डॉ राम मनोहर लोहियाजीने मौलाना अबुल कलाम आज़ादजी की किताब इंडिया विन्स फ्रीडम की समीक्षा करते हुए लगभग 95 पन्नो की किताब लिखी है !और हालही में लोकभारती प्रकाशन इलाहबाद ने 2012 में इस किताब का प्रकाशन किया है ! और अभी मै 2017 के दसवें संस्करण की कापी लेकर यह लेख लिखने की कोशिश कर रहा हूँ !
मै उनकी भुमिका से ही शुरूआत कर रहा हूँ !
मौलाना आजाद कृत ‘इंडिया विन्स फ्रीडम ‘ के परीक्षण की जो बात मेरे मन में उठी, उसे जब मैंने लिखना शुरू किया, तो वह देश के विभाजन का एक नया वृतांत बन गया ! यह वृतांत हो सकता है, बाह्य रूप में, संगतवार व कालक्रमवार न हो, जैसा कि दुसरे लोग इसे चाहते, लेकिन कदाचित यह अधिक सजीव व वस्तुनिष्ठ बन पडा है ! छपाई के दौरान इसके प्रूफ देखते समय इसमें स्पष्ट हुए दो लक्ष्यों के प्रति मै सतर्क हुआ ! एक, गलतियों और झूठे तथ्यों को जड से धोना और कुछ विशेष घटनाओं और सत्य के कुछ पहलुओं को उजागर करना और दुसरा, उन मुल कारणों को रेखांकित करना जिनके कारण विभाजन हुआ ! इन कारणों में मैंने मुख्य-आठ कारण गिनाए है !
एक ब्रितानी कपट, दो कांग्रेस नेतृत्व का उतारवय, तीन हिंदू-मुस्लिम दंगो की प्रत्यक्ष परिस्थिति, चार जनता मे दृढता और सामर्थ्य का अभाव, पाँच, गाँधीजी की अहिंसा, छः,मुस्लिम लीग की फुटनीति , सात, आये हुए अवसरों से लाभ उठा सकने की असमर्थता और आठ,हिंदू अहंकार !
श्री राजगोपालाचारी अथवा कम्यूनिस्टो की विभाजन समर्थक नीति और विभाजन के विरोध में कट्टर हिंदूवादी या दक्षिण पंथी राष्ट्रवादी नीति को विशेष महत्व देने की आवश्यकता नहीं है ! ये सभी मौलिक महत्व के नहीं थे ! ये सभी गंभीर शक्तियो के निरर्थक और महत्वहीन अभिव्यक्ति के प्रतिक थे !
उदाहरणार्थ विभाजन के लिए कट्टर हिंदूवाद का विरोध अर्थहीन था , क्योंकि देश को विभाजित करने वाली प्रमुख शक्तियों मे निश्चित रूप से कट्टर हिंदूवाद भी एक शक्ति थी ! वह उसी तरह थी, जैसे, हत्यारा, हत्या करने के बाद अपने गुनाह मानने से भागे !
इस संबंध में कोई भुल या गलती ना हो ! अखंड भारत के लिए सबसे अधिक व उच्च स्वर में नारा लगाने वाले, वर्तमान जनसंघ (बीजेपी)और उसके पूर्व पक्षपाती जो हिन्दुवाद की भावना के अहिन्दू तत्व के थे, उन्होंने ब्रिटिश और मुस्लिम लीग की देश विभाजन मे सहायता की, यदि उनकी नियत को नहीं बल्कि उनके कामों के नतीजों को देखा जाए तो यह स्पष्ट हो जाएगा ! एक राष्ट्र के अंतर्गत मुसलमानों को हिंदूओ के नजदीक लाने के संबंध में उन्होंने कुछ नहीं किया ! उन्हें पृथक रखने के लिए लगभग सब कुछ किया !
ऐसी पृथकता ही विभाजन का मुल-कारण है ! पृथकता की नीति को अंगीकार करना और साथ में ही अखंड भारत की कल्पना करना अपने आप में ही घोर आत्मवंचना है, यदि हम मान ले की इमानदार लोग है ! उनके कृत्यों को युद्ध के संदर्भ में अर्थ और अभिप्राय माना जाएगा जब कि वे उन्हें दबाने की शक्ति रखते हैं ,जिन्हें पृथक करते हैं ! ऐसा युद्ध असंभव है, कम से कम हमारी शताब्दी के लिए और यदि संभव हुआ तो इसका कारण घोषणा न होगी ! युद्ध के बिना, अखंड भारत और हिंदू-मुस्लिम पृथकता की दो कल्पनाओ का एकीकरण,विभाजन की नीति को समर्थन और पाकिस्तान को संकटकालीन सहायता देने जैसा ही है !
