काफी लोगों की गलतफहमी है कि ! बाबा साहब ने स्वातंत्र्य, समता और बंधुता यह त्रिसूत्री फ्रेंच राज्य क्रांती से ली है ! तो यह साफ गलत है ! श्री. कृष्णराव अर्जुन केळुसकर नामके एक विद्वान आंबेडकर के पिताजी के मित्रों में से एक थे ! और बाबा साहब ने चौथी कक्षा की परिक्षा पास करने के कारण उनकी बस्ती के लोगों ने उन्हें सम्मानित करने का फैसला लिया था !
लेकिन बाबा साहब के पिताजी ने कहा कि इतने छोटे बच्चे को इस तरह की बातें बिगाड़ भी सकती हैं ! इसलिए मना कर दिया था ! तो लोग कृष्णराव केळुसकर जो बाबा साहब अंबेडकरजी के पीताजी के मित्रों में से एक थे ! तो लोग उनके पास जाकर बाबा साहब अंबेडकरजी के पीताजी को समझाने के लिए विनती करने के लिए गए ! और कृष्णराव केळुसकर के कहने पर उन्होंने इजाजत दी !
और उस समारोह में खुद केळुसकर उपस्थित रहकर अपने द्वारा लिखित बुद्ध चरित्र बाबा साहब की प्रतिभा को देखते हुए ! उनके जीवन के शुरूआती काल में ही भेट दी थी !और उस समय बाबा साहब की उम्र दस – ग्यारह साल की रही होगी ! उसके पहले पिता के तरफसे दिए गए ग्रंथों में से रामायण – महाभारत के ग्रंथ बाबा साहब ने पढ कर ! पिताजी को कहा कि “इन दोनों ग्रंथों के पढ़ने के बाद मुझे लगता है कि! कर्ण को सुतपुत्र कहने वाले, एकलव्य का अंगुठे को काटने वाले तथा द्रोपदी को विवस्त्र करने वाला महाभारत मुझे मान्य नहीं है ! और शंबुककी हत्या करने वाला और शूर्पणखा का नाक और स्तन काटने वाले तथा गर्भवती सिता को वनवास में भेजनेवाले रामायण हमें महाकाव्य नही लगता है ! मैंने खुद रामायण लिखा होता तो गर्भवती सिता को बनवास भेजने के पहले कोर्ट में खड़ा करके उनके जीवन यापन के लिए मामला दर्ज किया होता ! ”
इस तरह के तर्क बचपन से ही देने वाले डॉक्टर भिमराव आंबेडकर की हिंदु धर्म के प्रति वितृष्णा दिन प्रति दिन विषमता मुलक व्यवस्था के कारण आगे चलकर बढते ही गई है ! बचपन से ही अस्पृश्य जाती में जन्मे और कदम – कदम पर अपमान और अवहेलना झेल कर बड़े हुए ! डॉक्टर – बैरिस्टर भिमराव आंबेडकर 13 अक्तूबर 1935 के दिन नासिक जिले के येवला नाम के जगह, दस हजार लोगो की उपस्थिति में भिमगर्जना करते हैं कि ” मै हिंदु धर्म में पैदा जरूर हुआ हूँ ! लेकिन मरने से पहले इस विषमतावादी धर्म का त्याग अवश्य करूंगा”! और सचमुच ही 14 अक्तुबर 1956 के दिन, नागपुर में अपने लाखों की संख्या में अनुयायी यो को लेकर बौद्ध धर्म का स्विकार किया ! और काल की विदारकता देखिए उन्होंने बौद्ध धर्म स्विकार ने के दो महीने के अंदर ही डॉ बाबा साहब अंबेडकरजी का महानिर्वाण हो गया ! मतलब अपनी घोषणा को अमली जामा पहनाने के बाद ही !
