दुनिया के सबसे ऊंचे पर्वत माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई बढ़ने की खबर को किस रूप में लें ? गौरव के रूप में या चिंता के रूप में? गौरव इसलिए क्योंकि पिछले दिनो यह कहा जा रहा था कि पर्वतराज एवरेस्ट की हैसियत कुछ घट गई है। लेकिन अब नेपाल और चीन ने अधिकृत तौर पर दावा किया है कि एवरेस्ट की ऊंचाई घटने के बजाए और बढ़ गई है। इसका अभिमानास्पद पहलू ये कि एवरेस्ट पर चढ़ने अर्थ आकाश को 86 सेंटी मीटर और जल्द छूना हो गया है। साथ ही चिंता इसलिए,क्योंकि जितने ज्यादा लोग अब एवरेस्ट के शिखर पर चढ़ रहे हैं, उससे ऊंचाई की महत्ता कुछ कम होने लगी है। लोग चढ़ ही नहीं रहे, टनों कचरा भी वहां छोड़ने लगे हैं। यही हाल रहा तो एवरेस्ट भी महज एक टूरिस्ट स्पाॅट बनकर रह जाएगा।

इस देश और दुनिया भर में घटने वाली तमाम नकारात्मक घटनाओं के बीच एक दिलचस्प खबर यह आई कि दुनिया की सबसे ऊंची चोटी कुछ और ऊंची हो गई है। इसके पीछे कई कारण हैं। लेकिन एवरेस्ट वास्तव में कितना ऊंचा है, इसकी नपती के तरीकों पर पहले भी विवाद रहा है। क्योंकि जो सबसे ऊंचा है, उसे नापने के लिए भी इरादों की ऊंचाई चाहिए। विश्व की इस सबसे ऊंची चोटी का नाम एवरेस्ट भी 19 वीं सदी के एक प्रख्यात ब्रिटिश सर्वेयर और भूगोल विशेषज्ञ जाॅर्ज एवरेस्ट के नाम पर रखा गया है। क्योंकि उन्होंने ही सबसे पहले इस चोटी की जानकारी दी थी। संस्कृत में इसे देवगिरी कहा गया है तो नेपाली में सगरमाथा कहते हैं। तिब्बती में यह छोमोलुंग्मा तथा चीनी में झुमुलांग्मा फेंग कहलाती है। एवरेस्ट चोटी भौगोलिक रूप में नेपाल और चीन के तिब्बत इलाके में पड़ती है। यह माना जा रहा था कि पिछले दिनो नेपाल में आए भयंकर भूकंप के बाद एवरेस्ट की चोटी कुछ नीची हो गई है। लिहाजा लेकिन नेपाल और चीनी विशेषज्ञों की टीम ने साल भर मेहनत के बाद इसकी नए सिरे से नपती की। इसके बाद नेपाली विदेशमंत्री प्रदीप कुमार ग्यावली ने बताया कि माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई अब 8848.86 मीटर है, जो पहले के मुकाबले 86 सेमी (2.8 फीट) ज्यादा है। बताया जाता है कि एवरेस्ट की ऊंचाई को लेकर विवाद इस चोटी को उस पर जमी बर्फ की पर्त के हिसाब से नापने अथवा केवल चट्टान की ऊंचाई के अनुसार नापने को लेकर था। एवरेस्ट पर तकरीबन साल भर ही बर्फ जमी रहती है। अंग्रेजी में इसे स्नो कैप ( हिम मुकुट) कहते हैं। बिना बर्फ की इस मोटी परत के एवरेस्ट की ऊंचाई नापना, उस सर्वोच्च चोटी की तासीर को नकारने जैसा होता। लिहाजा विशेषज्ञों ने अब इसे मान लिया है। दरअसल एवरेस्ट की पहले वाली ऊंचाई 1954 में भारत के ‘सर्वे आॅफ इंडिया’ ने तय की थी। तब से चीन का दावा था कि एवरेस्ट इससे कही ज्यादा ऊंचा है।

