भारतीय मीडिया ने हमेशा उन मुसलमान युवाको की गिरफ़्तारी को नज़रअंदाज़ किया जिन्हे लम्बे समय तक जेल मे रखा गया और बेबुनियाद कारणों से गिरफ्तार किया गया। अदालतो मे उन्हें सबूतों की कमी होने की वजह से उन्हें रिहा कर दिया गया। जब भी मुस्लिम युवाको को झूठे आरोपों मे फ़ंसाया गया है तो मीडिया ने इसे बड़ी खभर बना कर पेश किया है। फ़र्ज़ी हुबली आतंकी साज़िश मामले मे 17 आरोपियों की रिहाई के बारे मे एक समाचार पोर्टल मे मई 25,2015 को एक रिपोर्ट प्रकाशित की गई थी। 2008 मे इन बेकसूर मुस्लिम युवाको की गिरफ़्तारी एक बड़ी खबर थी। मीडिया ने इन युवाको की गिरफ़्तारी पर शोर मचाया और उन्हें आतंकवादी ठहरा दिया।
हालाँकि अप्रैल 2015 मे हुबली कोर्ट ने इन 17 निर्दोष वियक्तियों को रिहा कर दिया सबूत की कमी होने के कारण पर मीडिया ने इस बड़ी खबर को एक छोटी खबर के रूप मे प्रस्तुत किया। 28 मई 1994 को बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद महारष्ट्र मे भुसावल से 12 मुस्लिम युवाको को झूठे आरोपों के तहत ग़िरफ़्तार किया गया था की वो बाबरी मस्जिद का बदला लेने के लिया आतंकवाद की साज़िश कर रहे है।
गुजरात पुलिस ने खुद को फ़साने के लिए मोहम्मद सलीम को तीन विकल्प दिए -घोडरा ट्रैन जलने के मामले मे ,हरेंन पंड्या की हत्या का मामला या अक्षर -धाम आतंकी का मामला। सलीम की गिरफ़्तारी के समय उनकी बेटी चार महीने की थी और जब वो रिहा हुए तो वो 10 साल की लड़की थी। पुलिस के साथ साथ मीडिया भी उन निर्दोष मुस्लिम युवाको के पीड़ा के लिए ज़िम्मेदार है जिन्हे ग़िरफ़्तार किया गया था और उनके खिलाफ़ नकली आतंकी आरोपों के कारण वर्षो तक सलाखों के पीछे रखा गया था।