इससे बड़ा विद्रोह हिंदु धर्म के भीतर ! ढाई-तीन हजार साल पहले सिद्धार्थ गौतम ने किया था ! हालांकि सिद्धार्थ खुद क्षत्रिय कुल के और राजकुमार थे ! लेकिन उनके संवेदनशील मन को हिंदु धर्म की विषमतावादी स्थिति को देखते हुए राज्य का त्याग कर के साधना के लिए जंगलों – पहाडो के तरफ अग्रसर हो गए ! और बाद में हिंदु धर्म के पर्याय के रूप में बौद्ध धर्म की स्थापना की है ! और बाबा साहब अछूत जाती में पैदा हुए थे ! और इसी वजह से इतिहास के क्रम में करोड़ों भारतीय पिछडी जाती के लोगों ने समय-समय पर हिंदु धर्म का त्याग किया है और यह बात सव्वासौ साल पहले स्वामी विवेकानंद खुद शिकागो के धर्मसंसद के पहले से ही अपने दक्षिणी भारत के दौरे के समय बार – बार दोहराया है ! “कि भारत में इस्लाम और ख्रिस्ती धर्म किसी तलवार या बंदूक की नोक पर नही फैला है ! उन धर्मों को अपनाने वाले लोगों को हिंदु धर्म में जानवरों से भी बदतर स्थिति में रहना पड़ता था और इससे तंग आकर उन्होंने इन धर्मो को अपनाया है ! ”
क्या यह हिंदुत्ववादीयो के मुहपर झन्नाटेदार तमाचा नही है ! और मुर्ख आज भी और ज्यादा मदमस्त होकर हिंदु धर्म छोड़कर गए लोगों के खिलाफ द्वेष फैला कर उन्हें दंगे और आए दिन कुछ ना कुछ खुराफात करते हुए सताने के कामों में लगे हुए हैं ! वर्तमान समय में राजस्थान, मध्यप्रदेश, कर्नाटक आदि क्षेत्रों की घटनाओं को देखते हुए लगता है कि ! स्वामी विवेकानंद के कहने के अनुसार कि समस्त भारतीय भूमि पर अगर किसी ने इस्लाम या ख्रिश्चन धर्म का स्विकार किया है तो सिर्फ और सिर्फ हिंदु धर्म की विषमतावादी व्यवस्था के कारण !
और यह बात स्वामी विवेकानंदजी ने डॉ बाबा साहब अंबेडकरजी के सौ साल पहले ! कहने के बावजूद हिंदुत्ववादीयो को हिंदु धर्म सुधार छोड़ कर, हिंदु धर्म से जातीय भेदभाव के कारण छोडकर गये लोगों के उपर आतंकवादी हमले करने से क्या वह वापस हिंदु धर्म में आ जायेंगे ?
हिंदुत्ववादीयो का सबसे बड़ा संघठन आने वाले 2025 में सौ साल पूरे करने जा रहा है ! उन्हें लगता होगा कि हमने सौ साल पहले ही भारत की सत्ता पर कब्जा कर लिया है ! मतलब हमें बदलने की जरूरत नहीं है ! यह आत्मघाती विचार है ! क्योंकि भारतीय संसदीय जनतंत्र में विजय प्राप्त करना यही एकमात्र पैमाना नहीं है ! क्योंकि चुनाव जितना एक चालाकी से, हथकंडे अपनाने के बाद जीता हुआ जुआ है ! जैसे महाभारत में कौरवों ने पांडवों को चालाकी से दूत में हराया था !
उसे हमेशा के लिये लोगों की मान्यता मानने की भूल बंगाल में 35 सालों से ज्यादा समय राज्य में रही, कम्युनिस्ट पार्टी ने की है ! और देश के अन्य क्षेत्रों में 137 साल पुरानी कांग्रेस ने भी यही गलती की है ! भारत जैसे बहुआयामी संस्कृति के देश को एक रंग में ढालने का प्रयास भारत के अमिबा के जैसे टुकड़े करने मे परिवर्तित हो सकता है !
मैंने दो बार पाकिस्तान की यात्रा बाय रोड की है ! और पचहत्तर साल के पस्चात पाकिस्तान इस्लाम के नाम पर बनने के बावजूद पंजाबी, सिंधी, बलुच, पख्तुनवा, स्वात तथा अन्य एथनिक मसले सर चढकर बोल रहे है ! और इस्लाम धर्म के आधार पर पाकिस्तान का निर्माण होने के पच्चीस साल के भीतर भाषा के आधार पर बंगला देश नाम का एक अलग देश बन गया है ! क्या हिंदु धर्म के आधार पर सौ साल पहले से ही राजनीति करने वाले लोगों के दिमाग घास चरने के लिए गए हैं ? वह आग के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं ! आज राम के नाम पर या और कुछ भावनाओं को हवा देकर कुछ दिन और तथाकथित कामयाबी हासिल कर लेंगे ! लेकिन भारतीय एकता का क्या ?आए दिन संघ भारत की बहुआयामी संस्कृति को नष्ट करने की कृती कीए जा रहा है ! जो भारत के लिए बहुत ही चिंता का विषय है ! डॉ बाबा साहब अंबेडकरजी के 131 वे जन्मदिन के बहाने उन्होंने हिंदु धर्म का त्याग क्यो किया ? इतना भी आत्मनिरीक्षण करेंगे तो भी उनके प्रति सच्ची संवेदना प्रकट की है ऐसा मानूंगा !
डॉ सुरेश खैरनार 12 अप्रैल 2022, नागपुर