मेरी लालसा में
मेरी लालसा में एक ऐसी स्त्री है,
जो मगन रहती है
खराब को, अप्रिय,को
मैला कुचैले को स्वच्छ,
सुंदर बनाने में,
दया, करुणा,
ममता, प्रेम,
जो फैले है मेरे आसपास
बहुत वजनदार है इनके मायने,
पर
अभी देखता हूँ ये सारे शब्द खोते
जा रहे है अपनी चमक,
अपना रस, अपनी मिठास,
मेरे भीतर बसी स्त्री,
चाहती है इन शब्दों को उधेड़कर
फिर से बुन देना,
वह चाहती है,
निकाल डाले बाहर
इनमें मिल गए
कंकड़ -पत्थर
ये शब्द जगह से उखड़ चुके है छोटे छोटे गड्ढे हो गए है इनके अंदर,
वह
चाहती है, एक दिन लीप पोतकर
इन्हें कर देना चिकने और समतल
वह चाहती है, धो डालना इन्हें मल मल कर,
ले जाकर किसी नदी पोखर
के घाट पर, और डाल देना सूखने के लिए
धूप में,
वह इन शब्दों की करीब जमा
धूल , कूड़ा कचड़े को बुहारकर
डाल आना चाहती है किसी कचड़े के
डिब्बे में,
मेरी लालसा रोज़ खोलती
है
अपने पंख, चाहती है रखना इन्हें
फालतू शब्दों के ढेर के बाहर,
वह चाहती है, टांक देना इनके
कमीज के टूटे बटन, तुरुप देना,
उधड़ी सीवन को,
मेरी लालसा में बसी स्त्री
की लालसा में भी जैसे
मैं हूँ.
मिथलेश राय
आपके है मालिक
वे आपके है सिर्फ और सिर्फ
आपके मालिक, वे बने है
आप ही के लिए
वे आपके लिए भीड़ भरी सड़क
पर फूटेंगे बम की तरह और
उफ तक नही करेंगें,
वे उतार लाएँगे वह सर, जो
उठेगा आप के खिलाफ, भेद
देंगे वे आंखे जो आपकी आखों
में आँखे डालने की करे भी
हिमाकत,
मालिक वे आपके लिए लांघ जाएंगे
सघन वन ऊंचे पर्वत, दरिया,
वे आपके लिए बनेंगे कोई वाद्ययंत्र
बजेंगे मधुर तान में वे नृतक बन
थिरके किसी ताल में निबद्ध,
वे पहुचेंगे आपकी बीमारी में
सेहत की कामना का गुलदस्ता
बन सबसे पहले,
आपके कुत्ते को नहला धुला कर
टहला आएंगे सुबह शाम, आपकी
पत्नी बच्चों की सुरक्षा में खड़े रहेंगे
चौकस, उनके रहते को परिंदा भी
पर नही मार सकेगा, आपके आसपास,
वे काट लेंगें आपके लिए दूसरों
के बोये अन्न की बालियों से झूमते
खेत, कर देंगे किसी को भी निर्वस्त्र
सरे बाज़ार देह और आत्मा तक से
वे आपके अनुपस्थिति में भी ,
मानते है आपको उपस्थित
सपनों में भी खड़े होते है, जुड़े
हाथों खीस निपोरते आपके
सामने
वे आपके गुलाम है मालिक,
आपकी गुलामी उन्हें सबसे
ज्यादा प्रिय है