tejaswiस्वार्थ और परिवारवाद के कारण बिहार के कई नेताओं को जनता की सेवाओं और सिद्धांतों से हटकर समझौतावादी होना पड़ा है. हाल में एनडीए से अलग हुए पूर्व मुख्यमंत्री और ‘हम’ के राष्ट्रीय अध्यक्ष जीतन राम मांझी की परिस्थिति भी कुछ ऐसी ही थी. बदले राजनीतिक समीकरण में एनडीए छोड़नेे और राजद से गठबंधन करने से जीतन राम मांझी को भले ही फायदा हो जाए, लेकिन इससे राजद को कोई खास लाभ होता नहीं दिख रहा है. 2015 के विधानसभा चुनाव में एनडीए के सबसे बड़े दल भाजपा को बिहार में विशेषकर मगध में जीतन राम मांझी की राजनीतिक हैसियत का पता चल गया था. यही कारण था कि बाद के दिनों में एनडीए या भाजपा के नेताओं ने जीतन राम मांझी को बहुत भाव नहीं दिया.

नीतीश कुमार के कारण बिहार मेंं राजनीतिक ऊंचाई पाने वाले मांझी 2015 के विधानसभा चुनाव में ‘हम’ को मिली 21 सीटों में से सिर्फ 1 सीट निकाल सके थे. खुद दो स्थानों जहानाबाद के मखदुमपुर और गया के इमामगंज से चुनाव लड़ने वाले मांझी मखदुमपुर की अपनी परंपरागत सीट हार गए. इमामगंज विधानसभा से भी वे इसलिए जीत पाए, क्योंकि वहां कुशवाहा जाति के मतदाता जदयू प्रत्याशी उदय नारायण चौधरी से नाराज थे. औरंगाबाद जिले के कुटुम्बा सुरक्षित विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़े मांझी के पुत्र संतोष कुमार सुमन को भी पराजय का सामना करना पड़ा था.

मगध के 26 विधानसभा क्षेत्रों में से सात पर ‘हम’ ने एनडीए की तरफ से चुनाव लड़ा था, लेकिन सफलता मिली सिर्फ एक पर. मगध में करीब सभी विधानसभा क्षेत्रों में महादलित मतदाताओं की अच्छी-खासी संख्या है. उसमें भी मांझी वोटर बहुतायत में हैं, बावजूद उसके मांझी की पार्टी ‘हम’ के प्रत्याशियों को सभी स्थानों पर हार का सामना करना पड़ा. ऐसा भी नहीं था कि ‘हम’ से लड़ने वाले नेता नौसिखिया थे. जहानाबाद के घोसी विधान सभा क्षेत्र से ‘हम’ प्रत्याशी राहुल कुमार मगध के चर्चित नेता जगदीश शर्मा के पुत्र और वहां के विधायक थे. घोसी से जगदीश शर्मा लगातार छह टर्म विधायक रहेे. जहानाबाद से जदयू सांसद बनने के बाद उन्हें विधायक पद से इस्तीफा देना पड़ा था.

उसके बाद पशुपालन घोटाले में सजायाफ्ता होने के कारण उनके चुनाव लड़ने पर रोक लग गई, फिर उनके बेटे राहुल कुमार जदयू से विधायक बने. मांझी के जदयू से अलग होने के बाद राहुल कुमार ‘हम’ में चले गए और 2015 का विधानसभा चुनाव लड़े, लेकिन हार गए. इसी प्रकार गया के टिकारी विधानसभा क्षेत्र से पूर्व मंत्री अनिल कुमार ‘हम’ के टिकट पर चुनाव लड़े, लेकिन उन्हें भी हार का सामना करना पड़ा, जबकि अनिल कुमार दो-दो बार टिकारी से विधायक रह चुके थे. अनिल कुमार जहानाबाद से रालोसपा सांसद अरुण कुमार के छोटे भाई हैं.

गया के ही शेरघाटी विधानसभा क्षेत्र से मांझी की पार्टी से चुनाव लड़ कर हारने वाले मुकेश कुमार उर्फ कृष्णा यादव जिला परिषद सदस्य रह चुके हैं और शेरघाटी अनुमंडल में पंचायती राज की राजनीति में काफी सक्रिय भी रहे हैं. बेलागंज विधानसभा क्षेत्र से ‘हम’ उम्मीदवार रहे शारिम अली को भले ही राजनीति का ज्यादा अनुभव नहीं था, लेकिन वे भी त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था की राजनीति में सक्रिय रहा करते थे. इनकी भी रालोसपा के सांसद अरुण कुमार से निकटता थी. औरंगाबाद के कुटुम्बा सुरक्षित क्षेत्र से चुनाव लड़ने वाले मांझी के पुत्र संतोष कुमार सुमन को तो राजनीति विरासत में ही मिली थी. कहने का तात्पर्य यह है कि हम के टिकट पर चुनाव लड़ने वाले लगभग सभी उम्मीदवार मंझे हुए नेता थे, लेकिन मांझी का चेहरा उन्हें वोट नहीं दिला सका.

मगध के पांच जिलों गया, औरंगाबाद, जहानाबाद, अरवल और नवादा में महादलितों की बड़ी संख्या है, लेकिन 2015 के विधानसभा चुनाव में मांझी इन वोटों को एनडीए की तरफ मोड़ पाने में विफल रहे. यही कारण भी था कि एनडीए के भीतर दिन-ब-दिन मांझी की महता कम होने लगी. महागठबंधन से नाता तोड़कर एनडीए के साथ आए नीतीश ने जब अपने मंत्रिमंडल के लिए चुनाव किया, तो मांझी को दरकिनार कर दिया गया, वहीं पशुपतिनाथ पारस मंत्री बनाए गए, जो किसी सदन के सदस्य भी नहीं थे. उसके बाद मांझी ने जहानाबाद विधानसभा क्षेत्र से होने वाले उपचुनाव में अपनी उम्मीदवारी को लेकर दावेदारी की, लेकिन यहां भी उन्हें निराशा हाथ लगी. हालांकि नीतीश कुमार ने मांझी से तमाम गिले-शिकवे दूर कर उनके गांव महकार जाकर करोड़ों रुपए की विकास योजनाओं का उद्घाटन और शिलान्यास किया था.

लेकिन अपनी अगली पीढ़ी को स्थापित करने के लिए बेचैन मांझी ने एनडीए में कोई विशेष संभावना नहीं देखी, तो एनडीए और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर आरोपों की झड़ी लगाकर राजद के खेमें में चल दिए. वैसे भी एनडीए में जदयू और नीतीश कुमार के आ जाने के बाद से मगध के बदले राजनीतिक समीकरण में ‘हम’ के अनेक नेता असहज महसूस कर रहे थे. जो बातें सामने आ रही हैं, उनके अनुसार राजद ने ‘हम’ को विधान परिषद की दो सीटें देने का वादा किया है. संभावना जताई जा रही है कि मांझी के पुत्र संतोष कुमार सुमन और ‘हम’ के प्रदेश अध्यक्ष वृशिण पटेल विधान परिषद जाएंगे.

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