खुशियों, उल्लास, उपलब्धियों से लबरेज़ दिन… आतिशबाजियों से सजी रात(हालांकि लोग इसको ग्यारस के फटाखे भी कहेंगे)…! सत्तर साल की थकी हुई पार्टी पर सात साल की सत्ता फिर भारी दिखाई दे रही है…! बरसों बरस जिस समुदाय को अपना बड़ा वोट बैंक बनाए रखा, उनके लिए कुछ न कर पाने का मलाल उन्हें अब भी न हो शायद… लेकिन एक दिन में डेढ़ दर्जन से ज्यादा सौगातों वाले दिन ने समीकरणों को नई दिशा तो है…!
झीलों के शहर को देश के चुनिंदा शहरों में शामिल करवाने की महारत तो पाई है, भले मीनमेख निकालने वाले इसको निजी हाथों में सौंप दिए जाने की तोहमतें लगाते रहें…! कहा जा रहा है कि निजी कार्यक्रम को सरकारी नुमाइंदों ने अंजाम दिया… लेकिन देश के मुखिया की आमद वाले प्रोग्राम में सरकार का शामिल होना कैसे गलत ठहराया जा सकता है…?
सबक साथ, सबका विकास… की अवधारणा को साकार रूप लेते भी शहर ने देख और महसूस किया…! एक दिन की मुखिया आमद ने शहर की दर्जनों सड़कों और दीवारों का कायाकल्प कर दिया…! निर्माण में लग कई ठेकेदार मालामाल हुए…! टेंट, माइक, पोस्टर बैनर, वाहन संचालकों से लेकर कार्यक्रम स्थल के आसपास मौजूद दुकानदारों ने भी चांदी काटी ही है…! कार्यकर्ताओं से लेकर नेताओं तक को भीड़ जुटाने की जिम्मेदारी ने भी कमाने के मौका दिया…! सब्जी पूड़ी बनाने वालों से लेकर हार फूल बेचने वालों तक और नेताओं के कुर्ते कलफ करने वालों से लेकर खादी दुकान संचालित करने वालों तक के हिस्से भी मुनाफा आया ही है…! एक दिन की मुखिया आमद अगर इतने छिपे और खुले फायदे के रास्ते खोल सकती है तो ऐसी यात्राएं देश के हर शहर के हिस्से आना चाहिए…!
पुछल्ला
बुर्का ब्रिगेड का चौका
गृहमंत्री की शहर आमद पर वह तैनात। किसी नेता की नियुक्ति या किसी बड़े आयोजन में अपनी काली छाया मौजूद रखने की उसकी महारत। छोटे लालच के दम पर बड़ी भीड़ जुटा लाने वाली ये नेत्री(?) कभी उन महिलाओं के गुस्से का शिकार हो चुकी हैं, जिन्हें वादा कर शकर चावल अदा नहीं किया गया था। बुर्के में छिपी साड़ी और जींस टी शर्ट भी कई बार अपनी झलक दिखा चुकी हैं। लेकिन जब तक झूठ चल सकता है, सच से दूरी बनी रहने वाली है।
मुखिया जी को भी झूठी तस्वीर दिखाकर रवाना कर दिया गया है। ईनाम में वाहवाहियां नसीब हैं।