भारत के मुसलमानों के विरोधी पाकिस्तान के मित्र है ! जनसंघी (बीजेपी)और हिंदू नीति के सभी अखंड भारतवादी वस्तुतः पाकिस्तान के सहायक है !
मै एक असली अखंड भारतीय हूँ ! मुझे विभाजन मान्य नहीं है ! विभाजन की सीमारेखा के दोनों ओर ऐसे लाखों लोग होंगे, लेकिन उन्हें केवल हिंदू या केवल मुसलमान रहने से अपने आप को मुक्त करना होगा, तभी अखंड भारत की आकांक्षा के प्रति वे सच्चे रह सकेंगे !
दक्षिण राष्ट्रवादिता की दो धाराएँ हैं, एक धारा ने विभाजन के विचार समर्थन दिया, जबकि दूसरे ने इसका विरोध किया ! जब यह घटनाए घटी, तब इनकी नाराज या खुश करने की शक्ति कम न थी, लेकिन यह घटनाए फलहीन थी ! महत्वहीन ! दक्षिण राष्ट्रवादिता केवल शाब्दिक या शब्दहीन विरोध कर सकती थी, इसमें सक्रिय विरोध करने की ताकत न थी !
अतः इसका विरोध समर्पण अथवा राष्ट्रीयता की मुलधारा से दूर होने मे मिट गया ! इसी तरह दक्षिण राष्ट्रवादी विचार, जिसने विभाजन में मदद की, उसने थोड़ी भिन्न भुमिका भी अदा की, इस सत्य के बावजूद कि इसके भाषणो से असली राष्ट्रवादी बुरी तरह से उब चुके थे ! इस भाषणबाजी मे प्रभाव की शक्ति न थी !
दोष इसमें इसी का न था , भारतीय जनता व भारतीय राष्ट्रवाद की पलायन वृत्ती, पंगुत्व, भग्नता, और आत्मशक्ति की कमी का भी दोष था !
दक्षिण राष्ट्रवादीता ने विभाजन का समर्थन और विरोध दोनों किया, यह उनके मुल रूक्ष की निष्पर्ण शाखाएँ थी ! मुझे कभी-कभी आश्चर्य होता है कि क्या देशद्रोही लोग भी कभी इतिहास बनाने मे कोई मौलिक भुमिका अदा कर सकते हैं ! ऐसे लोग तिरस्करणिय होते हैं, इसमें कोई संशय नहीं, लेकिन वे क्या महत्वपूर्ण लोग है, मुझे इसमें शक है ! ऐसे देशद्रोहियों के काम अर्थहीन होंगे, यदि उन्हें पूरे समाज के गुप्त विश्वासघात का सहयोग न मिले !(यह दिसंबर 1960 मे प्रकाशित मुल अंग्रेजी पुस्तक गिल्टी मेन ऑफ इंडियाज पार्टीशन के प्रथम संस्करण की भूमिका का हिंदी अनुवाद है !)
कल से 14,अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीजी ने अखंड भारत के विखंडित होने का दिवस मनाने की घोषणा की है ! और आज के लाल किले से राष्ट्र के नाम संदेश में भी उन्होंने इसे दोहराया है ! मुझे आश्चर्य हुआ कि प्रधानमंत्री बनने के बाद अपने प्रथम पंद्रह अगस्त के संबोधन में 125 करोड की टीम इंडिया की बात करने वाले प्रधानमंत्री को इन सात साल से भारत के विखंडित होने का दिवस मनाने की घोषणा !
करने के पहले वह डॉ राम मनोहर लोहिया के भारत विभाजन के गुनाहगार कौन ? यह किताब पढे ,और जिस संघ के उम्र के सत्रह साल की उम्र में वह स्वयंसेवक बने थे ! उसकी और उसीके जैसे हिंदू की राजनीति करने वाले और मुसलमानों की राजनीति करने वाले दोनों तत्वों की भुमिका क्या रही ? यह प्रभु रामचंद्र जी की शपथ लेकर ही ! सोच कर दोबारा सोचे ! क्योंकि अब आगे आने वाले छ राज्यों के चुनाव और बाद मे लोकसभा चुनाव को लेकर चुनाव के लिए अब और कोई मुद्दा नहीं ,और आम लोगों के लिए सात साल से भारत के सत्ताधारी बनने के बाद आप ने क्या किया है ? इस सवाल से ध्यान हटाने के लिए इस तरह के सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की राजनीति बार-बार कितनी काम आयेगी ? यह भी सोचना !
