भारत-पाकिस्तान के जिस मुक़ाबले पर पूरी दुनिया की निगाहें रहती हैं, उसकी मेजबानी का मा़ैका हिमाचल प्रदेश के हाथों से फिसल गया. यह मैच धौलाधार के पहाड़ों की गोद में स्थित खूबसूरत अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम में नहीं हो सका. कोलकाता के ईडन गार्डन को यह मैच कराने का मा़ैका मिल गया. धर्मशाला से इस हाई वोल्टेज मैच के शिफ्ट होने के कई कारण रहे.
कोई इसे शहीदों के परिवारों एवं पूर्व सैनिकों का विरोध मान रहा है, तो कोई हिमाचल सरकार की मजबूरी. लेकिन, जानकार इसकी पीछे की मूल वजह सियासी नफ़ा-नुक़सान मान रहे हैं. हिमाचल को इससे क्या ऩुकसान या फ़ायदा हुआ, यह तो बाद में पता चलेगा, लेकिन नेताओं को इससे क्या मिला, यह समझने के लिए प्रदेश की सियासी और क्रिकेट पृष्ठभूमि पर भी नज़र डालना ज़रूरी है.
हिमाचल में मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह और पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल वर्तमान में दो सियासी ध्रुव हैं. बीसीसीआई के सचिव एवं एचपीसीए के अध्यक्ष सांसद अनुराग ठाकुर धूमल के बेटे हैं. भाजयुमो के राष्ट्रीय अध्यक्ष अनुराग ठाकुर की राजनीति में एंट्री क्रिकेट के माध्यम से हुई. एचपीसीए का अध्यक्ष बनने के बाद हिमाचल में उन्होंने क्रिकेट को नई दिशा दी, यह उनके राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी भी मानते हैं. धर्मशाला स्टेडियम के रूप में हिमाचल को पहला अंतरराष्ट्रीय स्तर का मैदान दिलाने में भी उनकी अहम भूमिका रही है.
2008 में पहली बार सांसद बनने से पूर्व वह क्रिकेट के माध्यम से लोगों के सामने आए थे. तत्कालीन मुख्यमंत्री धूमल के बेटे होने के अलावा क्रिकेट के क्षेत्र में काम का भी उन्हें राजनीति में लाभ मिला. एचपीसीए के माध्यम से बीसीसीआई में अहम ओहदा पाने वाले अनुराग ठाकुर को एक तरह से क्रिकेट ने ही नई पहचान दी.
2012 में प्रदेश में कांग्रेस के सत्तारूढ़ होने के बाद मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने एचपीसीए की कई गड़बड़ियों का हवाला देते हुए धर्मशाला क्रिकेट स्टेडियम में रातोंरात ताले लगवा दिए थे.
एचपीसीए के ख़िलाफ़ विजिलेंस की जांच बैठा दी गई. कई मामलों की जांच चल रही है. मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह सार्वजनिक तौर पर कहते रहे हैं कि धूमल परिवार ने एचपीसीए को अपनी जागीर बना लिया है. सूबे में क्रिकेट का पूरा साम्राज्य भ्रष्टाचार की नींव पर खड़ा है. बीसीसीआई के सचिव अनुराग ठाकुर इस बार टी-20 वर्ल्ड कप के आठ मैच धर्मशाला में लेकर आए थे, जिसमें भारत-पाक म़ुकाबला भी शामिल था.
धर्मशाला में भारत-पाक मैच के विरोध में जैसे ही कुछ स्वर उठे, मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह शहीदों के परिवारीजनों की भावनाओं का हवाला देते हुए मैच के ख़िलाफ़ खड़े हो गए. बेशक, पठानकोट आतंकी हमले के शहीदों के परिवारीजनों का विरोध वाजिब था, लेकिन उनसे पहले मैच के विरोध में उतरे कुछ अन्य लोगों के भी सियासी हित रहे हैं. हिमाचल में पूर्व सैनिकों का एक बड़ा वोट बैंक है. कभी वीरभद्र सिंह के कट्टर विरोधी रहे मेजर विजय सिंह मनकोटिया की अगुवाई में मैच का विरोध कर रही पूर्व सैनिक लीग के साथ सरकार पूरी तरह खड़ी रही.