अब सवाल यह है कि एवरेस्ट की ऊंचाई नापने का पैमाना क्या है? नई ऊंचाई भी किस आधार पर तय की गई है? बीबीसी के अनुसार नेपाल ने बंगाल की खाड़ी को समुद्र सतह माना जबकि चीन ने पीला सागर ( येलो सी) की समुद्र सतह को बेस माना। समुद्र सतह का महत्व इसलिए है, क्योंकि अगर केवल सीधे पर्वत की ऊंचाई को देखें तो दुनिया में एवरेस्ट से ऊंचे कई पहाड़ हैं। लेकिन जब उनकी नपती समुद्र सतह से की गई तो वो एवरेस्ट के आगे बौने साबित हुए। ताजा आंकड़ों के मुताबिक एवरेस्ट चोटी अब समुद्र सतह से 8848.86 मीटर ऊंची है, जो पहले 8848 मीटर ही मानी जाती थी। अगर किसी रास्ते की लंबाई से इसकी तुलना करें तो एवरेस्ट करीब पौने नौ किलोमीटर लंबा है। फीट में गिने तो यह 29031.7 फीट होती है। ऊंचाई की यह गणना त्रिकोणमिति सूत्रों के जरिए होती है। अर्थात त्रिकोण की ऊंचाई को इसके कोणों और आधार रेखा से गुणित किया जाता है। जब तक यह नपती चली,तब एवरेस्ट के लिए सभी पर्वतारोहण अभियान रोक दिए गए थे।

संभव है कि हमारे पूर्वजों को एवरेस्ट के बारे में बहुत ज्यादा पता न हो, लेकिन इसकी लगभग सही ऊंचाई बताने का श्रेय भी हमारे ही खाते में है। प्रसिद्ध बंगाली गणितज्ञ और सर्वेयर राधानाथ सिकदर ने 1856 में ही अपनी गणनाओं से दुनिया को बता दिया था कि एवरेस्ट 29000 फीट ऊंचा है। यह गणना उन्होंने तब की थी, जब तब न तो कम्प्यूटर थे, न जीपीएस था और न ही हिमालय को आकाश से देखा जा सकता था। राधानाथ‍ ‍िसकदर स्वयं भी जार्ज एवरेस्ट के शिष्य थे।

एवरेस्ट की यह अनुपम और कठिन ऊंचाई साहसी पर्वतारोहियों के लिए हमेशा अटूट आकर्षण और कड़ी चुनौती का कारण रही है। प्राचीन काल में भी साहसी लोग इतनी ऊंचाइयां नापते रहे होंगे, लेकिन इसके ज्यादा प्रमाण मौजूद नहीं है। यहां हम पुराणों और मिथकों की बात नहीं कर रहे हैं। उनमें हुए उल्लेखों का कुछ आधार रहा होगा। लेकिन जब से पर्वतारोहण एक व्यवस्थित और जोखिम भरी कला और खेल के रूप में विकसित हुई है, तब से एवरेस्ट फतह करना और इसी के बहाने प्रकृति पर अपनी श्रेष्ठता जताने का जुनून मनुष्य मात्र में कुलबुलाता रहा है। भयंकर बर्फीले तूफानों, बहुत कम प्राणवायु और ग्लेशियरों के टूटने के जानलेवा खतरों के बीच एवरेस्ट पर विजय प्राप्त करना आज भी एक विरल उप‍लब्धि है। एवरेस्ट विजय की कोशिश में करीब 3 सौ पर्वतारोही अपनी जानें गंवा चुके हैं। कहते हैं कि दो सौ पर्वतारोहियों की लाशें अभी भी एवरेस्ट के रास्तों में दफन हैं।