क्योंकि किसी को भी एक बार बेवकुफ बनाया जा सकता है, लेकिन बार-बार नहीं ! गत तीस साल से भी ज्यादा समय हो रहा है ! भारत के मुख्य सवालों से ध्यान हटाने के लिए ! मंदिर-मस्जिद की राजनीति करने वाले ! लोगों को आज भारत मे दोबारा सत्ता में आने के बाद ,भारत के आम लोगों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए कुछ भी न करने वाले ! सिर्फ और सिर्फ कारपोरेट घरानों की तिजोरियां भरने के लिए भारत के सभी पुराने कानूनों को बदलनेका काम कर रहे हैं ! जिसकी मिसाल संसद के,
अभी-अभी खत्म हुए मानसून सेशन में इक्कीस दिन में बीस संशोधन बील ! विरोधियों के अनुपस्थिति का फायदा उठाकर पास करवा लिए ! और उपरसे आरोप कर रहे कि, विरोधी दल संसदीय लोकतंत्र का अपमान कर रहा है ! और खुद उसी विरोधियोकी अनुपस्थिति का फायदा उठाकर हर रोज एक बील के हिसाब से बीस बील बगैर किसी बहस से पास करवाना कौनसे संसदीय लोकतंत्र का बहुमान मे आता है ? वह भी सिर्फ इक्कीस दिन के कार्यकाल में ! और कह रहे हैं कि संसद नहीं चलने दी !
बिल्कुल आज से नब्बे साल पहले जर्मनी की संसद का इस्तेमाल इसी तरह करने के उदाहरण याद आ रहे हैं ! संसद में विरोधी दलों के लिए किसी भी तरह का स्थान नहीं दिखाई देता है ! फिर इसे बनाना रिपब्लिक की तरह सिर्फ़ अपने मन मर्जी से ही चलाने के लिए, मार्शलो का इस्तेमाल कर के और देश के महत्वपूर्णक्षेत्र कृषी और जासूसी जैसे संगिन मुद्दोपर बहस करने की मांग कौनसी गलत मांगे थी ?
भारत विभाजन जैसे पचहत्तर साल पुरानी बात को आज अचानक आपको बटवारे की याद कैसे आई ? और आई है तो भारत के बटवारे के कारण मे धर्म के आधार पर राष्ट्र की मांग करने वाले लोगों मे आपका अपना संघ परिवार भी शामिल था ! सावरकर-गोलवलकर के हिंदुत्ववादी विचारधारा ! और मुस्लिम लीग की मुसलमानों के लिए अलग राष्ट्र की मांग करने के लिए एक ही कारण है ! धर्म के नाम पर राजनीति करने वाले पाकिस्तान के पच्चीस साल के भीतर दो टुकड़े हो गए हैं ! और सिंध, बलूचिस्तान, स्वात, फेडरल एडमिनिस्ट्रेट ट्रायबल एरिया (फटा) के लोगों द्वारा लगातार अपने स्वतंत्रता के लिए लडाई लढी जा रही हैं !
और उसीके बगल में अफगानिस्तान मे तालिबानी राजनीति का दोहा की बैठक में विरोध करने का पाखंड नहीं करना चाहिए ! क्योंकि भारत मे हिंदुत्व के नाम पर राजनीति करने का नतीजा हिंदू तालिबान को हवा देने की बात है ! और इसीलिये अभिनव भारत, सनातन संस्था, हिंदू मुन्नानी, बजरंग दल, हिंदू वाहिनी जैसे संगठनों को प्रश्रय देने वाले और मुसलमानों की तालिबान, इसिस जैसे बर्बरता पूर्ण राजनीति करने वाले लोगों के भीतर क्या फर्क है ?
अगर भारत के विखंडित होने का इतना ही गम है ! तो भारत के बटवारे के कारण मे धर्म के नाम पर राजनीति करने का नतीजा ही मुख्य कारण रहा है ! इतिहास की जुगाली करने से नहीं चलेगा ,इतिहास मे की गई गलतियाँ नहीं दोहराना यही सही उपाय है ! अन्यथा आज बटवारे के समय से ज्यादा मुसलमान भारत मे रह रहे हैं ! पच्चीस से पैतीस करोड़ आबादी है ! और उसे लगातार दंगा, माँलिंचिग, लव-जेहाद, गोहत्या, धर्म परिवर्तन जैसे भावनाओं को भड़काने वाले मुद्दों को हवा देकर इतनी बड़ी आबादी को असुरक्षित मानसिकता में डालने का मतलब ,और एक बटवारे की तरफ उकसाने की बात है ! कोई भी इन्सान बहुत लंबे समय तक जिल्लत भरी, अपमानित जिंदगी जीना नहीं चाहता है ! इसलिए अगर देर से ही सही आपको बटवारे की याद आई है ! तो भारत के बटवारे के असली गुनाहगार कौन है यह डॉ राम मनोहर लोहिया की किताब जरूर देखें क्योंकि डॉ राम मनोहर लोहिया के हम भी अनुयायी हैं ऐसी बात तो आप लोग भी करते रहते हो ! तो लोहिया की सिर्फ दो किताबें एक भारत विभाजन के गुनाहगार 95 पन्नो की ! और दुसरी हिंदू बनाम हिंदू चालीस पन्ने की ! जरूर पढिए ! तो भारत के बटवारे के कारण धर्म के नाम पर राजनीति करने का नतीजा है ! यह बात समझने के लिए पर्याप्त है !
