bhagwatपिछले दिनों की सबसे बड़ी खबर भारतीय क्रिकेट के अगुआ जगमोहन डालमिया का निधन है. मैं उन्हें पिछले 20 सालों से जानता था. मैं उनकी क्षमता, कार्यशैली, जोशीले व्यक्तित्व और बेहतर प्रशासनिक क्षमता का कायल रहा हूं. कई मौके ऐसे आए, जिनमें वे कोई ़खास फैसले ले सकते थे, लेकिन बुद्धिमता की बात यह थी कि क्रिकेट के दीर्घकालिक हित के लिए वैसे फैसले सही नहीं थे.

इसलिए उन्होंने वे फैसले नहीं लिए. इसलिए उन्होंने ऐसे मौकों को जाने दिया, जब वे अपने पसन्द के लोगों को महत्वपूर्ण पदों पर बैठा सकते थे. क्रिकेट एक प्रतिस्पर्द्धात्मक खेल है. भारत में क्रिकेट प्रशासन खेल से भी ज्यादा प्रतिस्पर्द्धात्मक है. हर कोई किसी न किसी पद के पीछे भाग रहा है. किसी भी लोकतांत्रिक संस्था में चुनाव होते हैं, लेकिन क्रिकेट की संस्थाओं का चुनाव अलग तरह का हो गया है.

मुझसे उनकी जितनी भी बातचीत हुई, उससे मुझे लगा कि वे क्रिकेट का व्यापक हित चाहते थे, न कि कोई तात्कालिक लाभ. मैं उन लोगों का नाम नहीं लेना चाहता हूं, क्योंकि उन्हें बुरा लगेगा, लेकिन बहुत सारी ऐसी ग़लत या आधी-अधूरी जानकारी थी, जिसका इस्तेमाल उनके महत्व को घटाने के लिए किया गया. लेकिन, उन्होंने इस सब का बहादुरी से मुकाबला किया. बीसीसीआई की तरफ से ही उन्हें अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव आया था और उन्हें दोनों पक्षों ने निर्विरोध बीसीसीआई का अध्यक्ष चुन लिया.

हालांकि, वे 75 साल के थे, लेकिन यह उम्र भी कोई बहुत ज्यादा नहीं होती. लेकिन, जब तक वे जिये, अपने जीवन को प्रतिष्ठा के साथ जिये और प्रतिष्ठा के साथ इस दुनिया से रु़खसत हुए. यही नहीं, पश्चिम बंगाल सरकार ने उन्हें राजकीय सम्मान देते हुए अंतिम विदाई दी. उनके परिवार के लोग उनके दोस्त और समर्थक शोकाकुल हैं. हम आशा करते हैं कि चीजें सही दिशा में जाएंगी और क्रिकेट प्रशासन सही हाथों में जाएगा.

दूसरा बिन्दु यह है कि प्रधानमंत्री विदेशी भूमि को व्यक्तिगत टिप्पणी करने के लिए उपयुक्त समझते हैं. पिछले दिनों उन्होंने आयरलैंड में ऐसी टिप्पणी की, जो उन्हें नहीं करनी चाहिए थी. बेहतर होता कि ऐसी टिप्पणी वे भारत की धरती पर करते, न कि पिछली सरकारों की भर्त्सना करने या उसके महत्व को कम करने के लिए विदेशी ज़मीन पर ऐसी टिप्पणी करते, लेकिन जो आदत होती है, वह बहुत मुश्किल से जाती है. मुझे शक है कि उन्हें मालूम हैं कि कुछ राजनीतिक मापदंड होते हैं, जिनका पालन करना चाहिए.

बिहार चुनाव हो रहे हैं, जो भारतीय जनता पार्टी के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण हैं. आरएसएस प्रमुख ने एक बयान जारी किया कि आरक्षण को ़खत्म कर देना चाहिए. ये बहुत ही ग़लत सोच है, क्योंकि ये बहुत ही गंभीर विषय है, जिस पर गंभीरता से चर्चा होनी चाहिए. ये कोई रहस्य नहीं है कि भाजपा आरएसएस द्वारा संचालित होती है, इसीलिए यह बयान और भी महत्वपूर्ण हो जाता है.

चुनावी सन्दर्भ में बात करें तो ये भारतीय जनता पार्टी के विरोधियों को लाभ पहुंचाएगा, क्योंकि अगर आप आरक्षण खत्म करेंगे, तो पिछड़े वर्ग के लोग आहत होंगे. वो आपको वोट नहीं देंगे. दरअसल, आरएसएस अक्सर यह कहती है कि वह राजनीति में नहीं है, यानी कि अराजनीतिक है, इसलिए वह चुनाव के नतीजों की परवाह नहीं करते या इसका उनपर कोई प्रभाव नहीं पड़ता. लेकिन, मुझे नहीं मालूम कि दोनों के बीच में किस तरह की सहमति है.

लेकिन, अगर वे आरक्षण पर गंभीर बहस चाहते हैं, तो ये एक अलग तरह के प्रारूप और अलग समय में सामने आना चाहिए. अगले दो सप्ताह में देखते हैं, क्या होता है? बिहार में कुछ दिलचस्प चीजें सामने आएंगी, जहां भारतीय जनता पार्टी हर तरह के दांव अपनाएगी. साम-दाम-दंड-भेद यानी हर तरह के तरी़के और सेक्युलर ताक़तें उनका विरोध करेंगी. देखते हैं, इसका नतीजा क्या निकलता है?

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