मुख्यमंत्री ने साफ़ कह दिया कि विरोध कर रहे पूर्व सैनिकों पर सरकार मैच के दौरान भी लाठी नहीं चलाएगी. उधर भाजपा की ओर से धर्मशाला में भारत-पाक मैच का सबसे पहला विरोध पूर्व मुख्यमंत्री एवं सांसद शांता कुमार ने किया. हिमाचल भाजपा में शांता और धूमल प्रतिद्वंद्वी रहे हैं. ऐसे में क्रिकेट के पंखों पर हर कोई सियासी उड़ान भरता दिख रहा है.
गड़बड़ा गया अर्थशास्त्र
भारत-पाकिस्तान के बीच होने वाले क्रिकेट मैच के कोलकाता शिफ्ट हो जाने से हिमाचल को क़रीब पांच सौ करोड़ रुपये का ऩुकसान हुआ. धर्मशाला में मैच होता, तो हिमाचल प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन और राज्य सरकार, दोनों का भला होता. मैच टलने से अनुराग का ऩुकसान हुआ और वीरभद्र सिंह का भी. मैच से अनुराग ठाकुर का रुतबा बढ़ता, साथ ही एचपीसीए के खजाने में करोड़ों की रकम भी आ जाती. पर्वतीय प्रदेश में मैच देखने का लोगों में जुनून था, जिसका सस्ती सियासत ने पटाक्षेप कर दिया.
जानकार बताते हैं कि मैच के दौरान धर्मशाला स्टेडियम के अंदर क़रीब 25 लाख रुपये का मुनाफ़ा खाद्य एवं शीतल पेय पदार्थों की बिक्री से होता. वहीं मैच के टीवी राइट्स की कमाई बीसीसीआई के खाते में जाती. बाद में उसका 15 फ़ीसद एचपीसीए को इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास के लिए मिल जाता. बीसीसीआई को विज्ञापनों और टीवी चैनल राइट्स से प्रति मैच 20 से 25 करोड़ रुपये की कमाई होती. इसके बदले बीसीसीआई खिलाड़ियों की मैच फीस और आने-जाने का खर्च उठाती. होटल में खिलाड़ियों के रहने-खाने का खर्च भी बीसीसीआई वहन करती, जबकि एचपीसीए को मात्र स्टेडियम के भीतर के इंतजाम देखने पड़ते.
एचपीसीए को मैच टिकटों की बिक्री से भी कमाई होती. लेकिन, आख़िरकार वही हुआ, जिसका खेल प्रेमियों एवं व्यवसायियों को डर था. मैच को धर्मशाला से कोलकाता शिफ्ट किए जाने से कारोबारियों को भी करोड़ों रुपये का ऩुकसान हुआ. धर्मशाला अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम में भारत-पाकिस्तान मैच को हरी झंडी दिलाने के लिए अनुराग ठाकुर ने खासी मशक्कत की थी, जो प्रदेश की राजनीति के आगे बौनी साबित हुई.
मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने पहले भारत-पाक मैच का ज़ोर-शोर से स्वागत किया, लेकिन फिर अपने तेवर बदल लिए, जिससे प्रदेश में मैच का विरोध बढ़ता गया. स्थिति यह बनी कि पाकिस्तान से एक दल सुरक्षा इंतजामों का जायजा लेने धर्मशाला आ पहुंचा, जिसके बाद मैच हिमाचल के हाथों से फिसल कर कोलकाता की झोली में चला गया. इस मैच का सीधा प्रसारण विश्व के 400 देशों में होना था. धर्मशाला होटल एसोसिएशन ने मैच शिफ्ट होने पर गहरी नाराज़गी प्रकट की. एसोसिएशन का कहना है कि इससे पर्यटन व्यवसाय को खासा ऩुकसान हुआ और हिमाचल की साख पर भी दाग लग गया.