वैसे तो किसी भी राजनीतिक दल के कार्यकर्ताओं के लिए खुलकर बोलना मुश्किल होता है, लेकिन जब मौका हाथ आ जाए तो जुबान काबू में रख पाना भी आसान नहीं होता. खासकर उनके लिए जो ग्रामीण परिवेश में रहकर दलगत राजनीति में योगदान देते हैं. पिछले 17 नवंबर को सीतामढ़ी जिला मुख्यालय डुमरा के तलखापुर में जिला जदयू कार्यालय परिसर में आयोजित कार्यकर्ता सम्मेलन में पार्टी कार्यकर्ताओं ने अपनी ताकत का बखूबी अहसास कराया.
कार्यक्रम के दौरान जब मौजूद कार्यकर्ताओं को अपनी बात रखने को कहा गया, तब कई प्रखंड के कार्यकर्ताओं ने अपना सियासी दर्द बयां किया. कार्यकर्ताओं ने कहा कि कोई भी उनकी बात सुनने को तैयार नहीं है. हमारी ही पार्टी की सरकार है, लेकिन सरकारी दफ्तरों में गरीबों की समस्या का निदान मुश्किल बना हुआ है. अधिकांश लोगों ने सरकार प्रायोजित जनोपयोगी योजनाओं में हर स्तर पर बरती जा रही लापरवाही की तरफ इशारा किया और इसके लिए जिम्मेदार लोगों पर अंकुश लगाने की आवश्यकता जताई. इस मसले पर चर्चा के क्रम में पार्टी के पूर्व जिलाध्यक्ष नागेंद्र प्रसाद सिंह ने भी खुलकर अपनी बात रखी. कुछ मामलों का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि जिले में एक ही स्थान पर लगातार चार-चार बार तटबंध टूट जा रहा है, लेकिन कार्य एजेंसी पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं हो पा रही है. सरकारी खजाने की लूट मची है. जिले के एक सीडीपीओ कार्यालय से नगद राशि की बरामदी हुई. मामले में प्राथमिकी भी दर्ज हुई, लेकिन पुलिस अब तक बता नहीं पाई है कि बरामद पैसा किसका है.
इस सम्मेलन में सत्ताधारी पार्टी के कार्यकर्ताओं द्वारा सरकार की कार्यशैली पर उठाए गए सवालों से एक बात तो साफ है कि सरकार के मुखिया नीतीश कुमार द्वारा भ्रष्टाचार के मसले पर कही गई जीरो टॉलरेंस वाली बात संदेह के घेरे में है. जिन भ्रष्टाचार और कुशासन के मामलों को मुद्दा बनाते हुए जदयू ने महागठबंधन तोड़कर राजद का साथ छोड़ा था, वैसे मामले तो अब भी सामने आ रहे हैं. हालांकि पार्टी के वरिष्ठ नेता पूर्व सांसद नवल किशोर राय ने सरकार के पक्ष में जमकर वकालत की. उन्होंने कहा कि यह सही बात है कि भ्रष्टाचार समाप्त नहीं हुआ है, लेकिन यह भी सही है कि भ्रष्टाचार के मामलों में कमी जरूर आई है. सूचना का अधिकार, लोक शिकायत अधिकार अधिनियम, स्पेशल प्रोटेक्शन एक्ट व निगरानी जैसे कदमों से बहुत हद तक भ्रष्टाचार पर नकेल कसा गया है. बागमती व अघवारा तटबंध निर्माण मामले में चल रही जांच व दोषियों की गिरफ्तारी इसका सबूत है. इन्होंने यह भी कहने से परहेज नहीं किया कि निर्माण के दौरान अघवारा तटबंध मामले में जब किसानों ने आवाज उठाई थी, तब कुछ ओहदेदार प्रतिनिधि निर्माण एजेंसी के पक्ष में ही खड़े थे, वहीं कुछ कार्यकारी एजेंसी के अधिकारियों के साथ मिलकर फोटो खिंचवाते रहे. नतीजा यह हुआ कि मामला निगरानी तक पहुंचा और संबंधित अभियंताओं समेत दर्जनभर से अधिक लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज हुई. कुछ की गिरफ्तारी भी हुई है और बाकी की गिरफ्तारी की कवायद में जिला पुलिस लगी है.
जिलाध्यक्ष मो. ज्याउद्दीन खां की अध्यक्षता में आयोजित इस कार्यकर्ता सम्मेलन में नालंदा के सांसद कौशलेंद्र कुमार, राज्यसभा सदस्य कहकशां परवीन, प्रदेश प्रवक्ता राजीव रंजन प्रसाद, महिला प्रकोष्ठ की अध्यक्ष कंचन गुप्ता, प्रदेश महासचिव सह जिला प्रभारी विधायक उमेश कुशवाहा, बेलसंड विधायक प्रतिनिधि राणा रंधीर सिंह चौहान, विधान पार्षद राज किशोर कुशवाहा व विधायक डॉ रंजूगीता आदि मौजूद रहे. सम्मेलन में कई स्थानीय समस्याओं पर भी चर्चा हुई और इन्हें लेकर जिला जदयू कार्यकारिणी समिति द्वारा 19 सूत्री प्रस्ताव प्रस्तुत किया गया. इनमें सीतामढ़ी जिले में सिंचाई परियोजना के चौपट रहने के कारण किसानों को हो रही परेशानी, लक्ष्मणा नदी की उड़ाही कराने, जिले के विभिन्न पंचायतों में बनकर तैयार जलमीनारों से लोगों को पेयजल मुहैया कराने और सीतामढ़ी के धार्मिक व सांस्कृतिक स्थलों को विकसित कर सीता सर्किट बनाने जैसे मुद्दे
शामिल थे.
इस सम्मेलन में जदयू कार्यकर्ताओं ने अगले चुनाव के लिए भी कुछ प्रस्ताव रखा. कहा गया कि जिले की कुल 8 में से 4 विधानसभा सीटों पर जदयू चुनाव लड़ती और जीतती भी रही है. लेकिन पिछले महागठबंधन के तहत पार्टी को महज दो सीटों पर ही संतोष करना पड़ा था. दावा किया गया कि जिले में अब पार्टी का आधार पहले से काफी बढ़ा है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के महत्वाकांक्षी कार्यक्रम शराबबंदी, सात निश्चय, बाल विवाह उन्मूलन व दहेज प्रथा पर रोक आदि का व्यापक असर जनमानस पर पड़ा है. ऐसे में पार्टी को पुन: पुराने समीकरण के हिसाब से ज्यादा से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ना चाहिए. इसके साथ ही लोकसभा चुनाव के संदर्भ में भी चर्चा हुई. कहा गया कि चूंकि 2014 से पूर्व सीतामढ़ी संसदीय सीट पर जदयू का कब्जा रहा है, ऐसे में इस सीट को फिर से जदयू के खाते में लाने का प्रयास किया जाना चाहिए. हालांकि अभी चुनावी वक्त में विलंब है. समय करीब आने तक राजनीतिक उथल-पुथल की संभावनाओं से इंकार नही किया जा सकता है. एक ओर कार्यकर्ता मुखर होने लगे हैं, तो दूसरी ओर नेता चुनावी माहौल बनाने में जुट गए हैं. अब देखना यह है कि कार्यकर्ताओं की शिकायत को पार्टी का शीर्ष नेतृत्व कितनी गंभीरता से लेता है.प