आयरन लेडी इरोम शर्मिला ने पीपुल्स रीसर्जेन्स एंड जस्टिस एलायंस (प्रजा) नाम से एक नई राजनीतिक पार्टी की घोषणा कर दी है. इससे पहले इरोम ने सामाजिक आंदोलन से निकलकर सत्ता के शिखर को चुनौती देने वाले अपने सियासी गुरु अरविंद केजरीवाल से कुछ गुर भी सीखे थे. अरविंद से मुलाकात के बाद उन्होंने अगले साल के शुरू में होने वाले मणिपुर के विधानसभा चुनाव में उतरने का फैसला किया. एक कुशल राजनेता की तरह उन्होंने मुख्यमंत्री इबोबी को चुनौती देते हुए थोउबल सीट से लड़ने का फैसला किया, साथ ही अपने लिए एक सेफ सीट भी बचाकर रखना जरूरी समझा, यानी इरोम थोउबल और खुरई दो विधानसभा सीटों से चुनाव मैदान में उतरेंगी. थोउबल कांग्रेस नेता ओकरम इबोबी सिंह का विधानसभा क्षेत्र है.
वे वर्ष 2002 से लगातार मणिपुर के मुख्यमंत्री हैं. इबोबी के इस अजेय गढ़ को चुनौती देना इरोम के लिए भी काफी मुश्किल भरा साबित होगा, इसलिए अगर यहां से हार मिलती है तो भी खुरई सीट से जीतकर वे विधानसभा में अफस्पा के खिलाफ माहौल बनाने का प्रयास करेंगी. माना जाता है कि अरविंद से मुलाकात के बाद इरोम ने अपने लिए एक सुरक्षित सीट रखने का फैसला लिया है.
एक मंजे राजनीतिज्ञ की तरह उन्होंने मणिपुर की सभी 60 सीटों से लड़ने का फैसला नहीं लिया, बल्कि सिर्फ 20 सीटों पर कैंडीडेट उतारने का फैसला किया है. इरोम के करीबियों ने बताया कि पिछलेलोकसभा चुनाव में आप पार्टी की असफलता से सबक लेते हुए अरविंद ने इरोम को सभी सीटों पर चुनाव नहीं लड़ने की सलाह दी थी. अपनी राजनीतिक शक्ति का आकलन करने के बाद ही सभी सियासी पत्ते खोले जाएं, ताकि विरोधियों को चारों खाने चित्त किया जा सके. इसके साथ ही इरोम राजनीति में बेहतर सलाह हासिल करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी मिलने की इच्छा रखती हैं.
एक सामाजिक आंदोलन से निकली पार्टी ने हाल में राजनीति के माहिर खिलाड़ियों को परास्त कर मिसाल कायम की थी. इरोम इसी इतिहास को मणिपुर में दोहरना चाहती हैं, लेकिन वे अपनी कमजोरियों को भी बखूबी पहचानती हैं. उन्हें पता है कि अफस्पा के खिलाफ 16 साल भूख हड़ताल जारी रखने के बाद राजनीतिक सफर तय करने के उनके फैसले से मणिपुर के लोग खुश नहीं हैं. मणिपुर के अरविंद सलाम का कहना है कि इरोम के राजनीति में आने के फैसले से अफस्पा की लड़ाई कमजोर होगी. इरोम के हंगर स्ट्राइक के कारण राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय मीडिया में अफस्पा का मुद्दा लंबे समय तक सुर्खियों में रहा.
अब अगर इरोम राजनीति में आती हैं, तो वे सियासी पैंतरेबाजी तो जरूर सीख जाएंगी, लेकिन अफस्पा का मुद्दा गौण हो जाएगा. राजनीति के जानकारों का कहना है कि मणिपुर की जनता की भावनाओं को समझते हुए इरोम ने उनका ध्यान बंटाने के लिए सीधे इबोबी के खिलाफ उतरने का फैसला लिया है. ऐसा कर वे लोगों को बता सकेंगी कि इबोबी की क्या मजबूरी थी कि उन्होंने राज्य से अफस्पा हटाने के लिए कोई पहल नहीं की? अभी हाल में गृह राज्यमंत्री किरण रिजीजू ने भी आरोप लगाया था कि अफस्पा हटाने के लिए राज्य की तरफ से कोई प्रस्ताव नहीं आया है.
इरोम ने सक्रिय राजनीति में उतरने के फैसले पर कहा, वे अफस्पा हटाने के लिए सीएम बनना चाहती हैं. इबोबी ने अपने निर्वाचन क्षेत्र में सभी लोगों को संतुष्ट कर रखा है. चाहे तो वे मुझे खारिज कर सकते हैं, लेकिन मैं यह जानना चाहती हूं कि क्या अन्य जिलों की जनता व पहाड़ी लोगों के हितों का भी उतना ही ख्याल रखा गया है? मैं अफस्पा खत्म कराने के लिए ही सीएम के खिलाफ चुनाव में उतरना चाहती हूं.
राजनीति में सोशल एक्टिविस्ट की पहचान कायम रखते हुए उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी न्याय, समझदारी, प्रेम और शांति के मूल सिद्धांतों का पालन करेगी. उन्होंने बताया कि नई पार्टी प्रजा अफस्पा के खात्मे के लिए काम करती रहेगी. साथ ही राज्य में सभी तरह की हिंसा और सैन्यीकरण के खिलाफ आवाज उठाएगी. नई पार्टी की घोषणा करते हुए उन्होंने बताया कि हम कर्म से, बातों से अपने राजनैतिक उद्देश्यों को पाने के लिए सिर्फ अहिंसक साधनों का इस्तेमाल करेंगे. इसके अलावा प्रजा लैंगिक असमानता के खिलाफ भी लड़ाई जारी रखेगी.
उन्होंने आर्थिक लचीलेपन व लोगों की आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने की भी बात की यानी वे सभी बातें जिनसे जनता को लुभाया जा सके. लेकिन जमीनी हालात ये हैं कि रिहा होने के बाद इरोम को पूरे मणिपुर में रहने के लिए एक घर तक नहीं मिला. यहां तक कि मां ने भी, जिनका वादा था कि वो अपनी बेटी से राज्य में अफस्पा हटने के बाद ही मिलेंगी, आज तक मिलने नहीं आईं. इरोम को इस सवाल का जवाब ढूंढना होगा कि अफस्पा हटाने के मुद्दे पर जिस राज्य के सभी निवासी उनके साथ खड़े थे, वे अचानक उनसे दूर क्यों होते चले गए?
क्या यह जरूरी नहीं था कि मणिपुर का नेतृत्व करने की इच्छा रखने से पूर्व उन्होंने जनता के नाराजगी की वजह तलाश ली होती? क्या सचमुच मणिपुर के निवासी इरोम के भूख-हड़ताल तोड़े जाने से नाराज हैं या राजनीति में उतरने के उनके फैसले से या फिर अफस्पा के खिलाफ एक सशक्त योद्धा के अवसान का दुख उन्हें साल रहा है. वजह जो भी रही हो, जनता की नाराजगी के कारण तलाशने होंगे, तभी इरोम के लिए राजनीति का सफर आसान होगा.