बिहार भारत का एक ऐसा राज्य है, जिसके दामन में एक ओर गौरवपूर्ण अतीत तो दूसरी ओर बाढ़, सुखाड़, नक्सलवाद और अपराध जैसे कई धब्बे भी हैं. बिहार को राजनीतिक स्तर पर देश में अपनी पहचान कायम करने वाले कई नेताओं की कर्मस्थली होने का भी गौरव भी प्राप्त है. लेकिन बिहार की जो वर्तमान स्थिति है वो उसके गौरवपूर्ण अतीत पर एक धब्बे की तरह है. झारखंड बंटवारे के बाद से बिहार में शुरू सत्ता संग्राम थमने का नाम नहीं ले रहा है. चुनावों में पूर्ण बहुमत अब कोई
मायने नहीं रखता है. वजह यह है कि बिहार में गठबंधन की सरकारें किसी प्रकार से अपने कार्यकाल कोे पूरा कर ले रही हैं. अगर विकास की बात करें, तो वह केवल चुनावी भाषण भर बन कर रह गया है. सरकार बनते ही केंद्र व राज्य सरकार के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो जाता है. प्रदेश में बेरोजगारी की समस्या एक गंभीर चुनौती बनती जा रही है. किसानों की समस्याओं का निदान नहीं हो पा रहा है. अपराध पर काबू पाना सरकार के लिए चुनौती साबित हो रही है. इसके बावजूद सरकार द्वारा ऑल इज वेल का रट लगाया जा रहा है. अब एक नजर बिहार की औद्योगिक इकाईयों की स्थिति पर डालते हैं.
भारत और नेपाल के सीमावर्ती जिले सीतामढ़ी, शिवहर, मधुबनी, दरभंगा, पुर्वी चंपारण, मुजफ्फरपुर व समस्तीपुर और अन्य जिलों में औद्योगिक विकास नेताओं का नारा और जनता का एक सपना बन कर रह गया है. नए औद्योगिक इकाईयों की स्थापना तो दूर पुराने को बचाने की दिशा में भी कारगर पहल शून्य साबित हो रही है. सीतामढ़ी जिले में वर्तमान में एकमात्र औद्योगिक इकाई रीगा चीनी मिल मौजूद है, जबकि दशकों पूर्व बिहार राज्य वस्त्र निगम द्वारा जूट फैक्ट्री की स्थापना को लेकर औद्योगिक क्षेत्र में भवन निर्माण तक की कवायद की गई, लेकिन किन्हीं वजहों से उक्त योजनाएं धरी की धरी रह गईं और सरकारी कोष से लाखों रुपये खर्च कर भवन निर्माण करा कर छोड़ दिया गया.
जानकारों का कहना है कि कर्मियों की बहाली तक कर ली गई थी, जिन्हें उक्त फैक्ट्री न खुलने की वजह से दूसरी जगह स्थानांतरित कर दिया गया. शहर के गोपाल चौक स्थित पेपर मिल की स्थापना को लेकर कवायद की गई, लेकिन यह भी योजना किन्हीं कारणों से कागजों तक सिमट कर रह गई.
सीतामढ़ी रेलवे स्टेशन परिसर में तत्कालीन केंद्रीय मंत्री लालू प्रसाद यादव ने स्लीपर कोच फैक्ट्री का शिलान्यास किया था, लेकिन राजनीतिक उथल-पुथल की वजह से यह योजना भी धरी की धरी रह गई. अगर हम देखें, तो रीगा चीनी मिल को छोड़कर कोई दूसरी औद्योगिक इकाई की स्थापना अब तक नहीं की जा सकी है.
पूर्व मंत्री रघुनाथ झा की पहल पर सीतामढ़ी से शिवहर को अलग कर स्वतंत्र जिले का दर्जा दे दिया गया, लेकिन अब तक शिवहर जिले में एक भी औद्योगिक इकाई की स्थापना नहीं हुई है. सीतामढ़ी जिला जहां दशकों तक बागमती व अघवारा समेत कई नदियों की बाढ़ से आने वाली तबाही को झेलता रहा है, तो वहीं शिवहर जिले में बागमती नदी दशकों तक तबाही मचाती रही है. नतीजतन तिरहुत प्रमंडल के इन दोनों ही जिलों में किसानों की स्थिति अब भी दयनीय बनी हुई है. रोजगार का कोई साधन न होने की वजह से लगातार बेरोजगारों की संख्या बढ़ती जा रही है. आर्थिक परिशानियों से तंग आकर युवा अपराध की तरफ बढ़ रहे हैं, जिससे सरकार और सरकारी तंत्र अंजान बना हुआ है. तिरहुत प्रमंडल के ही मुजफ्फरपुर जिले में केंद्र सरकार की भारत बैगन रेल इकाई और कांटी थर्मल पावर मौजूद है, तो वहीं मोतीपुर में एक चीनी मिल भी है. दरभंगा प्रमंडल के दरभंगा, मधुबनी व समस्तीपुर जिले का हाल भी औद्योगिक विकास की लिहाज से अच्छा नहीं है. मधुबनी व दरभंगा जिले में औद्योगिक इकाईयों की दरकार है. वहीं समस्तीपुर जिले में स्थापित इकाईयों पर ग्रहण लगा हुआ है. समस्तीपुर में दशकों पूर्व दो चीनी मिल की स्थापना की गई थी. एक समस्तीपुर शहर, तो दूसरा हसनपुर में. समस्तीपुर की चीनी मिल लगभग दो दशक पहले से बंद पड़ी है, जबकि हसनपुर की चीनी मिल अभी चल रही है. वहीं समस्तीपुर शहर के समीप जितवारपुर की अशोक पेपर मिल भी किन्हीं कारणों से दशकों पहले बंद कर दी गई, जिसका अब अस्तित्व भी समाप्त हो चुका है. अब केवल औद्योगिक इकाई रामेश्वर जूट मिल मुक्तापुर कैसे भी चल रही है जिसमें बताया जाता है कि लगभग साढ़े चार हजार श्रमिक काम करते हैं. इस जिले में केंद्र सरकार की एक इकाई रेल कारखाना भी मौजूद है, जबकि अन्य औद्योगिक इकाईयां जिले में बंद हो चुकी हैं या बंद होने की कगार पर हैं. पूर्वी चंपारण जिले की मोतिहारी व सुगौली चीनी मिले वर्षों से बंद पड़ी हुई हैं, जिसकी वजह से नजदीकी जिले के किसानों को भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है.
कुल मिलाकर अब बिहार में औद्योगिक इकाईयों के विकास और विस्तार की जरूरत है. अगर ऐसा होता है तो निश्चित रूप से आने वाले समय में न केवल संबंधित क्षेत्र के लोगों की आर्थिक तंगी पर रोक लगेगी, बल्कि अपराध और बेरोजगारी की समस्या भी दूर होगी. इसलिए सभी राजनीतिक दलों को दलगत राजनीति और जातिगत भावनाओं से ऊपर उठकर आगे आना होगा. जब तक औद्योगिक विकास में क्रांति नहीं लाई जाएगी, तब तक विकास के दावे का कोई मतलब नहीं है. केवल सड़क, नाला, पुल व पुलिया के निर्माण से बिहार के विकास का पैमाना तय नहीं किया जा सकता. इसलिए केंद्र और राज्य की सरकार को राजनीति को भुलाकर औद्योगिक विकास पर लगे ग्रहण को दूर करना होगा.
विकास / अमृता