नास्तिकों के लिए यह शीर्षक नाक भौं सिकोड़ने वाला है । जबकि पुराण कथाओं से लेकर वर्तमान तक कुछ ऐसा सत्य है जिसे आपके लिए नकार सकना उसे इतना आसान नहीं । नास्तिक भाग्य , दुर्भाग्य, सौभाग्य को मानव स्वभाव की कपोल कल्पना मानता है । भले डाक्टर नामवर सिंह अपने अंतिम दिनों में कहने लगे ‘जैसा भगवान चाहे’ या डाक्टर रामविलास शर्मा और निर्मल वर्मा जैसों का अंतिम दिनों में हिंदुत्व (आज की विवादित अवधारणा नहीं) की ओर झुकाव दिखाई पड़ता हो ।
ऐसे में महाभारत का द्रौपदी चीरहरण का प्रसंग हमें याद पड़ता है । जहां सभी बड़े योद्धा और कद्दावर बेबस और लाचार थे ।आप इसके कई मायने निकाल सकते हैं । पर सत्य यह है कि ऐसा होना था, हो हुआ । सीधे मुद्दे पर आएं तो वर्तमान में देश एक भीषण संकट से गुजर रहा है । अमानवीयता की हदें पार हो रही हैं । एक ओर राजा है तो दूसरी ओर अपनी अंतड़ियां निकाले भूख के लिए भीख मांगता देश का आधा हिस्सा खड़ा है । राजा और सबसे निर्बल शख्स के बीच देश की राजनीति फंसी हुई है । कुछ भी किसी से अदृश्य नहीं है । देश को राजा ने अपना जमूरा मान और ठान लिया है । वह जैसा खेल करना चाहता है , कर रहा है । इस अनोखे सत्य की कल्पना क्या कभी आपने की थी ? ऐसा लगने लगा है जैसे हर कोई बेबस और लाचार है । लग तो ऐसा रहा है कि जैसे राजा ने समय के साथ मिलकर इंसान के भीतर की आग को बहुत आगे समय तक के लिए शांत कर दिया है। महंगाई को झेलते हुए उसके बीच से एक जिन्न की भांति हम प्रसन्न हैं । जिन्हें वर्तमान में आवाज बुलंद करनी चाहिए वे योद्धा और कद्दावर गीदड़ साबित हो रहे हैं । तो क्या यह सब नियति का खेल है । अधिकांशतः पोंगा पंडितों से भरा यह देश दुर्भाग्य और सौभाग्य के खेल में उलझा है । अगर देश की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी कांग्रेस अपने होने, न होने या अस्तित्व के द्वंद्व से उबर नहीं पा रही हो और सत्ता पक्ष निरंतर निरंकुश होता जा रहा हो , सजग नागरिक एक दूसरे का मुंह तक रहा हो तो इस परिदृश्य को क्या नाम देंगे ।
क्या देश यूं ही अपने दुर्भाग्य से खेलता हुआ नष्ट हो जाएगा । जवाब हो सकता है हां भी और नहीं भी । नष्ट हो जाने का मतलब मिट जाना नहीं । बहुत से लोग हैं जो उम्मीदों में जीते हैं । वे कुछ नहीं करते हुए भी नहीं स्वीकार सकते कि सब कुछ खत्म हो जाएगा। ऐसे लोग ज्यादातर अतीत में जीते हैं। अतीत के राजनीतिक इतिहास को याद करते हैं । उनका तर्क है कांग्रेस बार बार गिर कर उठी है । यह कहते हुए वे वर्तमान की राजनीति और मोदी के मोदीत्व को बिसरा देते हैं । आजादी के बाद से आज जैसा माहौल कभी नहीं हुआ । यह ऐसा माहौल है जहां देश के बरक्स राजा के साथ पूरा कारपोरेट जगत, प्रमुख मीडिया, हिंदू संगठनों की तमाम सेनाएं, आम इंसान को भटकाने और उसके दिमाग को दिग्भ्रमित करने के लिए पूरा आईटी सेल और आरएसएस जैसा संगठन खड़ा हो तो बाकी बचा क्या ?
दुख इस बात का भी है कि देश के प्रमुख मीडिया के बरक्स खड़ा हमारा सोशल मीडिया भी उसी भेड़ चाल का शिकार हो रहा है । सोशल मीडिया के लोग स्वयं से पूछें कि वे जो कर रहे हैं उससे समाज में कैसी चेतना का संचार हो रहा है । इनके पास तो चर्चा के लिए मुद्दे तक नहीं होते । ‘बिल्ली के भाग से छींका फूटा’ वाली कहावत चरितार्थ होती है तो प्रशांत किशोर का मुद्दा मिलता है फिर तेजिंदर सिंह बग्गा का मुद्दा मिलता है फिर ज्ञान वापी मस्जिद का मुद्दा मिल जाता है । क्या दे रहे हैं ये लोग । कौन सा समाज जाग्रत कर रहे हैं । अभी एक इंटरव्यू में यशवंत सिन्हा ने कहा अपने एसी ड्राइंग रूम से बाहर न निकलना और वहीं बैठे बैठे ट्वीट पर ट्वीट यही हकीकत है उनकी । इनमें मीडिया के लोग भी आते हैं, सोशल वर्कर, नेता , बुद्धिजीवी और विपक्ष के तमाम लोग शामिल हैं । ऐसे में क्या आपको द्रौपदी चीरहरण का दृश्य आज के संदर्भ में याद नहीं आता ।
यह दीगर है कि मोदी अपने मिशन में कामयाब नहीं होंगे । उनका मिशन देश को ‘हिंदू राष्ट्र’ में तब्दील कर देना भर है । वे अपने मिशन के बहुत करीब भी पहुंच सकते हैं पर भारत की प्रकृति किसी भी तानाशाह देश से भिन्न है । संभव है मारकाट बड़े पैमाने पर हो, गृहयुद्ध की सी स्थितियां भी बनें पर करवट बदलते देश का सौभाग्य भी यह कहता है कि यही देश है जो तानाशाह का मतिभ्रम दूर करता है । जिस दिन कांग्रेस की तस्वीर बदली उसी दिन समझिए देश की तस्वीर भी बदलेगी । फिलहाल तो देश अपने दुर्भाग्य से खेल रहा है । और हम सब सोशल मीडिया से । मोदी की सत्ता देश से बड़ा छल कर रही है किसी दिन बर्बादी का विस्फोट होगा । फिलहाल तो संसद भी सूनी है और सड़कें भी। यही नियति का खेल है । नास्तिक होना क्या है । नास्तिक तो भगत सिंह भी थे पर उनके सपनों की क्रांति तो आज तक मुंह जोए खड़ी है । हम चाहे कैसी भी दलीलें दे लें। सत्य आखिर सत्य ही रहता है । इससे पहले कि पूरा विपक्ष और जागरूक कहे जाने वाले लोग नपुंसकता के शिकार हों , घर से निकल कर 180 डिग्री का मोड़ लेना ही पड़ेगा। दुर्भाग्य से लड़ने का यही एक तरीका है ।
देश अपने दुर्भाग्य से खेल रहा है !! ….
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