संयुक्तराष्ट्र की एक ताजा रपट में कहा गया है कि दुनिया के विभिन्न देशों में 1 करोड़ 80 लाख भारतीय प्रवास कर रहे हैं। मैं यदि इनकी संख्या दो करोड़ कहूं तो ज्यादा सही होगा, क्योंकि फिजी से सूरिनाम तक फैले 200 देशों में भारतीय मूल के लाखों लोग पिछले सौ-डेढ़ सौ साल से वहीं के होकर रह गए हैं। जब से यातायात की सुविधाएं बढ़ी हैं और तकनीक के विकास ने दुनिया को छोटा कर दिया है, लगभग सभी देशों में प्रवासियों की संख्या में काफी बढ़ोतरी हो गई है। इस समय दुनिया के सब देशों में कुल मिलाकर 27 करोड़ विदेशी नागरिक रह रहे हैं। भारत के प्रवासियों की संख्या दुनिया में सबसे ज्यादा है। अब से 50 साल पहले जब मैं न्यूयार्क के कोलंबिया विश्वविद्यालय में पढ़ता था, तब न्यूयार्क जैसे बड़े शहर में मुझे कोई भारतीय कहीं दिख जाता था तो मेरी बाछें खिल जाती थीं। हिंदी में किसी से बात करने के लिए मैं तरस जाता था लेकिन अब अमेरिका के छोटे-मोटे गांवों में भी आप भारतीयों से टकरा सकते हैं। अबू धाबी और दुबई तो अब ऐसे लगते हैं, जैसे वे कोई भारतीय शहर ही हों। संयुक्त अरब अमारात में इस समय 35 लाख भारतीय हैं, अमेरिका में 27 लाख और सउदी अरब में 25 लाख ! आप दुनिया के किसी भी महाद्वीप में चले जाइए— आस्ट्रेलिया से अर्जेंटिना तक आपको भारतीय लोग कहीं भी दिख जाएंगे। पिछले 20 साल में एक करोड़ भारतीय विदेशों में जाकर बस गए हैं। अमेरिका, यूरोप और सुदूर पूर्वी देशों में तो प्रायः पढ़े-लिखे लोग जाते हैं और अरब देशों में मेहनतकश लोग ! सब मिलाकर ये भारतीय सालाना 5 लाख करोड़ रु. भारत भेजते हैं। हमारे केरल-जैसे प्रांतों की समृद्धि का श्रेय इसी को है। जो भारतीय विदेशों में रहते हैं, वे वहां की संस्कृति से पूरा ताल-मेल बिठाने की कोशिश करते हैं लेकिन भारतीय संस्कृति उनकी नस-नस में बसी होती है। वे भारत में नहीं रहते लेकिन भारत उनमें रहता है। वे उन देशों के लोगों के लिए बेहतर जीवन-पद्धति का अनुकरणीय आदर्श उपस्थित करते हैं। अमेरिका में तो यह माना जाता है कि वहां रहनेवाले भारतीय लोग समूह के रुप में सबसे अधिक सुशिक्षित, सुसंस्कृत और सम्पन्न वर्ग के लोग हैं। यदि ये भारतीय आज एकाएक भारत लौटने का फैसला कर लें तो अमेरिका को हृदयाघात (हार्ट अटेक) हो सकता है। अब से 20 साल पहले मैंने लिखा था कि वह दिन दूर नहीं जबकि अमेरिका का राष्ट्रपति कोई भारतीय मूल का व्यक्ति होगा। कमला हैरिस इस लक्ष्य के पास पहुंच चुकी हैं। दुनिया के लगभग एक दर्जन देशों में भारतमाता के बेटे-बेटियां सर्वोच्च पदों पर या उन तक पहुंच चुके हैं। हमें उन पर गर्व है।
(लेखक, भारतीय विदेश नीति परिषद के अध्यक्ष हैं)
डॉ. वेदप्रताप वैदिक