bosssएक टीवी चैनल ने सर्वे करने वाली एक विश्वसनीय संस्था के साथ मिलकर, उत्तर प्रदेश में आज चुनाव होते हैं, तो किसे कितनी सीटें मिलेंगी, इसकी गणना की है. इस सर्वे ने बहुजन समाज पार्टी को प्रथम स्थान दिया है. भारतीय जनता पार्टी को दूसरा, समाजवादी पार्टी को तीसरा और कांग्रेस को चौथा स्थान मिला है. भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी ने कहा कि यह प्रायोजित सर्वे है, जो बहुजन समाज पार्टी के पक्ष में वातावरण बनाने के लिए कराया गया है.

अखिलेश यादव की सधी हुई प्रतिक्रिया रही कि हमें सावधान हो जाना चाहिए. सबसे पहले हमने इसी बात की पड़ताल की कि क्या यह सर्वे निश्चित मानदंडों के आधार पर है या नहीं? और, हमारी जानकारी के हिसाब से यह सर्वे पूर्णतय: तय मानकों के आधार पर हुआ है. सर्वे सही है, भले ही यह कुछ लोगों को परेशान करे और कुछ लोगों को खुश.

मेरा अपना मानना है कि बहुजन समाज पार्टी ने पिछले चार वर्षों में ऐसा कुछ नहीं किया, जिसकी वजह से लोग उसे वोट दें. उसने जनता की परेशानियों को लेकर कोई आंदोलन नहीं किया, आवाज़ तक नहीं उठाई. बजाय इसके कि गाहे-बगाहे बसपा की अकेली सर्वमान्य नेता मायावती जी समय-समय पर बयान देती रहीं.

लेकिन, उन्होंने एक अच्छा काम किया कि वह पूरे चार वर्ष खामोश रहीं और उनकी खामोशी ने उन्हें उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी का सहज विकल्प बना दिया. बहुजन समाज पार्टी पैसे देकर सर्वे कराने के लिए कभी पकड़ में नहीं आई और न उसने कभी ऐसी कोई रुचि दिखाई. इसलिए भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष का आरोप कि यह बहुजन समाज पार्टी या मायावती द्वारा प्रायोजित सर्वे है, ग़लत है.

सबसे ज़्यादा परेशान करने वाली बात समाजवादी पार्टी के लिए है. अखिलेश यादव जब मुख्यमंत्री बने थे, तब सभी को लगा था कि वह देश में नौजवानों के एकछत्र उदाहरण बनकर चमकेंगे. अखिलेश यादव ने चुनाव के दौरान जब डीपी यादव को पार्टी में न लेने का सार्वजानिक ऐलान किया, तो उनके इस क़दम को उत्तर प्रदेश की जनता ने भरपूर सराहा और अखिलेश यादव के रूप में एक नए नेता में अपना पूर्ण विश्वास जताया.

उत्तर प्रदेश को ऐसा बहुमत कभी-कभी मिला है. अखिलेश यादव के सामने कोई चुनौती नहीं थी, स़िर्फ और स़िर्फ अवसर थे. लेकिन, संभवत: अखिलेश यादव अपने सलाहकारों या प्रशासनिक अधिकारियों की वजह से अपनी वह छवि नहीं बना पाए, जिसकी कल्पना चुनाव के समय लोगों ने की थी. परिणाम स्वरूप आज का यह सर्वे अखिलेश यादव के लिए सचमुच एक चेतावनी है.

अखिलेश यादव को कभी शहरों से वोट नहीं मिला और न शहर में उनके मतदाता हैं. उनके मतदाता गांवों में हैं, जिनकी आवश्यकता बिजली है, सड़क है, पानी है, स्कूल हैं और अस्पताल हैं. इस दिशा में अखिलेश यादव काम नहीं कर पाए.

मेरा मानना है कि इसके पीछे उन प्रशासनिक अधिकारियों का हाथ है, जो बहुजन समाज पार्टी की नेता मायावती के मुख्यमंत्री रहते हुए उनकी नाक के बाल बने हुए थे. बिजली की हालत सुधरी, लेकिन बिजली शहरों में आई, गांव में नहीं. गांवों के ट्यूबवेेल सूने पड़े हैं. नहरें वह असर नहीं डाल पा रही हैं, जो किसान को खेती के लिए चाहिए.

गांवों की सड़कें लगभग नहीं बनीं. स्कूल और अस्पताल के बारे में कहना क्या, क्योंकि वे तो सारे देश में ऐसे हैं. लेकिन, अखिलेश के सामने अवसर था कि वह उत्तर प्रदेश में स्कूलों और अस्पतालों की हालत सुधारते.

