झारखण्ड में महागठबंधन बनाने की तैयारियों के बीच झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन ने एकला चलो का राग अलाप कर जहां एक तरफ महागठबंधन के भविष्य को लेकर विपक्षी दलों को असमंजस में डाल दिया था. अब एक फिर महागठबंधन बनाने को लेकर रांची और दिल्ली में सरगर्मियां तेज़ हो गई हैं. महागठबंध ने घटकों में चल रही आपसी खिचातानी के मद्देनजर घटक दल अपना ‘प्लान-बी’ भी तैयार करने की भी कोशिश कर रहे हैं.
यह प्लान अपेक्षाकृत संवेदनशील परिस्थितियों के मद्देनजर तैयार किया जा रहा है. लोकसभा चुनाव को लेकर विपक्षी दलों में जो पेंच है, उसी को देखते हुए इस अलग व्यवस्था की रूपरेखा तो तैयार हो रही है. लेकिन अभी तक झामुमो एवं कांग्रेस द्वारा पत्ते नहीं खोले जाने के कारण अन्य विपक्षी दल भी अभी रणनीति भांपने में लगे हुए हैं.
राज्य के लोकसभा की 14 सीटों को लेकर कांग्रेस ने जो फार्मूला फिलहाल पर तैयार किया है, उस फार्मूले में सभी दल अपने पूरे सम्मान के साथ फिट होते नहीं दिख रहे हैं. वैसे झामुमो के छिटकने के कयास मात्र से ही कांग्रेस अलर्ट हो गई है. कांग्रेस बाबूलाल मरांडी की झाविमो के साथ ही राजद एवं वामदलों को साधने में जुटी है और आपात स्थिति में झामुमो को छोड़कर इन दलों को साथ लेकर लोकसभा चुनाव में उतर सकती है.
इधर झामुमो ने भी अपना पंसा फेंका है कि वो ममता बनर्जी और मायावती के संपर्क में है. भले ही इन दलों का झारखंड में वजूद न के बराबर है, लेकिन इसका संदेश खासा बड़ा होगा. ममता बनर्जी से जुड़कर झामुमो गैर भाजपाई बांग्लाभाषी मतदाताओं को रिझाना चाहती है. इसी प्रकार मायावती से रिश्ता जोड़कर दलित मतदाताओं को भी अपनी ओर लाने की कोशिश में है. वैसे देखा जाय तो यह स्पष्ट है कि झामुमो फिलहाल दबाव बनाने की कोशिश में जुटी हुई है.
झामुमो की नजर विधानसभा चुनाव पर ज्यादा है और वो चाहती है कि कांग्रेस विधानसभा चुनाव के लिए सीटों का बंटवारा अभी ही कर ले. कांग्रेस लोकसभा की सात सीटों पर अपनी दावेदारी कर रही है. बदले में वो विधानसभा चुनाव में झुकने को तैयार है. गौरतलब है कि कांग्रेस का अभी झारखंड से एक भी लोकसभा सदस्य नहीं है.
झामुमो का अपना गणित है. वो चाहती है कि पिछले चुनावों के आधार पर सीटों का बटवारा हो. इसने विधानसभा में 40 सीटों पर दावेदारी पेश की है. झामुमो का तर्क है कि पिछले चुनाव में इसने 19 सीटों पर जीत दर्ज की है, जबकि कांग्रेस 18 सीटों पर दूसरे स्थान पर रही थी. इधर बाबूलाल भी 20 सीटों पर अपनी दावेदारी जता रहे हैं.
बाबूलाल मरांडी का भी यही कहना है कि उनकी पार्टी झाविमो ने आठ सीटें जीती थी, जबकि पांच पर दूसरे स्थान पर थे. जहां तक कांग्रेस की बात है, पिछले विधानसभा चुनाव में उसके छह विधायक थे, जबकि 10 सीटों पर दूसरे नंबर पर थी. लोहरदगा उपचुनाव में कांग्रेस के सुखदेव भगत ने बाजी मारी थी और पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा के कांग्रेस में शामिल होने के बाद इसके आठ विधायक हो गए.
जाहिर है कि कांग्रेस भी ज्यादा से ज्यादा सीटों पर अपनी दावेदारी पेश कर रही है. कांग्रेस लोकसभा में सात और विधानसभा में 20 सीट की अपनी मांग पर अड़ी हुई है. महागठबंधन को लेकर राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद काफी सक्रिय थे और सभी दलों को एक साथ लाने में उनकी भूमिका अहम रही, इसलिए राजद भी 10 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहता है, हालांकि पिछले चुनाव में राजद का एक भी उम्मीदवार चुनाव जीत नहीं पाया था, लेकिन इसके छह प्रत्याशी दूसरे नंबर पर थे. दूसरे नंबर के आधार पर हो रही दावेदारी के कारण ही महागठबंधन में पेंच फंसता दिख रहा है.