हमारे तो राष्ट्र सेवा दल के कारण इन किताबों का अध्ययन उम्र के पंद्रह साल के भी कम उम्र में करने के कारण हिंदूओ का हिंदुस्थान जैसे बटवारे के कारक नारे ! हा नारे जो हमें संघ की शाखा में देकर खेल सिखाया जाता था सत्तर के दशक में ! (जो मैंने उम्र के बारह साल मे संघ की शाखा में देकर, शाखा से घर लौटते हुए जानबूझकर मुस्लिम मोहल्ले में जाकर पाकिस्तानी और मा-बहनों को लेकर गाली गलोज करने जैसा घृणास्पद काम करने का पछतावा जिंदगी भर के लिए मुझे हो रहा है !)
हिंदु धर्म के 85 % से भी अधिक लोगों की पिछडी जातियों का शुमार होने के बावजूद उनकी प्रगति के लिए जो सभी सभ्य देश अपने देश के सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और अन्य कारणों से पिछड़े वर्ग के लोगों को अफर्मेटिव एक्शन डबल ऐ ! के तहत रिजर्वेशन देना अपना नैतिक और संविधानिक कर्तव्य समझते हुए रिजर्वेशन देते हैं ! हम तो हजारों सालों की उचनिच की परंपरा वाले देश का कितना बड़ा बॅकलाॅग है ? जिसे भरने के लिए आजादी के पचहत्तर साल हो रहे हैं ! और भारत के पिछडी जातियों के लिए आरक्षण का प्रावधान करते हुए कंजूसी बरत रहे ! 85% प्रतिशत नहीं देते हुए सिर्फ 50% प्रतिशत मे निपटा रहे ! जो की अन्य संशोधन कर सकते लेकिन रिजर्वेशन का प्रावधान पचाससे ज्यादा क्यों नहीं है ? जो की भारत की आबादी के विपरित निर्णय है जिसे बदलने की जगह राज्यों के माथे मार दिया !
भारत मे तो हजारों सालों की उचनिच की बात ने भारत के पच्याशी प्रतिशत जनसंख्या को पिछडी और अस्पृश्यता जैसे घृणास्पद प्रथाओं के कारण कभी भी उन्हें बराबरी का दर्जा नहीं दिया है ! और अभी संसद में पिछडी जातियों के लिए आरक्षण का प्रावधान करते हुए उसी पचास प्रतिशत मे सबको और घुसाकर आपसमेही लडवाना कौनसे सामाजिक न्याय मे आता है ? जब कि पिछडी जातियों का अनुपात भारत की जनसंख्या मे सीधा-सीधा 85 % से भी अधिक होने के बावजूद ,पचास प्रतिशत रिजर्वेशन मे डाल कर ,भारत मे जाती-जाती में कलह निर्माण करना कौनसे न्याय मे आता है ?
वैसे भी गत सात सालोंसे सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम एक-एक करके प्रायवेट मास्टर्स को बेचकर सरकारी नौकरी की उपलब्धता कम की जा रही है ! तो भारत या राज्य सरकारों की नौकरी देने की क्षमता क्या रह जाती है ? वैसे भी सरकार की नौकरी दो प्रतिशत से अधिक देने की क्षमता नहीं है ! तो कार्पोरेट्स मे भी रिजर्वेशन का प्रावधान करना चाहिए ! लेकिन कार्पोरेट्स के फायदे के अलावा आप की सरकार एक भी निर्णय आम लोगों के हित में न लेते हुए उसे भावनात्मक रूप से मंदिर-मस्जिद, गोहत्या, लव-जेहाद, धर्म परिवर्तन जैसे भावनाओं को भड़काने वाले मुद्दों मे उलझाकार रखना चाहते हो ! और अब तो माॅबलिंचिग जैसे बर्बरतापूर्ण कारनामे करने के लिए लोगों को आपसमेही लडवाना कौनसे सामाजिक न्याय मे आता है ?
चहत्तर साल पहले देश विभाजन के कारणों को देखिये, फिर विभाजन के नाम पर राजनीति करने का अगला कदम उठाइए ! अन्यथा यह मुद्दा परस्पर पूरक (अंग्रेजी में रेसीप्रोकल) होने के कारण आप के दल और मातृसंगठन को सौ साल का हिसाब देना होगा !