लोजपा ने 2019 के आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देजनर अपनी राजनीतिक हैसियत आंकने के लिए राजगीर सम्मेलन का आयोजन किया. लेकिन दो दिवसीय इस सम्मेलन ने पार्टी में चल रहे मनभेद और मतभेद को सतह पर ला दिया. ये खुलकर सामने आ गया कि बिहार में एनडीए के प्रमुख सहयोगी दल लोक जनशक्ति पार्टी में सब कुछ ठीक-ठाक नहीं चल रहा है. पार्टी के पदाधिकारियों के इस सम्मेलन की सफलता पर दो सांसदों की अनुपस्थिति ने प्रश्ना चिन्ह लगा दिया. इधर लोजपा सुप्रीमो रामविलास पासवान ने यह कहकर कि आने वाले चुनाव में कार्यकर्ता टिकट के लिए विवाद नहीं करें, साफ संकेत दे दिया कि नेताओं को आने वाली चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार रहना होगा. लोजपा सुप्रीमो के इस बयान से पार्टी के नेताओं द्वारा कई तरह के राजनीतिक कयास लगाए जा रहे हैं.
इस सम्मेलन से एक बात स्पष्ट हो गई कि लोजपा एनडीए की एकजुटता के लिए कोई भी कुर्बानी देने को तैयार रहेगी. इसी बात को लेकर लोजपा के कई नेताओं को आने वाले लोकसभा और विधानसभा चुनाव में पार्टी के अन्दर अभी से ही अपनी जमीन खिसकती नजर आने लगी है. अचानक बदले राजनीतिक समीकरण में जदयू का एनडीए का हिस्सा बनने से बिहार के सभी दलों का राजनीतिक गणित गड़बड़ा गया है. अब जदयू बिहार में एनडीए के सबसे बड़े सहयोगी दल के रूप में सामने आ गई है. इससे पूर्व लोजपा बिहार में भाजपा के बाद एनडीए घटक की दूसरी बड़ी पार्टी थी. जदयू के एनडीए में शामिल होने के दो महीने तक लोजपा ने बिहार के राजनीतिक तापमान को मापा और उसके बाद अपने पार्टी पदाधिकारियों के साथ महत्त्वपूर्ण बैठक करने का निर्णय लिया. इसी के तहत देश के विभिन्न राज्यों के राष्ट्रीय, राज्य तथा जिला स्तर के पदाधिकारियों का दो दिवसीय सम्मेलन 5-6 अक्टूबर 2017 को बिहार के राजगीर में आयोजित किया गया.
राजगीर के अंतरराष्ट्रीय कन्वेंशन सेंटर में आयोजित इस सम्मेलन में लोजपा सुप्रीमो ने दावा किया कि इस आयोजन में 26 राज्यों से पार्टी पदाधिकारी पहुंचे हैं. इस दावे के जरिए उन्होंने संदेश दिया कि लोजपा बिहार के अलावे बाकी प्रदेशों में भी पांव पसार रही है. उन्होंने यह भी कहा कि पार्टी को अगले कुछ महीनों में 70 लाख सदस्य बनाकर 1 करोड़ की सदस्यता के लक्ष्य को पूरा करना है. अभी पूरे देश में लोजपा के तीस लाख प्राथमिक सदस्य हैं. उन्होंने यह भी कहा कि मुझे तीन-तीन बार मुख्यमंत्री बनने का मौका मिला, लेकिन मैंने कभी रामसुन्दर दास तो कभी नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाने में मदद की. मेरे पास न तो अकूत सम्पत्ति है और न ही मैं किसी जाति का नेता हूं. मेरी मूल पूंजी पार्टी कार्यकर्त्ता हैं. इन्हीं के बल पर लोजपा आज देश में अपनी स्वच्छ छवि की पहचान वाली पार्टी है. दो दिनों के इस सम्मेलन को सांसद रामचन्द्र पासवान, पशुपति नाथ पारस, सूरज भान सिंह, बीना देवी, सुनील पाण्डेय, काली पाण्डेय, हुलास पाण्डेय, सत्यानन्द शर्मा, डॉ. रणजीत सिंह, नूतन सिंह, छोटेलाल यादव, लोजपा के बिहार युवा संगठन के प्रदेश अध्यक्ष अरविन्द कुमार सिंह समेत विभिन्न राज्यों से आए नेताओं ने भी संबोधित किया. लेकिन इस सम्मेलन में भी समाजवादी पार्टी और राजद की तरह परिवादवाद ही हावी रहा. रामविलास पासवान, चिराग पासवान, रामचन्द्र पासवान और पशुपति नाथ पारस ही सम्मेलन के केंद्र में रहे. इस सम्मेलन की एक बात ये भी है कि इसके जरिए रामविलास पासवान ने अपने दल के नेताओं को यह संकेत दे दिया कि आने वाले समय में इनका सांसद बेटा चिराग पासवान ही इनकी राजनीतिक विरासत संभालेगा. यह भी कहा जा सकता है कि राजनीतिक सम्मेलन का एक मकसद चिराग पासवान को राजनीतिक उत्तराधिकारी घोषित करना भी था.
इन सबसे इतर, इस सम्मेलन में लोजपा के दो सांसदों रामा सिंह और महबूब अली कैसर की अनुपस्थिति चर्चा का विषय रही. इससे पार्टी कार्यकर्ताओं में यह संदेश गया कि पार्टी में सबकुछ ठीक नहीं है. हालांकि इस मामले में लोजपा सुप्रीमो रामविलास पासवान और प्रदेश अध्यक्ष तथा राज्य के पशुपालन मंत्री पशुपति नाथ पारस ने सफाई भी दी कि वे दोनों व्यक्तिगत कारणों से सम्मेलन में नहीं आ सके. हाजीपुर के कार्यक्रम में रामा सिंह साथ थे. लेकिन प्रदेश के राजनीतिक हलकों में इसे लेकर दूसरी खबर तैर रही है. लोजपा की राजनीति को करीब से देखने वालों का कहना है कि रामविलास पासवान किसी भी कीमत पर एनडीए गठबंधन से बाहर नहीं हो सकते हैं, चाहे किसी के भी टिकट की कुर्बानी देनी पड़े. यही कारण है कि महबूब अली कैसर और रामा सिंह को पार्टी की ओर से अभी से यह संकेत दिया जा रहा है कि आने वाले लोकसभा चुनाव में इनका टिकट कट सकता है. इनकी सीट बचाने के लिए रामविलास पासवान भाजपा से कोई विवाद नहीं करेंगे.