मैंने कुछ दिन पहले ही फर्स्ट नक्सल नाम की एक कानू सान्याल नाम के नक्सल नाम के नेता की बायोग्राफी पर लिखा था ! कि वह अकेले पन की वजह से अपने कमरे में सीलिंग फैन को लटक कर आत्महत्या किए हैं ! और उन्होंने अपने बायोग्राफी लिखने वाले लेखक को अपनी इस व्यथा को शेयर भी किया है !
अभी मै गोआ से वापसिके सफर के लिए मुंबई से नागपुर की गाड़ी को बारह घंटे का अंतराल होने के कारण, एक बुजुर्ग मित्र को मिलकर लौट रहा हूँ ! और बार-बार उनके 84 साल का उम्र और अकेले पन की वजह से उन्हें घेरकर रखी निराशा उनके मुहसे सुनकर आ रहा हूँ और वह मुझे पुनाह-पुनाह याद आ रही है ! और यह पोस्ट लिखने की वजह भी वही है !
कलकत्ता में मेरे एक अत्यंत प्रतिभाशाली और मूर्धन्य विद्वान मित्र भी, सत्तर की उम्र पार करने के बाद मुझे जब भी मिलते थे, तो सुरेश क्या तुम मुझे मेरा जीवन समाप्त करने के लिए मदद कर सकते ! और मै उन्हें कहता था कि पहले मुझे आप अपना जीवन क्यों समाप्त करना चाहते हो यह समझाए ! क्योंकि कभी नहीं ऐसे संकट देश दुनिया में रहते हुए आप जैसे लोगों को जो इन समस्याओं को सुलझाने के लिए हमें मार्गदर्शन करने के लिए आप लोग चाहिए तो हम इतनी आसानी से आप जैसे लोगों को खोने की गलती क्यों करेंगे ? और सचमुच ही नंदीग्राम-सिंगुर के आंदोलन के समय उनके योगदान के कारण उस आंदोलन को बहुत बल मिला ! और बादमे वह उम्र के कारण नैसर्गिक रूप से इस दुनिया से 87 साल की उम्र में चले गये !
दुसरे बुजुर्ग मित्र पुणे समाजवादी विचारधारा के ! पत्नी के निधन के बाद अपनी संपत्ति सार्वजनिक दान कर के और अपने अंतिम दिनों में हमारे अपने ही लोगों द्वारा चलाए जा रहे अस्पताल में रहने चले गए थे ! और जब मै पुणे जाता था तो उन्हें मिलने के लिए अवश्य जाता था ! और वह फिर अपने अकेलेपन की तक्रार मुझे बताया करते थे ! और सबसे बडा डर विस्मृती की बिमारी होने का बताया करते थे ! और मै उन्हें कहता था कि आपसे दस साल बडे ज्योति बसु अब शताब्दी की तरफ जा रहे हैं ! और उनकी स्मृति यथावत है ! और आप अभी मेरे साथ के वार्तालाप में साहित्य, समाज, राजनीति, फिलासफी से लेकर कुछ काॅमन मित्रों को लेकर की गई बातचीत मे मुझे कहीं भी आप विस्मृती की बिमारी से ग्रस्त होना तो दूर उलटा कोसों दूर लग रहे हो !
वैसे ही बाबा आमटेजी अपने जीवन के आखिरी पडाव मे , उनके साथ जब भी मुलाकात होती थी ,तो वह मुझे पुनाह-पुनाह कहते थे कि सुरेश मै विस्मृती की बिमारी से पीड़ित हो रहा हूँ ! और आज से चालीस साल के भी पहले से मेरी कालेज की पढाई के जिक्र किये बगैर बात पूरी नहीं होती थी ! क्योंकि मेरे काॅलेज के अंतिम साल मै सामाजिक काम करने के कारण रेस्टिगेट होने की बात शायद 1971-72 बाबा आमटेजी को भी मालूम थी ! और वह इस बात का जिक्र हर मुलाकात में अवश्य करते थे ! तो मै उन्हें कहता था कि इतनी पुरानी यादे आपको याद है और आपको स्मृतिभ्रंश की बिमारी होने की चिंता बेवजह है !
विज्ञान के कारण अन्य चीजों के साथ मानव जीवन और मुख्यतः विभिन्न तरह की बीमारीयो पर काबू पाने के लिए काफी कुछ संशोधन हुआ है ! और उसमें कामयाबी भी मिली है ! उदाहरण के लिए दमा, डायबीटीस, टीबी, मलेरिया और पेनिसिलिन जैसे दवाओं के कारण काफी बीमारीयो मे लोग मर जाते थे ! आज वह बचते हैं !और काफी समय जीते है !
अगर दमा और डायबीटीस की आज उपलब्ध दवाओं का लाभ स्वामी विवेकानंद को या डॉ बाबा साहब अंबेडकर के समय मिला होता तो स्वामी विवेकानंद 39 उम्र में इस दुनिया से नहीं गए होते ! और वही बात डॉ बाबा साहब की डायबीटीस की है जिन्हें सिर्फ 66साल की उम्र में इस दुनिया से विदा हो गये ! लेकिन यह विज्ञान की देन है या शाप यह कुछ लोग जो अब तो उनके उम्र के कारण हताशा से अब जीवन बोझ लगने लगा है कहते हैं ! तो इच्छा मरण की मुहीम कुछ लोग चला रहे हैं और मेरा इस मुहिम को जबसे शुरू हुई है तभी से समर्थन है !
जैन धर्म में प्रयोपनेशन है ! आचार्य विनोबा भावे तथा बैरिस्टर विनायक दामोदर सावरकर की मृत्यु भी अंतिम समय में खाना-पीना छोडने के कारण ही हुई है ! जापान में सौ साल से भी ज्यादा उम्र के लोगों के गाँव है !
और हमारे भी देश में सीनियर सिटीजन की समस्याओं पर कुछ फिल्मों तथा नाटकों का मंचन किया जा रहा है और 135 करोड की आबादी में एक चौथाई जनसंख्या साठ पार चुके लोगों की है ! और अब वह भी एक राष्ट्रीय समस्या के रूप में बढती जा रही है ! जीस देश में नवजात शिशुओं तथा युवाओं के लिए कोई नियोजन नही है ! उनसे उम्र दराज लोगों के लिए उम्मीद क्यों करें ?