अखिलेश यादव के मतदाता मुखर तो हैं, लेकिन जो समर्थन उन्हें मिला, वह उनके वोटों के आधार से बाहर जाकर मिला. और, जिसने बाहर जाकर उन्हें समर्थन दिया, जो उनके समर्थकों के दायरे में नहीं आता, वह वर्ग आज निराश है, चिंतित है, परेशान है. शायद इसलिए उसने सर्वे में अखिलेश यादव के प्रति उदासीनता दिखाई.

अखिलेश यादव सरकार के ज़्यादातर काम अफसरशाही के गलियारों में भटक कर अपना वजूद खो बैठे. अखिलेश यादव की छवि बहुत अच्छी है, लेकिन वह छवि तब बेअसर हो जाती है, जब क़ानून व्यवस्था की स्थिति पर सवाल उठने लगते हैं. हम अखिलेश यादव की इस बात से सहमत हैं कि यह स्थिति कमोबेश बहुत सारे प्रदेशों में है, लेकिन उन प्रदेशों में वहां की सत्ता या नेता से लोगों की उतनी अपेक्षाएं नहीं हैं, जितनी अखिलेश यादव ने उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनते ही जगा दीं.

लोगों को लगा कि विकास के काम अवश्य होने चाहिए. उनकी रोजमर्रा की ज़िंदगी, जिसका सीधा संबंध क़ानून व्यवस्था से है, कम से कम आसान हो जाएगी, स्थिति शांतिपूर्ण हो जाएगी. इसलिए अखिलेश यादव को क़ानून व्यवस्था के मोर्चे पर लोगों के गुस्से का सामना करना पड़ रहा है और सर्वे में अखिलेश सरकार के प्रति नाराज़गी की सबसे बड़ी वजह क़ानून व्यवस्था है.

भारतीय जनता पार्टी स़िर्फ और स़िर्फ नरेंद्र मोदी के भरोसे है. वह अपना ऐसा कोई नेता उभार नहीं सकी, जो प्रदेश में पार्टी को लेकर चल सके. ले-देकर राजनाथ सिंह का नाम है, जो पुराना है. उसके बाद योगी आदित्य नाथ का नाम आता है, वरुण गांधी का नाम आता है. अब स्मृति ईरानी का नाम आने लगा है. अगर ये भाजपा के चेहरे बनकर प्रदेश में घूमेंगे, तो भारतीय जनता पार्टी को कितने वोट मिलेंगे, मैं नहीं कह सकता. हालांकि, भारतीय जनता पार्टी को सर्वे में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में लोगों ने पसंद किया है. यह पसंद कहीं यहीं तक न रह जाए, इसकी चिंता भारतीय जनता पार्टी को करनी चाहिए, क्योंकि बिहार में अभी ऐसा हो चुका है.

कांग्रेस न पहले चिंतित थी, न अभी चिंतित है. उसे लगता है कि वे एक कंसलटेंट की मदद लेकर उत्तर प्रदेश का चुनाव जीत जाएंगे और उसके बाद देश में एक नया झंडा लेकर निकलेंगे. लेकिन, सर्वे में प्रियंका गांधी को सबसे कम मुख्यमंत्री के रूप में पसंद किया गया. मेरा मानना है कि अगर प्रियंका गांधी हिम्मत के साथ कांग्रेस का नेतृत्व उत्तर प्रदेश में संभालती हैं, तो वह दूसरी पार्टियों के लिए परेशानी अवश्य खड़ी कर देंगी.

भले ही उनकी पार्टी को 13 या 23 सीटें मिलें, लेकिन वह बाकी लोगों को,जब तक फैसला नहीं होता, तब तक पसोपेश में डाले रह सकती हैं. वे सारी पार्टियां, जिनमें अजित सिंह, अन्य क्षेत्रीय दल और जदयू शामिल हैं, पांचवें नंबर पर कहां बैठेंगे, कोई नहीं जानता. क्योंकि, आने वाले समय में अभी का जो आधार है, वह ज़्यादा घटेगा-बढ़ेगा नहीं.

इसके बावजूद उत्तर प्रदेश का चुनाव सभी के लिए खुला है. मुलायम सिंह जी को सबसे ज़्यादा चिंतित होना चाहिए. अगर उत्तर प्रदेश उनके हाथ से निकल गया, तो 2019 में बहुत संभावना नहीं है. अब वह 2017 में उत्तर प्रदेश जीतने के लिए रोटी को कितना उलटते-पलटते हैं या अखिलेश यादव को बुलाकर कितना समझाते हैं और अखिलेश उनकी बात को कितना मानते हैं, यह सब भविष्य के गर्भ में है. लेकिन, इतना मानना चाहिए कि मायावती को बढ़त मिली है. इस बढ़त को मनोवैज्ञानिक तौर पर रोकने की सबसे ज़्यादा ज़रूरत मुलायम सिंह यादव और समाजवादी पार्टी को है.

Adv from Sponsors

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here