वैसे एवरेस्ट पर चढ़ाई करने के प्रामाणिक प्रयास सौ साल पहले ही शुरू हुए हैं। एवरेस्ट पर चढ़ने के कुल 17 रास्ते हैं। इस तरह की पहली ज्ञात कोशिश ब्रिटिश पर्वतारोहियों ने 1921 में की थी। यह दल तिब्बत वाले रास्ते से गया था, क्योंकि तत्कालीन नेपाल सरकार ने एवरेस्ट पर चढ़ाई की इजाजत नहीं दी थी। ऐसा ही दूसरा प्रयास 1924 में हुआ। वो लोग एवरेस्ट चोटी पर पहुंच भी गए थे, लेकिन जिंदा लौट नहीं सके। एवरेस्ट पर पहली अधिकृत विजय 27 मई 1953 को एक ब्रिटिश पर्वतारोही दल ने दर्ज की। जिसमें एडमंड हिलेरी और भारतीय शेरपा तेजिंग नोर्गे पहली बार दुनिया की सबसे ऊंची चोटी पर पहुंचे। उसके बाद तो कई पर्वतारोही अभियान हो चुके हैं। 2019 तक कुल 5294 लोग एवरेस्ट पर चढ़कर ‘वी’ का निशान बना चुके हैं। पहली की तुलना में अब सुविधाएं भी ज्यादा है। एक तरह एवरेस्टरोहण भी ‘खेल’ बन चुका है। लेकिन इसी के साथ एवरेस्ट पर कचरा भी बढ़ रहा है। बताया जाता है कि 30 टन कचरा अभी भी एवरेस्ट पर पड़ा हुआ है। अलबत्ता इन व्यापक चढ़ाई अभियानों से नेपाल सरकार की खासी कमाई हो रही है।

वैसे यह खबर पढ़कर मन में सवाल उठा कि भगवान शिव ने कैलाश पर्वत को अपना ठिकाना क्यों बनाया? वो चाहते तो एवरेस्ट को भी अपना आवास बना सकते थे। क्योंकि एवरेस्ट तो कैलाश पर्वत से 8 हजार फीट ज्यादा ऊंचा है। हो सकता है कि ‍शिव ने पवित्र मानसरोवर झील के पास होने की वजह कैलाश का चुनाव किया हो, क्योंकि एवरेस्ट के आसपास जल की सुविधा नहीं है। और तो और एवरेस्ट की चोटी पर तो दो लोगों के एक साथ खड़े होने लायक जगह भी नहीं है। हमारे देश की पहली महिला एवरेस्ट विजेता बछेंन्द्री पाल को ‍एवरेस्ट पर अपने सहयोगी के साथ खड़े रहने के लिए फावडे से कुरेद कर जगह बनानी पड़ी थी। यह सचमुच हैरानी की बात है कि कैलाश पर्वत हमारे लिए पूज्य है, लेकिन एवरेस्ट नहीं। हो सकता है कि हमारे पूर्वजों को हिमालय का तो बखूबी पता था, लेकिन उसकी सर्वोच्च चोटी एवरेस्ट की ज्यादा जानकारी न हो।

कहने का आशय ये कि केवल ऊंचाइयां आस्था का विषय नहीं होतीं। लेकिन ऊंचाइयां चुनौतियों का नया टारगेट जरूर सेट करती हैं। मनुष्य की यही खासियत है कि वह आस्था के समंदर में डुबकी लगाने के बाद भी चुनौतियों को स्वीकार करने का जुनून कभी मरने नहीं देता। शायद इसीलिए कैलाश पर्वत पर भले देवताओं का वास हो, लेकिन एवरेस्ट पर मनुष्य की पताका लहराती है। लगता है खुद एवरेस्ट भी इंसान की इसी जीवटता से डरता है, शायद इसीलिए वह अपनी ऊंचाई और बढ़ा रहा है।

अजय बोकिल
वरिष्ठ संपादक
‘सुबह सवेरे’

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