महाराष्ट्र के सातारा जिले के नायगाव नाम के देहांत में 3 जनवरी 1831 में जन्मे सावित्रीबाई फुले का आज 191 वा जन्म दिन है !  पुणे के पेशवाई के समाप्त होने के सिर्फ तेरहवें साल में सावित्रीबाई का और उनके पति महात्मा ज्योतिबा फुले का जन्म और शादी यह समस्त भारतीय संस्कृति के विकास तथा सामाजिक क्रांति के लिए बहुत महत्वपूर्ण घटनाए है !
लगभग उधर युरोपीय देशों में एक जर्मन और दुसरे इंग्लैंड में कार्ल मार्क्स और एंगेल्स का जन्म भी इसी समय की देन है ! उन्होंने युरोपीय देशों के औद्योगिक क्रांति के बाद आया आर्थिक शोषण के खिलाफ अपने चिंतन-मनन करने के लिए विशेष योगदान दिया है !


उसी तरह भारत के परिप्रेक्ष्य में ज्योतिबा और सावित्रीबाई फुले ने सामंती व्यवस्था जो हजारों सालों से मनुस्मृति के आड में मनुष्य के द्वारा मनुष्य का शोषण अमानवीय स्तर पर बदस्तूर जारी था !  उसके खिलाफ इतिहास में पहली बार बगावत का झंडा फहराने का काम शुरू किया ! उसी समय ब्रिटेन में ऐतिहासिक कम्युनिस्ट दस्तावेजों में से एक मेनिफास्टोका लेखन कार्ल मार्क्स और एंगेल्स कर रहे थे !
और उसी क्रम में महिलाओं के शिक्षा के लिए भारत का पहला स्कूल पुणे के भीडे वाडा में एक जनवरी १८४८ यानी आजसे 174 साल पहले शुरूआत किया है ! और सावित्री की उम्र थी 17 साल की ! आज हमारे देश की समस्त भारतीय महिलाओं के लिए मनुस्मृति के द्वारा लगाए गए बंधनों से मुक्ति करने की ऐतिहासिक महत्व इस दिन का है !


और 1848 से 1852 इन चार वर्षों में पुणे के परिसर में अठारह स्कूलों की स्थापना की है ! वर्तमान शिक्षण सम्राटों के जैसा अपने साम्राज्य के विस्तार के लिए नहीं बल्कि दिन, दलित और महिलाओं के उत्थान के लिए रात – दिन अथक प्रयासों के परिणामस्वरूप आज के महिलाओं के जागरण की शुरुआत आजसे पावने दो सौ साल पहले शुरूआत करने के कारण ही ! आज भारत के विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं की उपस्थिति कुछ – कुछ दिखने लगी है ! उदाहरण के लिए !
राष्ट्रपति पद से लेकर प्रधानमंत्री तथा मुख्यमंत्री, राज्यपाल, कलक्टर पुलिस अफसरों से लेकर सेना तथा व्हाईस चांसलर, प्राचार्या, शिक्षिका डॉक्टर तथा जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में पुरूषों के बराबरी करते हुए वर्तमान महिला सक्षमीकरण करने का ऐतिहासिक श्रेय सावित्रीबाई फुले को जाता है !
बंगाल के सबसे अधिक सर्क्यूलेशनवाले अखबार आनंद बाजार पत्रिका समुह के सरकार परिवार की आद्य महिला राससुंदरी( जन्म १८०९) आत्मकथन 1875 में शायद ही किसी भारतीय महिला का यह पहला ही आत्मकथा होगी ! आमार जीवन के नाम से राससुंदरीने अपनी आपबीती लीखि है !


आजसे ढेढ सौ साल पहले ! अपने साड़ी के पल्लु के अंदर तेल के दिये को छुपाकर अपनी पढ़ाई करनी पड़ी है ! क्योंकि मनुस्मृति के अनुसार किसी भी स्री शुद्र ने अक्षर को देखने की मनाही ही थी ! अन्यथा आखों को गर्म लोहे की छड से अंधा करने की सजा सुनाई जाती थी ! अगर कोई महिला शुद्र ने कोई वेद सुन लिया तो कानो में गर्म शिशा डाला जाता था !
तो यह सिलसिला जारी रहा होता तो कोई महाश्वेता देवी या महादेवी वर्मा या अरूंधती राय और भी बहुत सारी महिलाओं का साहित्य हमारे हिस्से में नहीं आया होता ! इसलिए सही शिक्षक दिवस तो आज ही होना चाहिए !
मनुस्मृति के अनुसार स्रीऔर शुद्रो को अक्षरों का दर्शन करना भी पाप था ! और संघ परिवार उसी मनुस्मृति का महिमामंडित करने का प्रयास गत सौ साल से कर रहा है ! जब डॉ बाबा साहब अंबेडकरजी ने संविधान सभा में २६ नवंबर १९४९ के दिन हमारे संविधान को मान्यता देने के लिए रखा था तो संघ का दिल्ली से आॅर्गनायझर नाम से अंग्रेजी मुखपत्र में २७,२८,२९ नवंबर १९४९ के अंकों में लिखा गया है कि हज़ारों वर्ष पूर्व हमारे ऋषि मनू ने इतना नायाब संविधान लिखा हुआ है ! तो इस देश – विदेश के विभिन्न संविधानों की नकल कर के गुधडी जैसे भिमस्मृती की क्या आवश्यकता थी ! जिसमें भारतीय संस्कृति का कुछ भी समावेश नही है ! इस तरह हमारे संविधान के प्रारंभ में ही संघ परिवार संविधान के बारे में क्या विचार रखने वाला संगठन है ? और आज देश की सत्ता में आने के बाद गत आठ सालों से महिलाओं तथा पिछडी जातियों से लेकर अल्पसंख्यक जातियों के लोगों के उपर चल रहे अत्याचार उसी मानसिकता की देन हैं ! क्योंकि यह सभी वर्गों के लोग मनुस्मृति के अनुसार पैर के अंगुठे से जन्म हुए शुद्र होने के कारण इन्हें सवर्ण समाज की बराबरी करने का कोई हक नहीं है ! और कोई संविधान के अनुसार मिले अधिकार के अनुसार शिक्षा करने के बाद आगे बढने की कोशिश कर रहे हैं तो मनुस्मृति के समर्थक उनके साथ अन्याय अत्याचार करते हैं ! और यही मानसिकता के कारण सावित्रीबाई, फातिमा शेख जैसी दलित, महिलाओं के शिक्षा कार्य करने के समय उनके साथ गालीबकना कंकड, किचड फेकने जैसे वारदातें करने वाले यही लोग थे ! भले संघ की स्थापना २५ अक्टूबर १९२५ को हुई है ! लेकिन मनुस्मृति के समर्थक तुकाराम महाराज की गाथा को इंद्रायणी नदीमे डुबाने से लेकर संत ज्ञानेश्वर और उनके भाई बहनों को दर – दर की ठोकरों के लिए मजबूर करने वाले तत्वों की और संघ परिवार की एक ही मानसिकता रहने के कारण उस समय महिला शिक्षा की शुरुआत करने की कल्पना का अंकुर मन में आना कितनी बड़ी बात है ?  ऐसी महिला के जन्मदिन को ही शिक्षा दिवस मनाया जाना चाहिए !
डॉ सुरेश खैरनार पूर्व अध्यक्ष राष्ट्र सेवा दल 5 जनवरी 2022, नागपुर

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