होते. उस समय देश में सोलह प्रदेशों में से तेरह प्रदेशों ने सरदार पटेल का नाम प्रस्तावित किया था और तीन प्रदेशों में से भी स़िर्फ एक ने जवाहरलाल जी का नाम प्रस्तावित किया था, लेकिन गांधी जी ने सरदार पटेल को यह आदेश दिया था कि आप अपना नाम उम्मीदवारी से हटा लीजिए और सरदार पटेल ने गांधी जी के आदेश का पालन किया. ऐसे महान व्यक्तित्व के धनी सरदार पटेल को स़िर्फ गुजरात बना देना, ये करिश्मा नरेंद्र मोदी ही कर सकते हैं और कोई नहीं कर सकता. आज ये झूठा करिश्मा हम अपनी आंखों से देख रहे हैं. सरदार पटेल की मूर्ति के लिए देश भर से लोहा मंगाने की योजना मूर्खता भरी योजना है. सरदार पटेल की मूर्ति अगर स्टेच्यू ऑफ लिबर्टी से ऊंची बनानी थी, तो बारह साल पहले इसकी योजना बनाई जा सकती थी. सरदार पटेल को भावनात्मक रूप से चुनावी मुद्दा बनाना सरदार पटेल के साथ अन्याय करना है और उनके व्यक्तित्व के साथ खेल करना है.
भाजपा के नरेंद्र मोदी और कांग्रेस के राहुल गांधी, दोनों के बारे में बातचीत करनी चाहिए और ये जानना चाहिए कि इन दोनों का नज़रिया देश को लेकर क्या है. नरेंद्र मोदी ने अभी तक कहीं ये भाषण नहीं दिया कि वो जब प्रधानमंत्री बनेंगे और अगर भाजपा के सपने के हिसाब से वो प्रधानमंत्री बन गए, तो क्या करेंगे. न राहुल गांधी ने साफ़ किया है कि वो अगर प्रधानमंत्री बने या उनकी पार्टी सत्ता में आई, तो वो देश के लिए किस तरह की योजनाओं का ख़ाका ज़मीन पर उतारेगी. श्री नरेंद्र मोदी और श्री राहुल गांधी हवा में तलवारें चला रहे हैं और लोगों को उसी तरह उकसाते हैं, जैसे कोई आदमी हवा में गाली देकर दूसरों को उकसाए. हिंदुस्तान को जातियों और संप्रदायों में बांटने का खेल काफ़ी दिनों से चलता रहा है और इस बार भी ये दोनों हिंदुस्तान को बांटने की रणनीति पर चल रहे हैं. अगर दोनों व्यक्ति अपने रस्मी घोषणापत्र से अलग जाएं और जनता को ये बताएं कि उनके दिमाग़ में देश की समस्याओं को सुधारने का कैसा ऩक्शा है, तो शायद देश उनके बारे में सही आकलन कर सकता है, लेकिन ब़डे पैमाने पर नरेंद्र मोदी और छोटे पैमाने पर राहुल गांधी इस चीज़ से दूर भाग रहे हैं. दोनों सवालों को छूना नहीं चाहते, भावनात्मक मुद्दे उठा रहे हैं और यही हमारे लिए सबसे अफ़सोस की बात है. भाजपा के युवा नेता नरेंद्र मोदी हैं और कांग्रेस के युवा नेता राहुल गांधी हैं. हालांकि, दोनों की उम्र में बहुत फ़र्क है, लेकिन दोनों के सिद्धांतों में बहुत कम फ़र्क है और जब हम सिद्धांत की बात करते हैं, तो उसमें हम आर्थिक सिद्धांत जोड़ देते हैं, बेरोजगारी की समस्या का हल जो़ड देते हैं और जो़डना तो ये भी चाहिए कि हम देश को भविष्य में कैसा बनाना चाहते हैं, पर इन सवालों के जवाब कोई देना नहीं चाहता.
देश में ईमानदार नेताओं की कमी है. ईमानदार मुख्यमंत्रियों की कमी है. देश में ऐसी सरकार चाहिए, जो सरकार ईमानदार भी हो और जो सरकार काम भी कर सके. जनता के प्रति जवाबदेह भी हो. पिछले पंद्रल सालों से ऐसी सरकारें आ रही हैं, जो न जनता के प्रति अपने को जवाबदेह मानती हैं और न समस्याओं के हल की कोई कोशिश करती हैं. उन्होंने देश को बाज़ार के हवाले छो़ड दिया है. ये देश ऐसे नेतृत्व की प्रतीक्षा कर रहा है, जो बाज़ार के ख़िलाफ़ इंसान को तरजीह दे. ऐसे लोग चाहिए, जो इंसानी समस्याओं को अपनी प्राथमिकता मानें, न कि बाज़ार की समस्याओं को अपनी प्राथमिकता मानें. जो देश को लोगों के सपनों के हिसाब से चलाएं, न कि सेंसेक्स के हिसाब चलाएं. दुर्भाग्य की बात है कि अभी ऐसे लोग सामने आए हैं, जो भारत को स्टॉक मार्केट और सेंसेक्स की नज़र से देखते हैं और वैसी ही नीतियां बनाने में अपनी संपूर्ण कुशलता लगा देते हैं. हिंदुस्तान को आने वाले चुनाव में ऐसे लोगों का और ऐसी पार्टियों का और ऐसी संसद का इंतज़ार है, जो उनकी समस्याओं को हल करने में अपनी प्राथमिकता दिखाए, जिनके लिए वो चुने गए हैं. ये संसद बाज़ार के लोगों के लिए नहीं चुनी जाती, लोगों के लिए चुनी जाती है.