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विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के मोसूल में मारे गये भारतीय नागरिकों के खुलासे के बाद देश भर में हडकंप मचा हुआ है, मोसुल में मारे गए 39 भारतीय नागरिकों के परिवारों के ऊपर मानों पहाड़ टूट पड़ा हो, सभी परिवारों को आस थी के मोसूल में फंसे उनके परिवार के सदस्य जल्द ही घर लौटेंगे लेकिन सुषमा स्वराज के बयान के बाद इस मामले पर पूर्ण विराम लग चुका है.

दरअसल विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने मंगलवार को संसद में घोषणा की कि पूरे सबूत मिलने के बाद मैं कह सकती हूं कि सभी 39 लोगों की मौत हो चुकी है. सुषमा स्वराज ने संसद में यह भी बताया था कि सभी लापता भारतीय नागरिकों के डीएनए सैंपल लेकर उनका मिलान मोसूल में बरामद हुए शवों से किया गया था जिसके बाद यह बात निकल कर सामने आई कि वो शव भारतीय नागरिकों के ही थे.

पंजाब, बिहार, हिमाचल प्रदेश और पश्चिम बंगाल के ये 39 लोग इराक के निर्माण क्षेत्र में काम करने वाले भारतीय श्रमिक थे और साल 2014 में वहां के शहर मोसुल में इस्लामिक स्टेट के आतंकियों ने इनका अपहरण कर लिया था. इसके बाद से उनका कोई पता नहीं चला था। अब इनके पार्थ‍िव शरीर बादुश की एक पहाड़ी से हासिल हुए हैं.

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सरकार को लापता भारतीय नागरिकों के शवों को ढूँढने में इतना लंबा समय क्यों लग गया इस बात को भेई लेकर सरकार के ऊपर सवाल उठाए जा रहे हैं और मोसूल में मारे गये भारतीय नागरिकों के परिजन अब सुषमा स्वराज और मोदी सरकार से नाखुश भी हैं, परिजनों के मुताबिक़ सुषमा स्वराज ने उन सभी को आखिर तक धोखे में रखा था और उनको सही जानकारी भी मुहैय्या नहीं करवाई थी.

बता दें कि इराक में मारे गए 39 लोगों में से एक के परिजन मल्कित राम ने कहा कि मेरे भाई 2012 में इराक गए थे और वहां वह एक कारपेंटर का काम करते थे. हमने विदेश मंत्रालय से प्रूफ मांगा कि वह जिंदा हैं या मर गए। हम डीएनए टेस्ट की रिपोर्ट की मांग करते हैं. सुषमा स्वराज ने भी संसद में दिए गये अपने बयान में कहा था कि सभी भारतीय नागरिकों के शवों का डीएनए टेस्ट करवाया गया था ऐसे में उन्हें मारे गये नागरिकों के परिजनों को डीएनए रिपोर्ट सौंप देनी चाहिए.

 

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